संजीव-नी|
On
क्योंकि आज उसने खाना नहीं खाया|
क्योंकि आज हरिया ने खाना नहीं खाया,
हथौड़े की तेज आवाज से भी तेज,
मस्तिष्क के तंतु कहीं तेजी से
शून्य में विलीन हो जाते,
फिर तैरकर,
वापसी की प्रतीक्षा किए बिना,
आकर वापस बैठ जाते,
किसी अलग जगह में
जो पुरानी नहीं होती,
लेकिन वह
कबाड़ में हथोड़ा चलाकर
वापस आए उन विचारों का
विरोध खुलकर करना चाह रहा था,
जिसकी उसे आजादी थी,
पर इतनी ऊर्जा,ताकत
और चाहत नहीं थी,
जो बेवजह उसकी अपनी जिंदगी में,
अन्चाहों की तरह
आकर, दिमाग में चक्कर लगाते,
हथोड़ा और जंग लगा लोहा
आपस में जुगलबंदी कर
कोई मधुर गीत नहीं गा सकते थे
कोई आशा का संकेत नहीं दे सकते थे
कि आने वाला कल
खुशहाली, हरीतिमा का होगा,
किसी को शायद मालूम न था
कि उसने
हथोड़ा चलाने से पहले
और बहुत पहले और
बहुत बाद तक खाना नहीं खाया।
संजीव ठाकुर
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