preeti shukla
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक छत भी  चाहिए

मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक छत भी  चाहिए मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक छत भी  चाहिए, जहां बैठकर मैं शहर की खूबसूरती को निहार सकूं l मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक खिड़की भी चाहिए, जहां बैठकर मैं बाहर के नजारे झांक सकूं l मुझे सिर्फ एक...
Read More...
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

क्यूँ ?

क्यूँ ? क्यू तुम मेरे व्यक्तित्व पर अपना व्यक्तित्व थोपते हो ? क्यू मेरे इंन्द धनुषी स्वपनो को अपनी इच्छाओं के काले बादल से ढकते हो क्यूं मेरे हिरन रूपी मन के पैरों में अपने आदेशों की बेडियाँ जकड़ते हो?   क्यूँ क्यू...
Read More...