यूपी ने बजा दी भाजपा की पीपी
पहले कहावत थी कि - माया महा ठगिनी हम जानी 'अब कहा जाता है कि - सत्ता महा ठगिनी हम जानी । यूपी यानी हमारा प्यारा उत्तर प्रदेश एक बार फिर महारथियों के गले की हड्डी कहिये या गले की फांस बन गया है। 2024 के आम चुनाव में इसी यूपी में चारों खाने चित हुई भाजपा की समझ में नहीं आ रहा है कि वो देश की सत्ता के इस प्रवेश द्वार का चौकीदार बदलें या रहने दें ? यूपी में आने वाले दिनों में एक साथ विधानसभा की 10 सीटों के उप चुनाव भी होना है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नाथने के लिए मोशा की जोड़ी ने पिछले 7 साल में क्या कुछ नहीं किया। यूपी के एक राजपथ पर नमो ने मुख्यमंत्री योगी को सार्वजनिक रूप से अपनी जीप के पीछे कदमताल कराई थी। देश के इतिहास में देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री की ये पहली सार्वजनिक बेइज्जती थी ,लेकिन योगी जी योगी ठहरे। शिवभक्त हैं इसलिए अपमान का ये घूँट भी अमृत समझकर पी गए। बाद में मोशा की जोड़ी ने योगी जी को छकाने के लिए उनके दाएं-बाएं एक-एक उपमुख्यमंत्री नत्थी कर दिया लेकिन बात नहीं बनी। योगी को नाथने में मोशा कामयाब नहीं हुए।
आपको पता है कि योगी आदित्यनाथ नाथ सम्प्रदाय से आते हैं। उन्हें उनके गुरु ही नाथ पाए हैं ,दूसरा और कोई नही। लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा का 400 पार का सुन्दर सपना टूटा तो योगी विरोधी एक बार योगी पर राशन-पानी लेकर पिल पड़े। बेचारे लखनऊ से दिल्ली की दौड़ लगा-लगाकर थक गए किन्तु योगी को मुख्यमंत्री पद से विदाई नहीं दिला पाए। योगी जी का सिंघासन हिला पाना उनके विरोधियों के लिए आसान नहीं है। आप इसे टेढ़ी खीर समझिये।
योगी को सत्ताच्युत करने का मन मोशा की जोड़ी का भी है लेकिन वे साहस नहीं कर पारहे हैं। उन्हें पता है कि इस समय उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भाजपा का हिंदुत्ववादी एजेंडा चलाने वाला कोई दूसरा नेता भाजपा के पास नहीं है। कम से कम उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तो कतई नहीं हैं। दूसरे उप मुख्यमंत्री की हैसियत भी योगी के मुकाबले शून्य है। दोनों उपमुख्यमंत्री लोकसभा चुनावों में अपने-अपने इलाकों में नाकाम साबित हो चुके हैं। भाजपा यदि जम्मू-कश्मीर के उप राज्य पाल मनोज सिन्हा को भी उत्तर प्रदेश में योगी का विकल्प नहीं बना सकती।
भाजपा का ही नहीं बल्कि संघ का हाईकमान भी जानता है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वैसे नहीं बदला जा सकता जैसे कि गुजरात में मुख्यमंत्रियों को बदला जाता है। यूपी, गुजरात नहीं है यूपी है। यहां गुजराती मॉडल कामयाब होने वाला नहीं है। दो दिन के लम्बे विचार विमर्श के बाद योगी जी के प्रमुख प्रतिद्वंदी उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य लखनऊ वापस लौटे लेकिन खाली हाथ। उन्हें मोशा की जोड़ी योगी को हटाने का आश्वासन नहीं दे पायी। दे भी नहीं सकती,क्योंकि योगी इस समय भाजपा की मजबूरी बन गए है। बिना योगी के यूपी में भाजपा को अपने पांव जमाये रखने में बहुत समस्या हो सकती है। मोशे की जोड़ी जानती है कि जिस तेजी से यूपी में भाजपा की मुठ्ठी से जनसमर्थन बालू की तरह खिसक रहा है उसे देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन का जोखिम नहीं लिया जा सकता।
योगी आदित्यनाथ के पास सियासत करने के लिए अभी बहुत समय है। वे अभी कुल 52 के हुए है। योगी हवाई जहाज से राजनीति में नहीं उतरे । वे विधायक रहे ,फिर संसद बने और फिर मुख्यमंत्री। योगी ने सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का सम्पूर्णानन्द का कीर्तिमान भंग कर दिया है। वे 2017 से लगातार यूपी के मुख्यमंत्री हैं। उन्हें भाजपा ने पहली बार अपनी जरूरत के हिसाब से और दूसरी बार मजबूरी में मुख्यमंत्री बनाया था। अब भाजपा को ये तय करना है कि लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार के बावजूद योगी जी को आगे भी मुख्यमंत्री पद पर रखा जाये या नहीं ?
आपको ध्यान देना होगा कि योगी आदित्यनाथ भाजपा के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो संघ दीक्षित नहीं है। उन्होंने दीक्षा अपने चाचा महंत अवैद्यनाथ से ली थी। इसलिए योगी जी को न भाजपा नाथ पा रही है और न आरएसएस। वे सबसे अलग हैं। योगी चार बार के सांसद हैं। उनकी अपनी हिन्दू वाहिनी है जो बजरंग दल या विहिप जैसी नहीं है। यानि योगी भाजपा की कृपा से राजनीति में नहीं हैं। वे जिस पार्टी के मंच से राजनीति करेंगे अपना वजूद बनाये रखेंगे। योगी जी पिछले एक दशक में भी बदले नहीं है। वे पहले भी मुस्लिम विरोधी राजनीति करते थे और आज भी कर रहे हैं। 2008 के योगी और 2024 के योगी में कोई फर्क नहीं है। वे उस समय भी दंगावीर थे और आज भी ये हैसियत रखते हैं लेकिन संविधान उन्हें ऐसा करने से रोके हुए है।
आने वाले दिनों में योगी जी अपने पद पर रहेंगे या जायेंगे इसकी भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती ,लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है। मेरा अपना अनुभव कहता है कि योगी आदित्यनाथ को घर बैठना भाजपा के बूते की बात नहीं है।
योगी न तो वसुंधरा राजे सिंधिया हैं और न शिवराज सिंह चौहान। वे आनंदी बाई पटेल भी नहीं हैं। उन्हें उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरह भी नहीं समझा जा सकता। जाहिर है कि योगी जी तभी मुख्यमंत्री पद से हटेंगे जब वे खुद ऐसा चाहें। उन्हें दबाकर, डराकर, धमकाकर मुख्यमंत्री पद से हटाना भाजपा के लिए आसान नहीं है। भाजपा के लिए बेहतर होगा कि वो सब्र से काम ले और योगी जी को तब तक झेले जब तक की वे खुद अपने मठ में वापस लौटने की इच्छा प्रकट न कर दें। क्योंकि आज की परिस्थितियों में एक योगी आदित्यनाथ ही हैं जो राहुल -अखिलेश की जोड़ी का सामना कर सकते है। भाजपा के तरकश में योगी से ज्यादा प्रभावी कोई दूसरा तीर मुझे तो नहीं दिखाई देता।
राकेश अचल
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