आइये ज्ञान से रोशन दीप-माला से  अज्ञानता के गहन अंधकार को मिटाए। 

आइये ज्ञान से रोशन दीप-माला से  अज्ञानता के गहन अंधकार को मिटाए। 

(शुभ दीपावली महापर्व )
दीपावली आशाओं के दीप जलाकर निराशा के अंधियारे को मिटाने का अवसर है। सकारात्मक सोच और अच्छे परिणाम की आशाओं को को लेकर कठिन परिश्रम और मनोबल के साथ जीवन में उत्तरोत्तर प्रगति करना ही दीपावली मनाने का सत्यार्थ प्रयोजन है। दीपावली का हर दीपक आशाओं का आकांक्षाओं का और महत्वाकांक्षाओं के निहितार्थ होता है। श्रम से अपने सभी प्रयास सफल कर हर उस आकांक्षा को फलिभूत करना होगा जिसकी हमने परिकल्पना की थी। आओ हम सब मिलकर आशाओं के दीप जलाएं खुशियों की दीपावली को द्विगुणित करें।
 
पौराणिक कथाओं के अनुसार दीपावली भगवान रामचंद्र जी 14 वर्षों के वनवास के बाद समस्त बुराइयों के प्रतीक रावण के वध के पश्चात अयोध्या लौटने पर इनका अयोध्या वासियों द्वारा घी की दीपमालाओं को नगर में कतार में लगाकर स्वागत किया गया था। राजा रामचंद्र जी सद्गुणों,अच्छाइयों, धैर्य,संयम और देव तुल्य सद्गुणों के न सिर्फ प्रतीक माने जाते हैं बल्कि स्वयं सिद्ध देवता भी हैं, जिन्होंने संपूर्ण जगत को रावण जैसी अनंत बुराइयों से मुक्त कराया था। आज उसी परंपरा पारीपाटी र्को शिरोधार्य करते हुए मेहनतकश कुम्हारों और मां धरती की मिट्टी से बने पवित्र दीपों से उद्दीप्त करके समस्त सद्गुणों को द्विगुणित करने के लिए यह त्यौहार समस्त ऊर्जा और उत्साह से मनाते हैं।
 
जगत वासी एक दूसरे से मिलकर बुराइयों के प्रतीकों को नष्ट करने का संकल्प लेकर एक दूसरे का मुंह मीठा भी कराते हैं, एवं औपचारिक तौर पर एक-दूसरे को उपहार देने का उपक्रम भी किया जाता है। गहन तमस पर उजाले की जीत का पर्व ही दीपावली है। सही मायने में दीपावली में हमें अपने घरों को माटी के दीपों से उज्जवल इत कर अपने व्यक्तित्व को ज्ञान के दीप से उद्दीप्त करना चाहिए। ऋषि मुनि ऐसा कह गए हैं कि शरीर को एक दिन इसी माटी में मिल जाना है और व्यक्तित्व तथा मस्तिष्क के ज्ञान की जो अविरल धारा आपके जीवन में बहेगी वह अनवरत कई पीढ़ियों तक सुदीप्त होती रहेगी, मनुष्य का जीवन अत्यंत अनमोल है इसी तरह जीवन में प्रकाश भी चाहे वह दीपों से हो या ज्ञान से हो जीवन को प्रकाशमान करते रहना होगा।
 
दीपावली मूलतः प्रकाश का त्यौहार है। पौराणिक कथाओं के अनुसार धन, समृद्धि, विघ्न हरण एवं ऐश्वर्य के प्रतीक भगवान गणेश एवं माता लक्ष्मी की श्रद्धा पूर्वक पूजा करते हैं एवं दीपावली के एक दिन पूर्व धनत्रयोदशी या धनतेरस अति शुभ माना जाता है। इस दिन लोग स्वर्ण अथवा रजत के आभूषण खरीदना अत्यंत शुभ लक्षण मानते हैं। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है माना जाता है कि समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी जी की इसी दिन से उत्पत्ति हुई थी, इसीलिए इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा धूमधाम से की जाती है।
 
समुद्र मंथन से ही धनवंतरी जिन्हें औषधि विज्ञान का अविष्कारक माना जाता है की उत्पत्ति कार्तिक मास की त्रयोदशी मुहूर्त में हुई थी, इसीलिए धनवंतरी के नाम पर धनतेरस पर्व रखा गया है। पश्चिम बंगाल के लोग दीपावली को काली पूजा के रूप में मानते हैं वहां बड़े-बड़े एवं भव्य पंडालों के भीतर मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है काली की पूजा के बाद वहां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। सही मायने में दीपावली का अपना धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। किंतु दीपावली के इस परंपरागत पवित्र त्यौहार में कुछ लोग अपने ऐश्वर्या का प्रदर्शन करने के लिए हजारों, लाखों रुपए के पटाखे छोड़कर वायु को प्रदूषित करते हैं, जो वायुमंडल के लिए अत्यंत खतरनाक होती है।
 
इस त्यौहार की सबसे बड़ी कमी इस बात की होती है कि लोग इस दिन जुआ खेलते हैं जो एक सामाजिक बुराई भी है। दीपावली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय के अपने संदेश को सार्थक करता नजर आता है। आज हमें अपनी व्यक्तित्व से और सामाजिक से बुराइयों को दूर कर अच्छाइयों को साथ लेकर चलने से यह दीपोत्सव का पर्व सचमुच सार्थक हो जाएगा। दीपावली की पुनः शुभकामनाएं।

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