भारतीय संस्कृति में कुम्भ का वास्तविक महत्व क्या है।

 मोक्ष की कामना, मानव कल्याण के लिए कामना, निरोगी एवं सुखमय जीवन की कामना।  संजय पांडेय 

भारतीय संस्कृति में कुम्भ का वास्तविक महत्व क्या है।

प्रयागराज। तुलसीदास जी कह गए हैं — माघ मकर गति रवि जब होई।  तीरथपतिहि आव सब कोहि। 
एहि प्रकार भरि माघ नहाई।  पुनि सब निज निज आश्रम जाहि।। तुलसी बाबा कहीं नहीं लिखते हैं कि प्रयागराज में माघ स्नान से पाप मुक्ति मिलती है या किए गए समस्त पाप कर्म धुल जाते हैं। 
 
तीर्थस्नान से पाप-प्रच्छालन, पुण्य-प्राप्ति जैसे अंधविश्वास पर बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति ने प्रमाणवर्तिका के प्रथम अध्याय में जबरदस्त प्रहार किया है — 'वेद प्रमाण्यं कस्यचित् कर्तृवादः स्नाने धर्मेच्छा जातिवादावलेपः। संतापरंभः पापहानाम चेति ध्वस्तप्रज्ञानां पञ्च लिंगानि जाड्ये।' (अर्थात् वेद को प्रमाण मानना, किसी ईश्वर को कर्ता कहना, स्नान को धर्म से जोड़कर देखना, जाति का अभिमान होना, पाप नष्ट करने के लिए शरीर को संताप देना, ये पाँच जड़बुद्धि के लक्षण हैं) 
 
तीर्थ स्नान पर कबीर साहेब के कटाक्ष भी तीखे हैं, उन्होंने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा है— "गंगा नहाइन यमुना नहाइन, नौ मन मैलहि लिहिन चढ़ाय।  पाँच पचीस के धक्का खाइन, घरहु की पूंजी आई गमाय।" कबीर दास ने यह भी कहा है —"नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल।"
 
कुम्भ प्रथा का मूल उद्देश्य उस आध्यात्मिक उत्सव को कहा जाता था जिसमें विद्वतजन, दार्शनिक और साधक गण एक स्थान पर एकत्र होकर आपस में संवाद करते थे, शास्त्रार्थ करते थे और उनके हित-उपदेश, तपः शक्ति और संचित आध्यात्मिक ऐश्वर्य द्वारा पृथ्वी अनुगृहीत होती थी।—("कुः पृथिवी उभ्यतेऽनुगृह्यते उत्तमोत्तममहात्मसङ्गमैः तदीयहितोपदेशैः यस्मिन् सः कुम्भः)
 
कुम्भ में अमृतत्व की साधना अर्थात् धर्म के दसों अंगों का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करना है। हमारे धर्मग्रंथों  के अनुसार धर्म के दस अंग हैं, धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शुचिता, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य एवं अक्रोध—("धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्") 
 
गांधी जी ने कुम्भ मेले पर लिखा है —"सन्‌ १९१५ में हरिद्वार में कुंभ का मेला था। उसमें जाने की मेरी कोई इच्छा न थी। लेकिन मुझे महात्मा मुंशीराम जी के दर्शनों के लिए तो जाना ही था। कुम्भ के अवसरपर गोखले के भारत-सेवक-समाज ने एक बड़ा दल भेजा था। तय हुआ था कि उसको मदद के लिए मैं अपना दल भी ले जाऊं। शांतिनिकेतन वाली टुकड़ी को लेकर मगनलाल गांधी मुझसे पहले ही हरिद्वार पहुँच गये थे। रंगून से लौटकर में भी उनसे जा मिला।
 
उन दिनों मुझमें घूमने-फिरने पर्याप्त शक्ति थी। इसलिए मैं काफी घूम-फिर सका था। इस भ्रमण में मैंने लोगों की धर्म-भावना की अपेक्षा उनके पागलपन, उनकी चंचलता, उनके पाखण्ड और उनकी अव्यवस्था के ही अधिक दर्शन किया। साधुओं का तो जमघट ही इकट्ठा हुआ था। ऐसा प्रतीत हुआ मानों वे सिर्फ मालपूए और खीर खाने के लिए ही जन्मे हों।" 
 
यदि साधु, सन्यासी, तपस्वी कुम्भ में एकत्रित होकर अपने नैतिक और आध्यात्मिक बल द्वारा मानव कल्याण के लिए ज्ञान-विज्ञान के नये क्षितिज का उद्घाटन करते है, शासन - प्रशासन को उनके उत्तरदायित्व के लिए सचेत करते हैं। समाज में नव चेतना का संचार करते हैं और भारतवासियों को शुद्धि, सद्बुद्धि और समष्टि के हित के मार्ग पर अग्रसर होने के लिये प्रेरित करते हैं, तो निश्चित रूप से कुंभ की परम्परा को बचाए रखना चाहिए।
 
अगर कुम्भ के कारण सांप्रदायिक उन्माद, असामाजिकता, गंदगी और बीमारी फैलती है, ढोंग और पाखंड को बढ़ावा मिलता है, पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, धर्म की ग्लानि होती है, भ्रष्ट सत्ताधीशों के राज्येश्वर्य का पथ प्रशस्त होता है, तो इस परम्परा को संजोये रखने से किसी का कल्याण नहीं हो सकता है।

About The Author

Post Comment

Comment List

अंतर्राष्ट्रीय

भारत ने पाकिस्तान में जासूसी एजेंसी रॉ से हत्याएं कराईंः वॉशिंगटन पोस्ट का दावा। भारत ने पाकिस्तान में जासूसी एजेंसी रॉ से हत्याएं कराईंः वॉशिंगटन पोस्ट का दावा।
स्वतंत्र प्रभात।     अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट का कहना है कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) ने...

Online Channel