गौरैया की गुमशुदगी:पर्यावरणीय संतुलन की चेतावनी

गौरैया की गुमशुदगी:पर्यावरणीय संतुलन की चेतावनी

गौरैया, एक ऐसा जीव जो कभी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करता था, आजकल लगभग गुम हो चुका है। इसे न केवल एक चिड़िया के रूप में देखा जाना चाहिए, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा, और जीव-जंतुओं के बीच के प्राकृतिक संतुलन का प्रतीक भी है। गौरैया की मीठी चहचहाहट, जो सुबह-सवेरे हमारे आंगनों में गूंजती थी, आज उस आवाज़ का न होना हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि कहीं न कहीं हमने प्रकृति से दूरी बना ली है।

लगभग तीन दशक पूर्व, जब मोबाइल युग का आरंभ नहीं हुआ था, तब गौरैया की उपस्थिति से हमारा जीवन खुशनुमा रहता था। सुबह की पहली किरण के साथ-साथ उसके चहचहाने की आवाज़ सुनाई देती थी, और यह आवाज़ न केवल हमें ऊर्जा देती थी, बल्कि हमारे दिन की शुरुआत को भी आनंदमय बनाती थी। आज की आधुनिकता और तकनीकी विकास के कारण गौरैया की संख्या में गिरावट आ गई है। मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन ने इसके जीवन में विषाक्तता घोल दी है। यह रेडिएशन न केवल गौरैया के लिए हानिकारक है, बल्कि इसके कारण अनेक जीवों का अस्तित्व संकट में है।

एक ओर, शहरीकरण के इस दौर में हरियाली का तेजी से कम होना गौरैया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने न केवल गौरैयों को घोंसले बनाने के लिए आवश्यक स्थान कम कर दिये, बल्कि इसकी प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित किया है। पहले जहां घरों की छतों और बगीचों में गौरैया के घोंसले बने रहते थे, अब वहां सीमेंट और कंक्रीट की दीवारें खड़ी हैं।

इस संदर्भ में गौरैया की घटती संख्या सिर्फ एक पक्षी के लिए खतरा नहीं है; यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए भी एक चेतावनी है। गौरैया खाद्य श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह कीटों को नियंत्रित करती है, जिससे फसलों को नुकसान नहीं होता। यदि गौरैया की संख्या में कमी जारी रही, तो यह पारिस्थितिकीय संतुलन में और अधिक असंतुलन का कारण बनेगा, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।

समाज को इस समस्या की गंभीरता को समझने की आवश्यकता है। गौरैया का संरक्षण केवल पर्यावरण के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है। इसके लिए सबसे पहले हमें अपने आसपास के पर्यावरण को संरक्षित करने का संकल्प लेना होगा। हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकना होगा, और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे शहरों में हरियाली बनी रहे, ताकि गौरैया को अपनी पहचान फिर से मिल सके।

साथ ही, हमें तकनीकी विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूक रहना होगा। मोबाइल टावरों की संख्या को नियंत्रित करना और उनकी तकनीक में सुधार लाना आवश्यक है। कंपनियों को ऐसे विकल्पों की खोज करनी चाहिए जो रेडिएशन के प्रभाव को कम कर सकें, ताकि ये छोटे जीव भी सुरक्षित रह सकें। इसके अलावा, सामुदायिक स्तर पर जागरूकता फैलाना भी आवश्यक है। बच्चों को, जो हमारे भविष्य के निर्माता हैं,गौरैया की अहमियत के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। स्कूलों में प्रकृति से जुड़ी गतिविधियों का आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील बन सकें।

गौरैया का संरक्षण केवल एक चिड़िया की सुरक्षा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक जीवन शैली का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ संतुलन में रहना कितना आवश्यक है। जब हम गौरैया की चहचहाहट सुनते हैं, तो यह हमारे मन में शांति और आनंद की अनुभूति कराती है। इसलिए, यह हमारा दायित्व है कि हम इसे अपने जीवन में पुनः शामिल करें।

यदि हम सच में गौरैया के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं, तो हमें अपने घरों में इसके लिए छोटे-छोटे घोंसले बनाने की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। हम अनाज के दाने और पानी के छोटे पात्र रखकर इन्हें आकर्षित कर सकते हैं। यह केवल गौरैया को ही नहीं, बल्कि अन्य पक्षियों और जीवों को भी हमारे करीब लाने का एक साधन है।

इस दिशा में कार्य करने के लिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग इस समस्या की गंभीरता को समझें और इसका समाधान निकालने के लिए सामूहिक प्रयास करें। जब हम गौरैया की मीठी चहचहाहट को फिर से सुन पाएंगे, तो यह हमारे लिए न केवल एक सुखद अनुभव होगा, बल्कि यह हमारे प्रयासों की सफलता का भी प्रतीक होगा।

आज जब हम अपने आँगन में गौरैया की अनुपस्थिति को महसूस करते हैं,तो यह हमारे लिए एक चुनौती है।ये हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमने अपनी प्रकृति से कितना कुछ खो दिया है। यह एक पक्षी की गुमशुदगी नहीं, बल्कि हमारी उन सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों की भी कमी है, जो हमें संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। आइए, हम सब मिलकर गौरैया के संरक्षण में योगदान दें। यह केवल एक पक्षी को बचाने का प्रयास नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण की रक्षा और हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोने का एक प्रयास है। हम सभी को एकजुट होकर इस दिशा में कार्य करना होगा, ताकि हमारी अगली पीढ़ी भी गौरैया की चहचहाहट का आनंद ले सके।

यदि हम सच में अपने पर्यावरण के प्रति सजग हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा प्रयास केवल आज तक सीमित न रहे। यह एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए, जिसमें हम सभी अपनी भूमिका निभाएं। गौरैया की आवाज़ हमें याद दिलाती है कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। इसे बचाने के लिए हम सभी को एकजुट होकर कार्य करना होगा, ताकि इस प्यारे पक्षी की उपस्थिति हमारे जीवन में फिर से रंग भर सके।

गौरैया का संरक्षण हमारे लिए एक चुनौती तो है ही साथ ही यह एक अवसर भी है। जो हमें यह सोचने का मौका देती है कि हम अपने पर्यावरण के प्रति कितने जिम्मेदार हैं। यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो वह दिन दूर नहीं जब गौरैया की चहचहाहट हमारे आंगन को फिर से भर देगी और हमारे जीवन को खुशियों से परिपूर्ण कर देगी।

युवराज पटेल
लालगंज अझारा, प्रतापगढ़

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