गुड़ी पड़वा के रीति-रिवाज : क्या कहता है विज्ञान ? 

गुड़ी पड़वा के रीति-रिवाज : क्या कहता है विज्ञान ? 

अधिकांश भारतीय परिवार अपनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपरा के अनुसार नव वर्ष के प्रथम दिवस का स्वागत विशेष पर्व के रूप में करते हैं।अथार्त कोशिश यही रहती है कि साफ सुथरे या  नए वस्त्र पहने जाएं, एक-दूसरे को भारतीय परंपरा अनुसार शुभकामनाएं दी जाएं, बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त किया जाय और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जाएं। यदि संभव हो तो घरों में विशेष व्यंजन बनाए जाएं। मालवा तथा महाराष्ट्र में इस दिन अधिकतर परिवारों में पूरन-पोली और श्रीखंड को प्रमुख रूप से भोजन प्रसादी  में शामिल किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि  स्वच्छ और सुव्यवस्थित घर, मनपसंद भोजन और परिधान, हर्ष और उल्लास का माहौल न सिर्फ मानसिक शांति देते हैं,सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाते हैं अपितु  शरीर में डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे हैप्पी हार्मोन को भी बढ़ाते हैं, जिससे खुशी और आनंद का अनुभव होता है,मन प्रसन्न रहता है।
 
गुड़ी पड़वा को पर्व के रूप में मानने वाले  इस दिन अपने घर के मुख्य द्वार / बालकनी/छत पर बाहर की ओर आकर्षक रूप में सजा कर 'गुड़ी' को प्रदर्शित करते हैं। ऐसा करना घर की समृद्धि और विजय का प्रतीक माना जाता है। वास्तव में हर्ष, उल्लास, उमंग के साथ गुड़ी की स्थापना करने से घर के लोगों में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है,मन प्रसन्न रहता है, परिवार का वातावरण खुशहाल बनता है,आपस में स्नेह, प्रेम,अपना पन बढ़ता है तथा समर्पण भाव जागृत होता है। साथ ही इस दिन ईष्ट-मित्र, परिवार और आस-पड़ोस के मध्य शुभकामनाओं का आदान-प्रदान होता जिससे आपसी संबंध प्रगाढ़ होते हैं तथा सामाजिक समरसता में वृद्धि होती है।
 
परंपरा यह भी कहती है कि इस दिन उदय होते सूरज को जल दिया जाता है और स्वस्थ रखने की प्रार्थना की जाती है।हम सबको मालूम ही है कि सुबह की सूर्य किरणें स्वास्थ्य वर्धक विटामिन डी का महत्वपूर्ण स्रोत है। अतः यदि हमें विटामिन डी की गोलियां या इंजेक्शन नहीं लेना है तो सूर्य भगवान को अर्ध्य देने की नियमित आदत डालना चाहिए। इस क्रिया के पीछे का संदेश भी यही है।
 
वास्तव में नवसंवत्सर की शुरुआत मौसम बदलने के समय होती है, जब शरीर को रोग-प्रतिरोधक क्षमता की अधिक जरूरत होती है। इसलिए इस दिन से आर्युवेद सम्मत  नीम और गुड़ का सेवन करने की सलाह दी जाती है।शोध बताते हैं कि नीम में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं, जो शरीर को बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं, जबकि गुढ़ आयरन से भरपूर होने के कारण खून की गुणवत्ता सुधारता है।श्वसन तंत्र को शुद्ध करने में सहायक होता है। साथ ही शरीर को डिटॉक्स कर पाचन तंत्र को मजबूत करता है। आर्युवेद यह भी कहता है कि नीम पित्त को शांत करता है और गुड़ कफ को कम करता है, जिससे शरीर का संतुलन बना रहता है।
 
प्रश्न यह  उठता है कि नीम और गुड़ का सेवन कितना किया जाए? आर्युवेद के अनुसार रोज़ 4 से 5 ताज़ी कोमल पत्तियां चबाकर खानी चाहिए या इन्हें पीसकर शहद या गुड़ के साथ लेना चाहिए। अगर पत्तियां चबाना कठिन लगे, तो 10-15 ml (लगभग 1 से 2 चम्मच) नीम का रस सुबह खाली पेट पिया जा सकता है।नीम का कड़वापन संतुलित करने के लिए तथा गुड़ में निहित गुणों का लाभ लेने के लिए  5-10 ग्राम गुड़ (एक छोटी गोली जितना) खाया जा सकता है।सुबह खाली पेट या नाश्ते से पहले इसका सेवन करना सबसे प्रभावी माना जाता है।
 
किन्तु यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि कम रक्तचाप वाले लोगों को नीम अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह रक्त चाप को और कम कर सकता है।गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताओं को तो बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के इसका सेवन नहीं करना चाहिए।डायबिटीज के मरीज जो पहले से दवा ले रहे हैं, उन्हें भी विशेष सावधानी बरतनी की आवश्यकता है, क्योंकि नीम का सेवन ब्लड शुगर को कम कर सकता है।
 
आर्युवेद अनुसार गुड़ी पड़वा से शुरू करके 7-15 दिन तक नियमित रूप से नीम और गुड़ का उपरोक्त बताईं मात्रा में सेवन किया जाए, तो यह शरीर को डिटॉक्स करने, रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और मौसम परिवर्तन से होने वाली बीमारियों से बचाने में मदद कर सकता है। एक दूसरा संदेश यह भी है कि नीम(कड़वा) और गुड़(मीठा) को एक साथ खाने से जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता और संघर्ष-उपलब्धियों को समान रूप से स्वीकार करने का भाव विकसित होता है।यह परंपरा हमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने और प्राकृतिक औषधियों का महत्व समझने का भी संदेश देती है।
 
आध्यात्मिक दृष्टि से गुड़ी पड़वा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि नव सृजन और आशा का प्रतीक है।इससे हम सीख सकते हैं  कि हर नया वर्ष नई संभावनाएं और नई शुरुआत लेकर आता है। अतः हर व्यक्ति के लिए अतीत से सीखकर भविष्य की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा लेना ही श्रेष्ठकर है।
 
मेरा ऐसा मानना है कि विक्रम संवतसर के प्रथम दिवस का सभी भारत वासियों को अपनी जाति धर्म से परे विचार कर स्वास्थ्य, समृद्धि, खुशहाली, समरसता की दृष्टि से हर्ष और उल्लास से स्वागत करना चाहिए।

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