क्या फ़िल्में और वेब सीरीज अपराध को बढ़ावा दे रहे है?

क्या फ़िल्में और वेब सीरीज अपराध को बढ़ावा दे रहे है?

वर्ष 2022 में कुल 37780 किशोर गिरफ्तार किए गए जबकि वर्ष 2022 की शुरुआत में ही 40663 किशोरों के मामलों का निपटान लंबित था इस तरह लंबित एवं गिरफ्तार किशोर मामलों की संख्या 78443 थी जबकि केवल 1769 किशोर ही जांच के दौरान कोर्ट द्वारा बरी किए गए जबकि 17112 किशोर को सलाह या चेतावनी देकर घर भेज दिया गया, 9045 किशोर को विशेष गृह या अपराध निवारण संस्थान भेजा गया, 4128 किशोर पर जुर्माना लगाया गया, 704 किशोर को कारागार भेजा गया और 41581 किशोरों के आपराधिक मामले लंबित हैं जबकि कोर्ट द्वारा निर्धारित मामलों में 4104 किशोर ही दोष मुक्ति पाए गए हैं। यह जो 41581 किशोर आपराधिक मामले लंबित है उनमें से कितनों ने जमानत पाई और कितनों ने नहीं इसका आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है और हो भी नहीं सकता है, इनमें से अवश्य ही कुछ किशोर को जमानत मिली होगी परंतु बाकियों का क्या समय और धन के बर्बादी के अलावा उनके हाथ केवल अपराध लगा। किशोरों का अपराध में संलिप्तता भारतीय समाज की असफलता को दर्शाता है।
 
समाज के तौर पर हम अपने बच्चों को कैसा तैयार कर रहे हैं, उन्हें कैसा वातावरण दे रहे हैं, उन्हें क्या दिखा रहे हैं, क्या सुना रहे हैं इसकी भारतीय समाज को परवाह ही नहीं है। आश्चर्यजनक की बात है 37780 किशोर जो वर्ष 2022 में गिरफ्तार किए गए उनमें से केवल 2682 ही अनपढ़ थे। सबसे ज्यादा अपराध उन किशोर या बच्चों ने किया जिन्होंने प्राथमिक से कक्षा 10 तक की शिक्षा पाई जिनकी संख्या 17926 थी जबकि प्राथमिकता की शिक्षा पाने वाले किशोर एवं 12वीं तक की शिक्षा पाने वाले किशोर अभियुक्तों की संख्या क्रमशः 8191 और 7919 थी, हैरत वाली बात यह है कि अभिभावकों के साथ रहने वाले किशोर अभियुक्तों की संख्या 29232 थी यह पुनः ध्यान देने वाली बात है कि उन किशोरों की संख्या और अधिक हो सकती है जिनके आपराधिक मामले रिपोर्ट नहीं किए गए या रिपोर्ट नहीं कराये गये। चिंताजनक बात है कि 29232 ऐसे किशोरों ने अपराध किया जो अपने अभिभावकों के साथ रह रहे थे यह चिंताजनक विषय है कि अनाथ बच्चों से ज्यादा अभिभावकों के साथ रहने वाले, अनपढ़ बच्चों से ज्यादा दसवीं तक की शिक्षा पाने वाले किशोर अपराध कर रहे हैं।
 
क्या यह भारतीय अभिभावक की असफलता नहीं है? इसके कारण को हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं जिसे मैं नाम देता हूं 'थ्री सर्कल्स ऑफ बिहेवियर ऑफ जूविनाइल' इसमें पहले और सबसे छोटे घेरे में अभिभावक और उसका बच्चा रहते हैं जो दूसरे घेरे से क्रियाएं एवं व्यवहार सीखते हैं, दूसरे घेरे में अभिभावक एवं उसके आसपास के वातावरण के लोग रहते हैं जो तीसरे एवं सबसे बड़े घेरे से व्यवहार एवं क्रियाएं सीखते हैं, तीसरा जो आखिरी एवं सबसे बड़ा घेरा है जिस घेरे में पूरा संसार आ सकता है जो व्यवहार एवं क्रियाएं बड़ी स्तर पर एक-दूसरे से सीखते हैं, आज के आधुनिक एवं इंटरनेट युग में किशोर तीसरे घेरे से सीधे जुड़ जाता है जिससे उन व्यवहारों से सीधा संपर्क पा लेता है जो दूसरे घेरे एवं पहले घेरे में नहीं होते हैं इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कोरियाई गायको का भारत के बच्चों पर पड़ने वाला व्यावहारिक असर एवं उनके व्यवहार में बदलाव, या एक अंदरूनी गांव में एक किशोर का ऑनलाइन पोर्न देखना। इस क्रम में किशोर तीसरे घेरे से उन बातों को सीखता है जो दूसरे एवं पहले घेरे में उपलब्ध नहीं होती हैं तीसरे घेरे से प्राप्त व्यवहार पहले एवं दूसरे घेरे के किशोर के लिए एकदम नया होता है
 
और वह इस व्यवहार को पूर्ण रूप से अंगीकार कर लेना चाहता है किशोरावस्था में होने के नाते एवं हार्मोन के बदलाव के कारण एक किशोर भावनात्मक एवं लैंगिक रूप से अधिक संवेदनशील होता है इसी संवेदनशीलता में वह उन सभी व्यवहारों को ग्रहण करते हैं या ग्रहण करने की कोशिश करते हैं जिनसे उन्हें आनंद मिलता हो और यही से जन्म लेता है भारतीय समाज में किशोर अपराध। यह वैज्ञानिक पुष्टिकृत तथ्य है कि मानव जैसा देखता है वह वैसा ही करना चाहता है या बनना चाहता है इसलिए इसका उत्तर कहीं-न-कहीं भारतीय समाज में प्रचलित वेब सीरीज भड़काऊ एवं अश्लील गाने एवं मूवीस में दिखाई जा रहे हिंसा, अश्लीलता और नशेबाजी में छुपा हुआ है कि भारतीय किशोरों में गंभीर किस्म के अपराध क्यों बढ़ रहे हैं। इसको इस तरह समझा जा सकता है
 
कि एनसीआरबी की 2010 की रिपोर्ट के अध्याय 10 को देखें तो इस रिपोर्ट में स्पष्ट यह बताया गया है कि किशोरों द्वारा कारित ऐसे अपराधों की संख्या जो भारतीय दंड संहिता 1860 में वर्णित वर्णित थे, की संख्या 22,740 थी इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि सन् 1999 और 2000 में किशोरों द्वारा कारित अपराध जो भारतीय दंड संहिता में वर्णित थे, कुल अपराधों में हिस्सा 0.5% था जो की मात्र एक साल यानी सन 2001 में बढ़कर 0.9% हो जाता है जो की 2010 तक भारत में घटित कुल अपराधों का एक प्रतिशत हिस्सा किशोरों द्वारा कारित किया गया अपराध था। 2010 में किशोरों द्वारा कारित किया गया सबसे अधिक अपराध डकैती, दहेज हत्या, आगजनी एवं दंगा था हैरान करने वाली बात या थी कि आपराधिक न्यासभंग, अपराधिक मानव वध, अपहरण एवं व्यपहरण अपराधों में क्रमशः 64.7% 40% एवं 32.3% अपराधों में वृद्धि दर्ज की गई लेकिन 2010 के बाद अगले बारह साल का आंकड़ा देखें जिसे एनसीआरबी ने 2022 में जारी किया, एनसीआरबी 2022 की रिपोर्ट में या कहा गया कि वर्ष 2022 में पूरे भारत में भारतीय दंड संहिता एवं विशेष एवं स्थानीय कानून में वर्णित अपराध जो किशोरों द्वारा कारित किए गए थे, की संख्या 30555 थी एवं भारत में किए गए कुल अपराधों की हिस्सेदारी में 6.9% थी।
 
यह चिंता जनक बात है कि 12 सालों में 5.9% तक का किशोर अपराध कैसे बढ़ा, हैरत की बात यह है की संपत्ति के विरुद्ध अपराधों की संख्या सबसे ज्यादा रहते हुए 10144 दर्ज की गई चोरी की संख्या 6495 एवं उपहति की संख्या 6023 एवं बलात्कार की संख्या 1130 दर्ज की गई, यह चिंता जनक स्थिति है कि किशोरों द्वारा कारित अपराधिक मामलों की इतनी संख्या होना। उससे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि यह सब अपराध है जिन्हें रिपोर्ट किया गया है वह अपराध संख्या में और अधिक हो सकते हैं जिन अपराधों को रिपोर्ट नहीं किया गया। भारतीय सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित कई ऐसी फिल्में हैं जिनमें हिंसा एवं अश्लीलता खूब दिखाया जाता है और वेब सीरीज को सेंसर बोर्ड से प्रमाणिकता की जरूरत नहीं पड़ती इसलिए उसमें जिस हद तक अश्लीलता एवं हिंसा दिखाई जा सकती है उसमें दिखाई जाती है।
 
भारतीय सेंसर बोर्ड हिंसात्मक फिल्मों को वयस्कों के लिए प्रमाणित कर देता है परंतु इंटरनेट के इस युग में कई वेबसाइट एवं एप्लीकेशन ऐसे वयस्क प्रमाणित फिल्मों को आसानी से उपलब्ध कराते हैं जिन्हें डाउनलोड कर देखा जा सकता है। फलस्वरुप किशोर ऐसे अश्लील एवं हिंसात्मक फिल्में एंव वेब सीरीज देखते हैं तथा वैसा ही बनना पसंद करते हैं जैसा उस फिल्म या वेब सीरीज में उनका मन पसंद नायक दिखाया जाता है। फिल्म एंव वेब सीरीज में दिखाए जा रहे हैं हिंसावादी एवं अश्लील नायक की तरह वह भी हिंसात्मक होना चाहते हैं। लेकिन वह हिंसात्मक क्यों होना चाहते हैं इसका उत्तर है कि वह हिंसात्मक होकर दमदार दिखना चाहते हैं तथा अपने सामने वाले पर हावी होना चाहते हैं, मुसीबत यह है कि किशोर केवल अपराध नहीं कर रहे हैं अपितु इन फिल्मों एंव वेब सीरीज के अश्लील दृश्यों के चलते उनमें चारित्रिक पतन भी देखा गया है,
 
वह नशे को महत्वपूर्ण अंग समझते हैं जिससे वह अपने आदर्श नायक की तरह बन सके और यही कारण है कि भारत में ड्रग कल्चर बढ़ा है। मीडिया केवल ड्रग सप्लायर को ही दोष देता है मगर यह अर्थशास्त्र का सिद्धांत है की मांग सप्लाई को बढ़ाती है। भारतीय सेंसर बोर्ड की यह खामी एवं नाकामी है कि वह ऐसे अश्लील वेब सीरीज एवं फिल्मों पर रोक नहीं लगाता जो भारतीय समाज को नकारात्मक रूप से अशांत करते हैं, ऐसी फिल्में और वेब सीरीज भले ही वयस्कों के लिए प्रमाणित है लेकिन यह विदित है किशोर से अधिक वयस्क अपराध कर रहे हैं इसलिए यह ध्यान देने वाली बात है कि केवल वर्ष 2022 में 6.9% अपराध किशोर द्वारा किए गए हैं बाकी का अपराध वयस्कों द्वारा किया जा रहा है, वयस्क भी प्रभावित होते हैं ऐसे अश्लील एवं हिंसात्मक मनोरंजन माध्यमों एवं चलचित्रों से।
 
भारत के संदर्भ में ऐसी कई फिल्में एवं वेब सीरीज बनी है जो विज्ञान वाद को बढ़ावा देती हैं मगर ऐसी हिंसात्मक एवं अश्लील वेब सीरीज एवं फिल्में ज्यादा प्रचलित होती है क्योंकि वह सोशल मीडिया और बड़े-बड़े होर्डिंग्स द्वारा प्रचारित की जाती हैं, मनोरंजन के नाम पर ऐसी अश्लील एवं हिंसात्मक वेब सीरीज या फिल्में भारतीय समाज पर थोप दी जाती हैं एवं उसे ग्रहण भी कर लिया जाता है जो भारतीय समाज को नकारात्मक रूप से अशांत करती हैं एवं अपराधों में बढ़ावा देती हैं और उत्पादक ऐसी फिल्मों और वेब सीरीज के पीछे पैसा भी लगाते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि भारतीय समाज इसको आसानी से ग्रहण करेगा जिससे उत्पादकों को अच्छा खासा मुनाफा होता है।
 
किशोर अपराधों को बढ़ावा देने में केवल फिल्में और वेब सीरीज ही नहीं बल्कि ऐसे खेल जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं जो प्रकृति में हिंसात्मक होते हैं वह भी जिम्मेदार है, उन खेलों में इस्तेमाल की जाने वाले हथियार भले ही वास्तविक रूप से खेलने वाला इस्तेमाल नहीं करता परंतु वह उसे वास्तविक जीवन में अवश्य इस्तेमाल करना चाहता है फल स्वरुप गैर-कानूनी छोटे हथियार किशोरों के हाथों में आसानी से देखे जा सकते हैं एवं सोशल मीडिया पर तमंचों के साथ किशोरों एवं अन्य वयस्कों का फोटो डालना इसका परिणाम है। 
एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें निजी स्तर पर अपने बच्चों की निगरानी करनी चाहिए की वे क्या देखते हैं क्या सुनते हैं, हमें इसका ख्याल रखना चाहिए कि बड़ों द्वारा किया गया कोई भी कार्य कैसे एक किशोरावस्था में स्थित किशोर को प्रभावित करता है।
 
हम ऐसा वातावरण बनाएं जिसमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिले, मानवता को बढ़ावा मिले तर्क करने की क्षमता हो जहां ऐसे मनोरंजन साधन उपलब्ध हो जो एक किशोर के मस्तिष्क को रचनात्मक बनाएं न कि ऐसे मनोरंजन के साधनों को बढ़ावा मिले जो हिंसा एवं अश्लीलता को बढ़ावा दते है। इसलिए एक जागरूक एवं जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम खुद भी ऐसे मनोरंजन साधनों का उपयोग न करें एवं अपने आने वाली पीढ़ी और बची हुई पीढ़ी को ऐसे मनोरंजन साधनों का उपयोग करने से बचाये एवं तर्कवाद एवं विज्ञान वाद को बढ़ावा दें और इसे अपनाये, अंत में हम भारत को एक सफल राष्ट्र के रूप में निर्मित कर सकेंगे।
 
अमन कुमार विधि संकाय लखनऊ विश्वविद्यालय

About The Author

Post Comment

Comment List

Online Channel

साहित्य ज्योतिष

कविता
कुवलय
संजीव-नी|
संजीव-नी।
संजीव-नी।