ईद पर सौगात तो दीपावली पर उपहार क्यों नहीं ?
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भाजपा द्वारा गत दिनों सौगात-ए-मोदी नामक एक अभियान की शुरुआत की गयी। इस अभियान के अंतर्गत देश के 32 लाख मुसलमानों को ईद मनाने के लिए विशेष किट दिये जाने का समाचार है। ख़बरों के मुताबिक़ भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे के कार्यकर्ताओं के माध्यम से देश की अनेक चयनित मस्जिदों में कम से कम 100 लोगों को सौगात-ए-मोदी रुपी विशेष किट देकर उन्हें सहायता पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
मोदी की इस सौगात में महिलाओं के लिए सूट, पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा, दाल, चावल, सेंवई , सरसों का तेल, चीनी, कपड़े, मेवा, खजूर आदि शामिल हैं। देश भर में मुसलमानों के साथ केंद्र से लेकर अनेक भाजपा शासित राज्यों द्वारा जिसतरह का सौतेला व्यवहार किया जा रहा है इन हालात के मद्देनज़र ईद पर 'सौगात-ए-मोदी' पर चर्चा होना लाज़िमी है। सौगात-ए-मोदी से जुड़े ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब देश की जनता सुनना चाहती है।
पहला सवाल तो यही कि अपनी स्थापना के समय से ही कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाने वाली भाजपा की नज़रों में क्या यह 'तुष्टिकरण' नहीं है ? क्या कांग्रेस या अन्य दल अल्पसंख्यकों के फ़ायदे के लिये कोई योजनाएं लाएं तो केवल वही तुष्टिकरण है और भाजपा जो करे उसे 'सन्तुष्टीकरण ' का नाम दे दे ?''दूसरी बात यह कि मोदी का मुस्लिम प्रेम न तो गुजरात में लंबे समय तक उनके मुख्यमंत्री रहते उमड़ा न ही पिछले दस वर्षों में उनकी प्रधानमंत्री काल में यह नज़र आया। फिर अब आख़िर इस सौगात की याद क्यों आई और इसकी ज़रुरत क्यों महसूस हुई ?

कहीं यह इसी वर्ष अक्टूबर या नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र मुस्लिम मतों को लुभाने का एक शगूफ़ा तो नहीं ? एक सवाल यह भी कि दूसरे दलों पर वोटों की ख़ातिर 'मुफ़्त की रेवड़ियां' बांटने का आरोप मढ़ने वाली भाजपा ईद पर बंटने वाली सौगात-ए-मोदी को क्या 'मुफ़्त की रेवड़ी ' नहीं कहेगी ? और इन सबसे बड़ा सवाल यह कि यदि प्रधानमंत्री ईद पर मुसलमानों को सौगात दे रहे हैं तो क्या देश की बहुसंख्य हिन्दू आबादी दीपावली पर उपहार की हक़दार नहीं ?
प्रधानमंत्री को फ़रवरी 2017 में उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर की एक जनसभा में राज्य की तत्कालीन समाजवादी सरकार के लिये दिये गये उस बहुचर्चित व विवादित 'प्रवचन 'को नहीं भूलना चाहिये जिसमें उन्होंने कहा था कि-' धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। यूपी में भेदभाव सबसे बड़ा संकट है। ये भेदभाव नहीं चल सकता। हर किसी को उसके हक़ का मिलना चाहिए ये सबका साथ सबका विकास होता है। " उन्होंने कहा, "अगर होली पर बिजली मिलती है तो ईद पर भी बिजली मिलनी चाहिए।अगर रमज़ान में बिजली मिलती है तो दिवाली पर भी बिजली मिलनी चाहिए।
गांव में क़ब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए। भेदभाव नहीं होना चाहिए। धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। " तो क्या उपरोक्त प्रवचन केवल विपक्ष के लिये ही है ? आज यह सवाल ज़रूरी क्यों नहीं कि मुसलमानों को ईद पर सौगात तो हिन्दुओं को दीपावली पर क्यों नहीं ? गुरुपर्व पर सिक्खों को तोहफ़ा क्यों नहीं ? ईस्टर या गुड फ्राइडे पर ईसाइयों को क्यों नहीं ? यह भेदभाव क्यों और इसका कारण क्या है ?

दरअसल भाजपा ने कोरोना काल के बाद मुफ़्त राशन बांटकर आम जनता के वोट लेने का जो तरीक़ा अपनाया है और उसे मतदाताओं की नयी श्रेणी अर्थात 'लाभार्थी श्रेणी ' के रूप में चिन्हित किया है यह सौगात -ए -मोदी भी उसी तरह का एक खेल है जो बिहार चुनाव से पहले खेला जा रहा है। इस खेल के बहाने भाजपा लालू यादव व नितीश कुमार दोनों ही नेताओं के साथ खड़े मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने का एक प्रयास कर रही है।
उसे लगता है कि जिसतरह मुफ़्त राशन बांटकर उसने भूखे व बेरोज़गार लोगों को अपने पक्ष में कर लिया है शायद सौगात -ए -मोदी किट भी बिहार में भाजपा के लिये उसी तरह फ़ायदेमंद साबित हो। परन्तु शायद ऐसा होने वाला इसलिए नहीं क्योंकि इस समय मुसलमानों की सबसे बड़ी चिंता उनकी सुरक्षा है,उनकी शिक्षा व रोज़गार है। उनकी इबादतगाहों की सुरक्षा है। उनके धार्मिक रीति रिवाजों को अमल में लाने की स्वतंत्रता है। उनके साथ निष्पक्षता से पेश आना तथा न्याय करना है।
परन्तु इसी मोदी राज में देश के अनेक भाजपा शासित राज्यों में नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगाई जा रही है। सड़कों,पार्कों यहाँ तक कि अपने घर की छतों पर भी नमाज़ पढ़ने पर रोक लगने की ख़बर है। हरियाणा में तो ईद का अवकाश ही 31 मार्च को बहाना बनाकर गज़ेटेड हॉलीडे की लिस्ट से हटा कर रिस्ट्रिक्टेड हॉलिडे कर दिया गया है। ऐसे में विपक्ष सवाल कर रहा है कि ईद मुसलमानों का एक ही सबसे बड़ा त्योहार होता है, जो पूरे देश में मनाया जाता है। ऐसे में आख़िर ईद की गज़ेटेड छुट्टी को वैकल्पिक छुट्टी के रूप में क्यों बदल दिया गया ? आज जगह जगह मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की ख़बरें आ रही हैं। यहाँ तक कि महाकुंभ जैसे आयोजन में कुछ लोगों ने मुसलमानों के मेला प्रवेश तक का विरोध किया।
खुले आम भाजपाई समर्थक नफ़रत फैला रहे हैं। अनेक स्थानों से पुलिस,प्रशासनिक पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की ख़बरें आ रही हैं। मुसलमानों के धर्म स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। जगह जगह बेगुनाह लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाये जा रहे हैं। दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पर होने वाले विरोध प्रदर्शनों को लेकर यह मोदी ने ही तो कहा था कि 'जो आग लगा रहे हैं, टीवी पर जो उनके दृश्य आ रहे हैं, ये आग लगाने वाले कौन हैं, उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है।
' और आज उन्हीं को सौगात पेश की जा रही है ? यदि भाजपा या मोदी वास्तव में मुसलमानों को सौगात देना चाहते हैं तो उन्हें व उनकी पार्टी व सरकार को भारतीय मुसलमानों से नफ़रत करने वाले लोगों की बयानबाज़ियों पर लगाम लगनी चाहिये। जब संसद में उनके सांसद खुले आम मुसलमानों को गालियां देने लगें तो समझा जा सकता है कि इस विरोध की जड़ें कितनी गहरी हैं। पक्षपात हर स्तर पर बंद होना चाहिये। इसी लिये यदि ईद पर सौगात दे रहे हैं तो दीपावली-होली,गुरुपर्व पर भी उपहार दिया जाना चाहिये।
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