चाँद मियां से चाँद तक का सफर

चाँद मियां से चाँद तक का सफर

रोजाना लिखकर दिहाड़ी कमाने वाले हम जैसे लोग आजकल चकरघिन्नी बने हुए है । लिखने के लिए इतने मुद्दे और विषय कुकुरमुत्तों की तरह उग आते हैं।  तय कर पाना कठिन हो जाता है कि  कौन से मुद्दे पर लिखा जाये और कौन से छोड़ दिया जाये ? आज भी समाने चाँद मियां हैं, गांधी बब्बा  हैं, सर्वपितृ  मोक्ष अमावस्या है और नितिन गडकरी की विषकन्या है। बात चाँद मियाँ से शुरू करते है।  ये चाँद मियां अपने चिर-परिचित साईं बाबा हैं।  काशी के ब्राम्हणो ने अपने शहर के मंदिरों से चाँद मियां की 14  प्रतिमाएं ऐसे हटा दीं जैसे वे कोई आतंकवादी हों। साईं बाबा का नाम चाँद मियां हो या अब्दुल इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क इस बात से पड़ रहा है कि  समाज में नफरत मनुष्यों से होती हुई अब बुतों पर आ गयी है। साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां के खिलाफ नफरत का श्रीगणेश दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने किया था ।  काशी के ब्राम्हणों की करतूत देखकर स्वामी जी की आत्मा गदगद हो रही होगी। स्वाभाविक है ऐसा होना।

हमारे देश में किसी चाँद मियां को पूजने की गुंजाईश नहीं है ।  काशी के पंडितों का पंडितों के बूते से बाहर है अन्यथा वे चाँद मियां के बुतों के साथ ही अजमेर जाकर ख्वाजा साहब की मजार भी उखाड़ फेंकते क्योंकि वे भी मियां हैं। काशी के ब्राम्हण दरअसल साईं बाबा की पूजा को प्रेत पूजा मानकर इसको सनातन विरोधी  बता रहे हैं जैसे सनातनी प्रेत,भूत,मशान की पूजा करते ही नहीं हैं। वे पूरे पितृपक्ष में क्या करते हैं वे खुद नहीं जानते। दरअसल काशी के ब्राम्हण न चाँद का अर्थ जानते हैं और न मियाँ का। उनके लिए तो ये दोनों म्लेच्छ हैं,विजातीय हैं,विधर्मी हैं ,उन्हें मंदिरों में पूजने की तो छोड़िये इस मुल्क में भी रहने की इजाजत नहीं दी जाना चाहिए।

कोई चार दशक पहले मैंने भी साईं बाबा के मंदिर जाकर शायद पाप किया था ।  मुझे उस समय किसी ब्राम्हण या शंकराचार्य ने बताया   ही नहीं कि साईं   बाबा चाँद मियां हैं इसलिए उनके दर्शन करने से पाप लगता है। शिरडी के साईं मंदिर में जाने वालों को ये काशी वाले कैसे रोकेंगे मुझे पता नहीं क्योंकि वहां आज भी हर दिन हजारों लोग जाते हैं। काशी वालों कि संसद आजकल देश कि प्रधानमंत्री भी हैं उन्हें चाहिए कि  वे देश में जहँ-जहाँ चाँद मियां कि मंदिर हैं उनके ऊपर बुलडोजर चलवा दें।  शिरडी में तो ये काम और आसान है क्योंकि वहां उनकी अपनी डबल इंजिन की सरकार है। इसके लिए संसद में कोई विधेयक लाने या अध्यादेश  जारी करने की भी जरूरत नहीं है

इस देश की खासियत ये है कि  यहां के ब्राम्हणों को अपना   मूल काम करने की तो फुरसत नहीं है और ऊल-जलूल काम करने कि लिए वे हमेशा तैयार रहते हैं। मैं अभी तक ब्राम्हणों को विद्व्त परिषद का सम्माननीय सदस्य मानता था लेकिन मुझे अब लगता है कि काशी के ब्राम्हण मंडन मिश्र की परम्परा कि ब्राम्हण नहीं है।  वे कूप मंडूक हैं ,उन्हें भी सियासत करना आ गया है। वे भी सरकार की हिन्दू राष्ट्र की कल्पना में डुबकियां लगा रहे हैं। जन्मना मै भी एक ब्राम्हण हूँ लेकिन मुझे ईश्वर की कृपा से न ऐसे सपने आते हैं और न मुझे किसी की पूजा-रचा से कोई आपत्ति है। जिसे ,जो पसंद है वो उसे पूजे। मंदिर बांये,मस्जिद बनाये ,गुरूद्वारे बनाये ,गिरजाघर बनाये। चाहे तो अपने नेताओं की प्रतिमाएं बनाकर उन्हें चाँद मियां के स्थान   पर लगवा कर प्राण- प्रतिष्ठित कर दे।

मुझे l लगता  है कि काशी में जो हुआ है उससे एक बात तो प्रमाणित हो गयी है की नितिन गडकरी की विषकन्या अपना काम करने में कामयाबी कि बहुत नजदीक है। विषकन्या अर्थात सत्ता ने समाज में इतना जहर घोल दिया है की वो अब आदमियों कि साथ-साथ बुतों से भी अदावत मानने लगा है। मेरा आज भी मानना है की काशी कि ब्राम्हण हों या उनके स्मार्टक हिन्दू धर्म में आयी संकीर्णता की वजह से धर्म की दरकती ईंटों को देखकर आतंकित हैं ,उन्हें अपनी रोजी-रोटी पर  खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है ।  ये खतरा है या नहीं अलग बात है लेकिन उन्हें ये खतरा महसूस कराया जा रहा है फर्जी आंकड़े दिखाकर ।काशी कि ब्राम्हण नहीं जानते कि चाँद मियां की बिरादरी में बुत परस्ती की मुमानियत है । उनके यहां पांच वक्त की आरती नहीं नमाज होती है  ये तो हम हिन्दुओं में ही मुमकिन है। चाँद मियां कि मंदिर और बुत किसी मुसलमान ने नहीं बनवाये,हिन्दुओं ने बनवाये  है।वाहन पांच वक्त की आरती चाँद मियां की बिरादरी वालों ने शुरू नहीं की बल्कि हिन्दुओं ने शुरू की है।   ऐसे लोगों को देशद्रोही, धर्मविरोधी करार देकर देश के बाहर कर देना चाहिए।

दरअसल ये मंगल पर जाने का नहीं अपितु गाय और गोबर की और लौटने का युग है।  यहां गाय को राजमाता बनाने की होड़ चल  रही है और इसके पीछे वे ही पावन हाथ हैं जो गोमांस  का निर्यात करते हैं। लेकिन काशी कि पंडितों का जोर इनके ऊपर नहीं चलता।  काशी वाले चाँद मियां की प्रतिमाएं तो हटा और हटवा सकते हैं लेकिन गोमांस  का भक्षण करने वाले किसी केंद्रीय मंत्री को मंत्रिमंडल से नहीं निकलवा सकते। । आज जब मै ये सब लिख रहा हूँ  तब मुझे महात्मा गाँधी की याद आती है ।

 आज उनका जन्मदिन है। अच्छा हुआ कि वे आज नहीं हैं अन्यथा काशी वालों की करतूत उन्हें भी बहुत परेशान करती। वे परेशान होकर आज भी -' सबको सन्मति दे भगवान ' का भजन गाते दिखाई देते। चाँद मियां के बुतों कि दुश्मनों के लिए तो बाबा गाँधी कि बुत भी कांटे की तरह चुभते हैं। लेकिन सियासी मजबूरी है कि उन्हें देश में भी और विदेश में भी गांधी कि बुतों कि आगे बुत बनकर  अपना शीश  झुकाना  पड़ता है।काशी ब्रांड पंडितों का जोर नहीं है अन्यथा वे गाँधी के बुतों की जगह क्रांतिवीरों कि बुत स्थापित कर चुके होते।
बहरहाल आज पितृमोक्ष अमवस्या है।

 आज अपने पूर्वजों कि तर्पण का आखरी दिन है ।  काशी कि पंडित अपने पूर्वजों को कैसे विदा करते हैं ये आप सभी ने देख  लिया है।  काशी के पंडितों को पहले मियाँ शब्द कि अर्थ को जान लेना चाहिये ।  चाँद मियां कि साथ जो मियां शब्द बाबस्ता है  वो फ़ारसी का शब्द है। संस्कृत में भी होता तो भी उसका अर्थ  स्त्री का पति, स्वामी, मालिक सादात ही होता।  मियां का अर्थ अल्लाह,मुर्शिद, पीर ,संगीतज्ञ, मिरासी,  मूर्ख, दीवाना, बावला मीरान अर्थात सरदार,आक़ा, मालिक, हाकिम, सरदार, बुज़ुर्ग, वाली वारिस उस्ताद, पढ़ाने वाला, मुल्ला ही होता।

 वैसे पहाड़ी राजपूत, राजाओं के ख़ानदानी लोग, ठाकुर, शहज़ादे, शाही ख़ानदान के लोग भी एक -दूसरे के लिए जाने-अनजाने  मियां शब्द का इस्तेमाल  करते रहे हैं। हम तो उन शाइरों को जानते हैं जिनके  नाम कि आगे मियां ऐसे जुड़ा होता है जैसे किसी शहजादे की टोपी में सुर्खाब का पर।  मियां नासिख़, मियां मुसहफ़ी, मियां जुराअत, मियां इशक़ का नाम तो आपने भी सुना ही होगा। हमारे शिवदयाल अष्ठाना  तो हमें  हमेशा मियां ही कहकर पुकारते थे। वे लखनऊ के थे ।  वे भी आज हंस रहें होंगे कहीं स्वर्ग में ये सब देखकर।

 राकेश अचल

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