झारखंड में छिटक रहा है 'इंडिया गठबंधन' 

झारखंड में छिटक रहा है 'इंडिया गठबंधन' 

देश को दो राज्यों झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। सभी दल अपनी अपनी रणनीति बनाने में लगे हैं लेकिन यहां इंडिया गठबंधन जैसी कोई चीज नजर नहीं आ रही है और इंडिया गठबंधन के सभी घटक दल अपना अपना राग अलाप रहे हैं। इस तरह से भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करना तो दूर आप किसी तरह उनको नहीं रोक सकते हैं। वह क्षेत्रीय पार्टियां भी दूसरे राज्यों में पैर फैला रहीं हैं जहां उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है। यदि हम झारखंड की बात करें तो वहां पिछले विधानसभा चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था तब झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी ने मिलकर सरकार बनाई थी और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने थे। भारतीय जनता पार्टी को 25 सीटें मिली थीं लेकिन उसके पास कोई सहयोगी नहीं था।
 
2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में 
 झारखंड मुक्ति मोर्चा को 30, कांग्रेस को 16, भारतीय जनता पार्टी को 25,  राष्ट्रीय जनता दल को 1,  ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन को 2 तथा अन्य निर्दलीय एवं छोटे दलों को 7 सीटें मिलीं थीं। झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें हैं यानि कि किसी दल को बहुमत के लिए 41 से अधिक सीटें चाहिए। झारखंड में सबसे मजबूत वहां का क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा है उसके बाद भारतीय जनता पार्टी का नंबर आता है और फिर कांग्रेस वहां पर तीसरी सबसे मजबूत पार्टी है। यदि इंडिया गठबंधन वहां मिल कर चुनाव लड़ रहा है तो सबसे मजबूत दल को को वहां पहली तरजीह देनी चाहिए लेकिन ऐसा कहीं भी इंडिया गठबंधन में दिखाई देता है और वह दल भी आंख दिखाने लगते हैं जो एक सीट बमुश्किल जीत सकते हैं। और यही इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी असफलता का कारण है और दूसरा कारण यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का कमजोर होना। और गठबंधन में बड़े क्षेत्रीय दलों का मजबूत होना, यह सब वो कारण हैं जो गठबंधन को कमजोर करते हैं।
 
झारखंड चुनाव को लेकर शनिवार को भारतीय जनता पार्टी ने अपने 66 प्रत्याशियों की पहलू सूची जारी कर दी है। बीजेपी और सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा लगभग पूरी तरह तय माना जा रहा है। लेकिन इंडिया गठबंधन में सीटों को लेकर तकरार शुरू हो गई है। पिछली बार झारखंड में कांग्रेस और आरजेडी और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन कांग्रेस और आरजेडी को ज्यादा सफलता नहीं मिली थी। कांग्रेस को 16 तथा आरजेडी को मात्र एक सीट पर विजय प्राप्त हुई। ऐसे में आरजेडी का ज्यादा सीटों पर कोई हक नही बनता है। कल हेमंत सोरेन के आवास पर कांग्रेस और आरजेडी के साथ दिन भर बैठक चलती रही और देर शाम हेमंत सोरेन ने कहा कि 'इंडिया' गठबंधन सभी 81 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेगा।
 
हेमंत सोरेन ने बैठक के बाद कहा कि पिछली बार झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। लेकिन इस बार लेफ्ट पार्टी भी गठबंधन का हिस्सा हैं। और बैठक में यह तय किया गया है कि 70 सीटों पर कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा चुनाव लड़ेंगे तथा बाकी बची हुई 11 सीटों पर अन्य सहयोगी दल जिनमें आरजेडी और वाम दल शामिल हैं चुनाव लड़ेंगे। हेमंत सोरेन के इस बयान के बाद आरजेडी में उबाल आ गया। और एक के बाद एक असंतुष्ट नेताओं के बयान सामने आने लगे। सबसे बड़ी बात जब हेमंत सोरेन के घर पर बैठक चल रही थी तब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव रांची में ही एक होटल में ठहरे हुए थे। हेमंत सोरेन राहुल गांधी से मिले लेकिन तेजस्वी यादव से न तो राहुल गांधी ने मुलाकात की और न ही हेमंत सोरेन ने। सूत्र बताते हैं कि आरजेडी को सात सीट आफर की गईं हैं लेकिन आरजेडी इससे सहमत नहीं है।
 
किसी भी गठबंधन में सीटों का बंटवारा उनके पिछले प्रदर्शन और वर्तमान समीकरण को देखकर किया जाता है। लेकिन क्षेत्रीय दल अपनी पार्टी के विस्तार के लिए दूसरे राज्यों में भी पैर पसार रहे हैं जो कि किसी भी तरह से उचित नहीं है। इंडिया गठबंधन में झारखंड में केवल झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का ही प्रदर्शन बेहतर है और स्वाभाविक है कि ज्यादा से ज्यादा इन्हीं दलों को सीटें मिलनी चाहिए।
 
क्षेत्रीय दल दूसरे राज्यों में पैर पसारने के कारण अपने ही गठबंधन का नुक़सान करते हैं। हकीकत में यदि देखा जाए तो विपक्ष की फूट का बड़ा फायदा एनडीए को मिल रहा है। और यही कारण है कि एनडीए लगातार मजबूत हो रहा है और इंडिया गठबंधन धीरे धीरे धरातल की तरफ बढ़ रही है। इन्हीं सब कारणों को देखते हुए नितीश कुमार ने अपने आप को इंडिया गठबंधन से दूर किया था क्योंकि वह जानते थे कि ये दल समान विचारधारा के होते हुए भी एक नहीं हो सकते।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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