पुस्तकें ज्ञान का स्रोत, मित्र ,मार्गदर्शक, बुद्धिमान सलाहकार।
(ज्ञान मनुष्यता का आधार)
On
महात्मा गांधी ने कहा है कि पुराने वस्त्र पहनों पर नई पुस्तकें खरीदोl उन्होंने यह भी कहा कि पुस्तकों का महत्व रत्नों से कहीं अधिक है, क्योंकि पुस्तकें अंतःकरण को उज्जवल करती हैं। सच्चाई भी यही है कि पुस्तकें ज्ञान के अंतःकरण और सच्चाईयों का भंडार होती है। आत्मभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी होती हैं। जिन्होंने पुस्तके नहीं पढी हैं या जिन्हें पुस्तक पढ़ने में रूचि नहीं है वे जीवन की कई सच्चाईयों से अनभिज्ञ रह जाते हैं। पुस्तकें पढ़ने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि हम जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझने की शक्ति से परिचित हो जाते हैं,और समस्या कितनी भी बड़ी हो हम उससे जीतकर निजात पा जाते हैं। कठिन से कठिन समय पर पुस्तकें हमारा मार्गदर्शन एवं दिग्दर्शन करती है।
जिन मनीषियों ने पुस्तक लिखी है और जिन्हें पुस्तकें पढ़ने का शौक है उन्हें ज्ञानार्जन के लिए इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं होतीहैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे कलाम साहब ने कहा है कि एक पुस्तक कई मित्रों के बराबर होती है और पुस्तकें सर्वश्रेष्ठ मित्र होती हैं। शिक्षाविद चार्ल्स विलियम इलियट ने कहा कि पुस्तके मित्रों में सबसे शांत व स्थिर हैं, वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान होती हैं और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान तथा श्रेष्ठ होती हैं। निसंदेह पुस्तकें ज्ञानार्जन करने मार्गदर्शन एवं परामर्श देने में में विशेष भूमिका निभाती है। पुस्तकें मनुष्य के मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक,नैतिक, चारित्रिक, व्यवसायिक एवं राजनीतिक विकास में अत्यंत सहायक एवं सफल दोस्त का फर्ज अदा करती हैं।
प्राचीन काल से ही बच्चों तथा नौनिहालों के विकास के लिए पुस्तकें लिखे जाने का चलन तथा रिवाज रहा है। 'पंचतंत्र'तथा 'हितोपदेश' इसके बहुत बड़े उदाहरण हैं। पंचतंत्र,हितोपदेश में ज्ञानार्जन के लिए एवं संस्कृति सभ्यता और शिक्षा के उपयोग की बातें जो दैनिक जीवन में अत्यंत प्रभावशाली तथा उपयोगी होती है, लिखी गई हैं। और यही पुस्तकें इस देश की सभ्यता संस्कृति के संरक्षण तथा प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाती आई है। इसी तरह की पुस्तकों ने ज्ञान का विस्तार भी किया है। विश्व की हर सभ्यता मे लेखन सामग्री का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पुस्तकों के माध्यम से ही धर्म जाति संस्कृति एवं शिक्षा की मार्गदर्शिका से ही समाज आगे बढ़ा है।
अच्छी किताबें अच्छे मार्गदर्शक तथा शिक्षित तथा अशिक्षित समाज को चेतना तथा सद्गुणों से संचारित करती है, व्यक्ति के अंदर मानसिक क्षमता का विकास भी होता है। ऐतिहासिक किताबें हमें इतिहास, धर्म, राजनीति, संस्कृति के अनेक पहलुओं से अवगत भी कराती है,जिससे व्यक्तित्व विकास में अत्यंत सहायता मिलती है। पुस्तकों के महत्व को देखते हुए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा कि पुस्तके वह साधन है जिसके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृति एवं समाज के बीच सेतु का निर्माण कर सकते हैं। पुस्तके वह मित्र होती हैं जो हर परिस्थिति तत्काल में सहायक होती है, और यही कारण है कि अनेक लोग गुरुवाणी, हनुमान चालीसा अभी अपने पास रखते हैं।
वर्तमान युग डिजिटल युग कहलाता है अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रिंट मीडिया के स्थान पर अपने पैर जमा लिए हैं। इस डिजिटल युग में इंटरनेट का महत्व काफी बढ़ गया है। पहले हम बचपन में चंदा मामा, नंदन, बालभारती और अन्य किताबों से ज्ञान से लेकर मनोरंजन तक प्राप्त करते थे। आज इंटरनेट के बढ़ते बाजार की दिशा में युवक पुस्तकों को विभिन्न साइटों मैं खंगाल कर पढ़ लेते हैं। अब डिजिटल किताबें भी आ गई है साथ ही डिजिटल लाइब्रेरी भी धीरे-धीरे विकसित हो रही है। पर कई कंपनियां विविध किताबों को साइट पर प्रकाशित कर बच्चों के पढ़ने के लिए उपलब्ध करा रही हैं। इससे बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ कर लाभान्वित हो रहे हैं। इस दिशा में भारत सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा डिजिटल कार्यक्रमों के अंतर्गत ई शिक्षा तथा ई पुस्तकों के पुस्तकालयों के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही पठन सामग्रियां बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने का काम कर रही है।
डिजिटल किताबों तथा पुस्तकालयों से यह लाभ है कि देश विदेश में किसी भी भाग में रहकर लोग अपनी इच्छा के अनुसार पुस्तकों पत्रिकाओं आदि को पढ़ सकते हैं। इंटरनेट अब अध्ययन का सुलभ साधन बन गया है। पर दूसरी तरफ इससे कुछ नुकसान भी हो रहे हैं, उचित मार्गदर्शन वाली किताबें न पढ़कर भ्रामक पुस्तकों का अध्ययन कर अपने को दिग्भ्रमित कर रहे हैं और इससे बच्चों का भविष्य भी प्रभावित हो रहा है।
इसके लिए छोटे बच्चों को अपनी निगरानी में इंटरनेट से किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना अन्यथा दिगभ्रमित साहित्य बच्चों की मानसिकता पर विकृत प्रभाव डाल सकता है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि पुस्तकें ज्ञान देने के साथ मार्गदर्शन तथा चरित्र निर्माण का सर्वोत्तम साधन है। पुस्तकों से राष्ट्र की युवा कर्ण धारों को नई दिशा दी जा सकती है तथा एकता और अखंडता का संदेश देकर एक महान और सशक्त राष्ट्र की पृष्ठभूमि रखी जा सकती है।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक,लेखक
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
महाराष्ट्र और झारखंड में बहुत कठिन है डगर पनघट की।
12 Nov 2024 20:25:40
महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं।भाजपा गठबंधन एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है।लेकिन झारखंड...
अंतर्राष्ट्रीय
भारतवंशी सांसद ने खालिस्तानी चरमपंथ पर धमकियों के बावजूद साधा निशाना, कहा- कनाडा के लोगों को ये गुमराह कर रहे हैं
10 Nov 2024 17:39:46
International Desk कनाडा। कनाडाई सांसद चंद्र आर्य ने 3 नवंबर को ब्रैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर में हिंदू भक्तों पर...
Comment List