बजट पर राजनीति या राजनीति का बजट

बजट पर राजनीति या राजनीति का बजट

विपक्ष द्वारा इस वर्ष के बजट को राजनीति का शिकार घोषित कर दिया। विपक्षी नेताओं का जबाब जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से नहीं मिला तो उन्होंने सदन से वाकआउट कर दिया। और आरोप लगाया कि सरकार को बचाने के लिए आन्ध्र प्रदेश और बिहार को भारी भरकम बजट दिया गया है जब कि अन्य प्रदेशों की अनदेखी की गई है। विपक्ष का यह प्लान पहले से तैयार था क्योंकि सभी को पता था कि सरकार जब आन्ध्र प्रदेश और बिहार की बैशाखियों पर टिकी है तो निश्चित ही इन प्रदेशों के लिए कुछ विशेष करना ही पड़ेगा। खैर यह तो राजनीति वाली बात हो गई। सरकार ने किया तो सरकार पर आरोप लगाया गया यदि सरकार ऐसा न करती तो चन्द्र बाबू नायडू और नितीश कुमार पर आरोप लगता कि आखिर किस वज़ह से वह सरकार को समर्थन दे रहे हैं कि अपने राज्य के लिए कुछ ले ही नहीं पाए।

यह विपक्ष का काम है और विपक्ष करता रहेगा। अब मुद्दा यह है कि क्या वास्तव में अन्य प्रदेशों की अनदेखी की गई है। तो इसमें यह बात निकल कर सामने आती है कि इन दो राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश को भी अतिरिक्त बजट दिया गया है। जिस तरह से केन्द्रीय बजट में आन्ध्र प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों को कुछ स्पेशल करना था उसी तरह से उत्तर प्रदेश में भी बजट का अधिक देना मजबूरी थी क्यों कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति धीरे धीरे नीचे खिसक रही है। हाल के लोकसभा चुनाव को देखें तो उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी दूसरे पायदान पर आ गई है और इसके लिए पार्टी के अंदर संग्राम मचा हुआ है। मध्यप्रदेश और राजस्थान, छत्तीसगढ़ के लिए कुछ स्पेशल नहीं किया गया है।

इन तीनों राज्यों में अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने अच्छे बहुमत से सरकार बनाई है। और लोकसभा चुनाव में भी थोड़ी बहुत टक्कर राजस्थान में कांग्रेस ने दी है जबकि मध्यप्रदेश में तो सभी दलों का भारतीय जनता पार्टी ने सफाया कर दिया है। यहां तक कि अभी तीन महीने बाद जिन चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां का भी नाम बजट में विशेष रुप से नहीं लिया गया है। अब इस बजट पर अलग-अलग प्रक्रिया आ रहीं हैं। लेकिन संदेश एक ही है। जहां सत्ता पक्ष इस बजट को सर्वोच्च बता रहा है वहीं विपक्ष ने इसको किसान विरोधी, ग़रीब विरोधी करार दिया है।

ऐसा होना ही था और विपक्ष को यह इंतजार भी था कि इस पेश हुए बजट पर हमको क्या प्रक्रिया देनी है। अखिलेश यादव के लोकसभा में पहुंच जाने से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को बहुत सपोर्ट मिला है। क्यों कि कांग्रेस के तमाम नेता जो राहुल गांधी के बहुत क़रीबी माने जाते थे वह साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं।‌और इस बार अखिलेश यादव भी भारी भरकम सांसदों की संख्या के साथ लोकसभा में पहुंचे हैं। समाजवादी पार्टी के 37 सांसद जीते हैं। और वह सांसदों के हिसाब से देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सदन में है। अगर देखा जाए तो विपक्ष इस समय काफी मजबूत स्थिति में है। और यह निश्चित है कि इस बार सदन सहजता पूर्वक नहीं चलने वाला है।
 
ये दो युवा नेता सत्ता पक्ष पर लगातार बार करेंगे। हमने पहले भी देखा है कि बजट सत्र काफी हंगामेदार होता है लेकिन यह हंगामा तब और बढ़ता है जब कोई सरकारी बैशाखियों पर टिकी हुई हो। चन्द बाबू नायडू और नितीश कुमार का कोई भरोसा नहीं है ये कब सरकार पलट दें तो विपक्ष ही यही समय तलाश रहा है कि क्या एनडीए की सरकार गिर सकती है। बिहार के लिए मांग जो और भी ज्यादा की जा रही थी वह अपने मकसद में कामयाब रहे हैं। लेकिन यह सत्य है कि इन राज्यों के आगे अन्य राज्यों की अनदेखी की गयी है। इसको उम्मीदों का बजट न कह कर कुछ लाचारी का बजट भी कहा जा सकता है। इंडिया गठबंधन के घटक दलों के सांसदों ने लोकसभा और राज्यसभा में बजट का विरोध किया है। राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा है कि बिहार और आन्ध्र को पकौड़ा और जलेबी परसी गईं हैं। अन्य राज्यों को कुछ नहीं मिला है।
 
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने तो स्पष्ट कह दिया है कि हम किसानों के लिए पैकेज की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार ने बिहार और आन्ध्र को पैकेज दिया है। लेकिन विपक्ष को यह देखना होगा कि उन्होंने अपनी सरकार वाले राज्यों को भी पैकेज नहीं दिया है। क्यों भारतीय जनता पार्टी का पहला काम है अपनी सरकार को चलाए रहने का और उन्होंने किया भी वही है। उत्तर प्रदेश की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए अतिरिक्त पैकेज दिया गया है। क्यों कि भारतीय जनता पार्टी सरकार को जो सबसे ज्यादा डर लग रहा है वह है उत्तर प्रदेश का। उत्तर प्रदेश में जब जब जिसकी स्थित रहती है केन्द्र में उसका असर ज़रूर पड़ता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विपक्ष के आरोपों को बेतुका करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया है।उन्होंने कहा कि बजट भाषण में राज्यों का नाम न लेने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस द्वारा पूर्व में पेश किए गए बजट में भी सभी राज्यों का कभी उल्लेख नहीं किया गया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 'एक्स' पर कहा है कि यह बजट संघीय ढांचे की गरिमा पर गहरा आघात है। सत्ता बचाने के लिए लोभ में अन्य राज्यों की उपेक्षा की गई है इन राज्यों के साथ पक्षपात किया गया है।
 
एक तरह से देखा जाए तो विपक्ष के आरोप ठीक भी हैं।‌ लेकिन निर्मला सीतारमण को पार्टी धर्म भी निभाना है। बजट कभी भी बिना भेद भाव के पारित भी नहीं हुआ है इसमें हमेशा अपने पसंदीदा राज्यों को भारी भरकर बजट दिया जाता है। जब कि अन्य राज्यों की अपेक्षा की जाती है। दरअसल इस बार यह बजट भारतीय जनता पार्टी का बजट नहीं है बल्कि एनडीए का बजट है जिसमें घटक दलों का भी पूरा ध्यान रखा गया है। और ऐसे दल जिनके सहारे पर सरकार टिकी है उनके लिए तो कुछ विशेष करना ही होगा। निर्मला सीतारमण अब नई नेता नहीं हैं वह कई बार बजट पेश कर चुकीं हैं और उनके पास विपक्ष की हर बातों का जबाब भी है। बजट बनाते समय समाज के हर क्षेत्र और हर व्यक्ति का ध्यान रखना पड़ता है। और जब सरकार गठबंधन की चल रही हो तो यह उनका दायित्व भी बन जाता है कि वह अपना गठबंधन धर्म निभाएं। यह कुशलता भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कूट कूट कर भरी हुई है। अब विपक्ष चाहे इस बजट कुछ भी बोलने के लिए तैयार हो।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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