अफगान-पाकिस्तान के बीच मड़रा रहे जंग के बादल

स्वतंत्र प्रभात
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता संभालने के एक साल बाद समाजिक व आर्थिक हालात बहुत दयनीय हैं। एक तरफ अफगान सीमा पर जहां पाकिस्तान और तालिबान के बीच जंग जैसे हालात हैं, वहीं राजधानी काबुल में पाकिस्तानी राजदूत को जान से मारने की कोशिश हुई है। इस बीच भारत का जादू बहुत तेजी से तालिबान सरकार पर चला और यहां उसकी पकड़ फिर से मजबूत हो गई है। यही नहीं भारत के हरी झंडी दिखाने के बाद अब जापान भी अफगानिस्तान में दूतावास खोलने जा रहा है। जापान ने इस साल जब अफगानिस्तान में फिर से दूतावास खोलने पर विचार शुरू किया था तब उसने भारत से सलाह ली थी ताकि जमीनी हालात की सटीक जानकारी ली जा सके।
भारत ने इस साल जून 2022 में ही अपने दूतावास को सीमित रूप से खोल दिया था। भारत की सलाह के बाद जापान ने भी अपनी योजना को आगे बढ़ाया और 21 अक्टूबर को इसका ऐलान कर दिया। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने एक बार फिर से तालिबान राज में भी अफगानिस्तान में अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया है। हालांकि भारत की अफगानिस्तान में अभी भी मौजूदगी एक संवेदनशील मामला है। भारत ने अभी एक तकनीकी टीम को ही भेजा है। पाकिस्तान का करीबी तालिबानी गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी भी कह चुका है कि वह भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ ऐक्शन लेगा। भारत ने अफगानिस्तान की जनता के लिए बड़े पैमाने पर गेहूं भेजा है। भारत विकास परियोजनाओं को फिर से शुरू करने जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की स्थिति अच्छी है लेकिन उसे सतर्कतापूर्वक कदम उठाने होंगे।
इससे पहले तालिबान राज आने के ठीक पहले भारत ने खुद को पूरी तरह से काबुल से निकाल लिया था। भारत के इस कदम पर विदेशी मामलों के विशेषज्ञों ने सवाल उठाए थे। भारत के जाने के बाद इस बात की आशंका बढ़ गई थी कि पाकिस्तान अफगानिस्तान का खुलकर इस्तेमाल करेगा। पाकिस्तान की हमेशा से ही कोशिश रही है कि वह अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को कम करे। साथ ही अफगानिस्तान को कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के लिए पनाहगार के रूप में इस्तेमाल करे।भारत के इस डर की वजह पाकिस्तानी सेना, ISI और तालिबान के बीच करीबी रिश्ते थे। यही नहीं सितंबर 2021 में तालिबान सरकार आने के बाद ISI के तत्कालीन चीफ फैज हामिद ने काबुल का दौरा भी किया था। हालांकि एक साल में अब हालात बहुत बदल चुके हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि वह अब इस युद्धग्रस्त देश पर पर्दे के पीछे से राज करेगा। यही वजह थी कि पाकिस्तान की सरकार और सेना ने तालिबान की खुलकर मदद की।पाकिस्तानी सेना और तालिबान के बीच आए दिन सीमा पर भीषण गोलाबारी और हवाई हमले हो रहे हैं। तालिबान ने पाकिस्तान को अलग करने वाली डूरंड लाइन को मानने से इंकार कर दिया है। यही नहीं तालिबान के राज में तहरीक-ए-तालिबान आतंकियों ने पाकिस्तान पर हमले तेज कर दिया है। TTP और पाकिस्तानी सेना के बीच तालिबान की मध्यस्थता से हुआ शांति समझौता भी टूट गया है। TTP के अफगानिस्तान में 4000 आतंकी सक्रिय हैं। TTP ने फिर से खून बहाना शुरू कर दिया है। जानकारी के अनुसार TTP ने इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत से हाथ मिला लिया है इसी ने काबुल में पाकिस्तानी राजदूत को मारने की कोशिश की है। तालिबान राज आने के बाद पाकिस्तान में हमलों में 50 फीसदी की तेजी आई है।
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