अद्वितीय क्रांतिकारी भगतसिंह

अद्वितीय क्रांतिकारी भगतसिंह

एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें 23 साल की उम्र में अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया नाम था भगत सिंह। आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह की 117वीं जयंती पर पूरा देश नतमस्तक हो उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनके किए कार्यों और उनके विचारों ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का राष्ट्रीय नायक बना दिया परन्तु अफसोस आजादी के 76 साल बाद भी हम अपने आजाद देश में इस महानायक को शहीद का दर्जा नही दिला पाए हैं। भगत सिंह ने जहां एक तरफ अपनी बंदूक के दम पर अंग्रेजी हकूमत के मन में भय पैदा किया वहीं दूसरी ओर अपने विचारों से आजादी के संघर्ष में अलग अलग भारतीयों को एक करने का काम किया।
 
इस महान क्रांतिवीर का जन्म 28 सितंबर 1907 को सयुंक्त भारत के पश्चिमी पंजाब के लायलपुर में सरदार किशन सिंह संधू और विद्या वती के घर में हुआ था। इनके दादा अर्जन सिंह, पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। जब भगत सिंह का जन्म हुआ तब उनके पिता और चाचा 1907 में नहर उपनिवेशीकरण विधेयक के विरोध में आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में थे। स.भगत सिंह ने कुछ सालों तक गांव के स्कूल में पढ़ाई करने के बाद लाहौर में आर्य समाज द्वारा संचालित एंग्लो- वैदिक स्कूल में दाखिला लिया ।
 
1923 में उन्हें लाहौर के नेशनल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जिसकी स्थापना भारतीय स्वतंत्रता अंदोलन के एक और महान योद्धा लाला लाजपत राय ने की थी। दो साल पहले स्थापित यह कॉलेज महात्मा गांधी के ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुदानित स्कूलों और कॉलेजों से दूर रहने के असहयोग के आह्वान पर बनाया गया था। स. भगत सिंह का पूरा परिवार स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय था। जब जनरल डायर ने हजारों निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या की तो कुछ घंटों बाद ही बालक भगत जलियांवाला बाग हत्याकांड स्थल पर गए थे और हजारो बेगुनाहों के बिखरे पड़े खून को देख मन ही मन आजादी के लिए संघर्ष करने की ठान ली थी।
 
1928 में साइमन कमीशन की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजनीतिक स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए की थी। भारतीयों द्वारा जॉन साइमन की अध्यक्षता वाले इस कमीशन का बहिष्कार किया गया। 30 अक्टूबर 1928 को आयोग ने लाहौर का दौरा किया,लाला लाजपत राय ने इसके खिलाफ एक मौन मार्च का नेतृत्व किया।प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए  पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया जिसमें लाला जी गंभीर रूप से घायल हो गए जिसके बाद 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई थी। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने अपने साथियों चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु व अन्य के साथ मिलकर स्काॅट की हत्या का प्लान बनाया।
 
हालांकि गलत पहचान के कारण उन्होंने  17 दिसंबर 1928 को लाहौर जिला पुलिस मुख्यालय से बाहर निकलते समय ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी। इसके तुरंत बाद पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू किया गया। इस हत्या में शामिल सभी क्रांतिकारी भेष बदल लाहौर से निकलने में कामयाब हो गए। लाला लाजपत राय की हत्या का बदला राष्ट्र के सम्मान की रक्षा का प्रतीक बन गया। इस कार्य से उन सभी का खास तौर पर भगत सिंह का नाम पूरे भारत में गूंजने लगा। उन्होंने जो लोकप्रियता हासिल की वह अद्भुत थी।
 
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर असेंबली के सत्र के दौरान सार्वजनिक गैलरी से सेंट्रल हाल में दो बम फेंके। बम फेंकते समय इस बात का भी ध्यान रखा गया कि इससे किसी की जान का नुकसान न हो। जैसे ही बम फटा जोर की आवाज हुई और असेंबली हॉल में अंधेरा छा गया। पूरे भवन में अफरातफरी मच गई। घबराए लोगों ने बाहर भागना शुरू कर दिया। हालांकि बम फेंकने वाले दोनों क्रांतिकारी वहीं खड़े रहे। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए उन्होंने कुछ पर्चे भी सदन में फेंके। इनमें लिखा था कि बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत पड़ती है। दोनों ने बिना किसी विरोध के स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया। इस कारनामे के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त भारतीय युवाओं के हीरो बन गए।
 
क्रांतिकारी पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल का विरोध कर रहे थे। ट्रेड डिस्प्यूट बिल पहले ही पास किया जा चुका था। जिसमें मजदूरों द्वारा की जाने वाली हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगा दी गई थी। पब्लिक सेफ्टी बिल में सरकार को संदिग्धों पर बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रखने का अधिकार दिया जाना था। दोनों बिलों का मकसद अंग्रेजी सरकार के खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाना था। भगत सिंह के विचारों ने भारतीय लोगों को बहुत प्रभावित किया। उनका कहन था। वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को नहीं कुचल पाएंगे। क्रांति मानव जाति का एक अविभाज्य अधिकार है।
 
स्वतंत्रता सभी का अविनाशी जन्मसिद्ध अधिकार है।मनुष्य का कर्तव्य है प्रयास करना, सफलता संयोग और वातावरण पर निर्भर करती है। दर्शन मानवीय दुर्बलता या ज्ञान की सीमाओं का परिणाम है। निर्दयी आलोचना और स्वतंत्र सोच क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक लक्षण हैं। मैं एक मनुष्य हूं और मानव जाति को प्रभावित करने वाली हर चीज मुझे चिंतित करती है। यदि बहरे को सुनना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए। विद्रोह कोई क्रांति नहीं है। यह अंततः उसी लक्ष्य तक ले जा सकता है। जीवन का उद्देश्य अब मन को नियंत्रित करना नहीं है, बल्कि इसे सामंजस्यपूर्ण ढंग से विकसित करना है, परलोक में मोक्ष प्राप्त करना नहीं, बल्कि यहीं इसका सर्वोत्तम उपयोग करना है।
 
जो भी व्यक्ति प्रगति के पक्ष में है, उसे पुराने विश्वास के प्रत्येक पहलू की आलोचना करनी होगी, उस पर अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी। 23 मार्च 1931 को शाम के करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। बेशक अंग्रेजी हकूमत ने उनके शरीर को तो खत्म कर दिया परन्तु आज भी उनके विचार युवा एवंम राष्ट्रभक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। संपूर्ण राष्ट्र को महान क्रांतिवीर स.भगतसिंह के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाए। 
(नीरज शर्मा'भरथल')

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