सोनभद्र ओबरा सी परियोजना में दुष्यंत कंपनी के श्रमिक आखिरकार कब तक होते रहेंगे आर्थिक,मानसिक शोषण के शिकार।
ओबरा सी तापीय परियोजना 13750 करोड़ की लागत से बन रहा है।
(सोनभद्र से अजीत प्रताप सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट)
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश।
ओबरा परियोजना में कार्यरत मजदूरों ने अपनी पीड़ा ब्यक्त करते हुए कहा कि“क्यों भइया इ अन्याय और शोषण ही तो है,।कहने को 8 घंटे काम लिया जाता है लेकिन 12 घंटे हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी न समय से मजदूरी दी जाती है और ना ही हमारी कोई समस्या सुनी जाती है। हम गांव-देहात के गरीब मजदूर हैं। कार्यरत कंपनी वाले विदेशी हैं तो क्या हमारे सर पर चढ़कर.! इतना कहकर श्रमिक अपनी आप-बीती बताते हुए रो पड़ते हैं।
जिन श्रमिकों के कठिन श्रम और पसीने के बलबूते सोनभद्र को उर्जांचल नगरी का दर्जा हासिल हो रखा है आज वही श्रमिक बदहाल, बेबस और बदहवास हालत में नज़र आता है। दिनभर के हाड़तोड़ मेहनत और पसीने बहाने के बाद भी महीने बाद जब उसके वेतन की आस निराशा में तब्दील हो जाता है जिससे उनके अरमानों और उत्साह ठेस पहुंचता है।कुछ इसी तरह की मनोदशा से गुजर रहे हैं सोनभद्र के श्रमिक जिनकी हालत देखनी हो तो इनके कार्यस्थल से लेकर इनके रहन-सहन और इनके घर-परिवार को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है । इतनी हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी इनकी हीन-दीन दशा में सुधार क्यों नहीं हो पा रहा है?
इसका सीधा सा जवाब मिलता है निर्धारित कार्य से अत्यधिक कार्य लेना, समय से वेतन न देना, अपने हक़ अधिकारों के लिए आवाज उठाने पर तमाम तरह की आर्थिक, मानसिक प्रताड़नाओं के दौर से गुजरना पड़ता है।ऐसी स्थिति में श्रमिक बेदम बेबस और लाचार बन जाता है, यदि इन्हें श्रमिकों हितों की खातिर आवाज बुलंद करने वाले साथियों का साथ न मिले तो इनकी आवाज भी दबकर रह जाती है ।
दरअसल सोनभद्र जिले के थर्मल पॉवर प्लांट में काम करने वाले श्रमिकों के शोषण की बात कोई नई नहीं है पिछले दिनों सोनभद्र के ओबरा थर्मल पावर प्लांट के ओबरा ‘सी’ में कार्यरत मजदूरों ने अपनी वेतन विसंगतियों सहित विभिन्न समस्याओं को लेकर प्रदर्शन किया था जिसमें पुरानी समस्याओं का अंबार स्वत: ही ताजा हो उठा है।
कई दिनों की रस्साकसी के बाद उपजिलाधिकारी ओबरा के मान-मनौव्वल और ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट के अधिकारियों पर श्रमिकों का आक्रोश थमा तो है, लेकिन उनमें ओबरा ‘सी’ ख़ासकर ओबरा ‘सी’ को पूरा कराने में लगी कोरियाई कंपनी दुसान को लेकर आज भी आक्रोश बना हुआ है। इस मसले पर श्रमिकों का कहना है कि “दुसान कंपनी ने श्रमिकों के साथ सिर्फ आर्थिक शोषण का ही खेल नहीं खेला है बल्कि उनका भरोसा भी तोड़ा है। हाड़तोड़ मेहनत करने वाले श्रमिकों के हक़ पर डाका डाल कर यह आगे बढ़ तो सकते हैं, लेकिन श्रमिकों का दिल नहीं जीत सकते हैं।”
वेतन बकाए को लेकर श्रमिकों का फूटा आक्रोश
पिछले दिनों में ओबरा थर्मल पॉवर के ओबरा ‘सी’ परियोजना में कार्यरत टीएमसी कंपनी में श्रमिकों का पिछले चार महीने से वेतन बकाया चला आ रहा था जिसे लेकर श्रमिकों में आक्रोश पनपने लगा था। श्रमिकों का आरोप रहा है कि इस बारे में कई बार उन्होंने (मजदूरों) अपने नियोक्ता से संपर्क किया है, परंतु कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया था।ऐसे में आर्थिक संकट के कारण मजदूरों को अपने परिवार के भरण-पोषण में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
श्रमिकों की मानें तो बार-बार गुहार लगाने के बाद भी कंपनी और कंपनी का काम देख रहे अधिकारियों ठेकेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा है और उन्हें विवश होकर आंदोलन की राह पकड़नी पड़ी है। उपरोक्त के संबंध में ग्राम सेवा समिति के अध्यक्ष शिवदत्त दुबे 'स्वतंत्र प्रभात’ को अपने बयान में बताया कि “समय से और निरंतर वेतन न दिए जाने से श्रमिकों की सभी मूलभूत आवश्यकताएं प्रभावित हो रही है। रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो गया है।
भोजन, बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने में श्रमिक असमर्थ हैं।“श्रमिकों का शोषण चरम पर है। वेतन का बकाया समय से न होने के कारण श्रमिकों में मानसिक तनाव और असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। जो श्रमिकों के कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।” उन्होंने कहा कि बहुत से श्रमिकों ने घर चलाने के लिए बैंकों से ऋण लिया हुआ है।वेतन न मिलने के कारण उन्हें समय पर किस्त चुकाना संभव नहीं हो पा रहा।जिससे ब्याज का बोझ भी बढ़ रहा है। मजदूरों ने बताया कि उन्होंने अब तक शांति और संयम के साथ अपने अधिकारों के लिए इंतजार किया, लेकिन उनकी समस्याओं की लगातार अनदेखी होती रही है।
अपनी इन्हीं मांगों और समस्याओं को लेकर श्रमिकों ने पिछले माह अक्टूबर में सैकड़ों की संख्या में उपजिलाधिकारी ओबरा को तहसील कार्यालय पहुंचकर पत्रक सौंपते हुए अपना दुखड़ा भी सुनाते हुए श्रमिकों ने चेतावनी दी कि यदि शीघ्र ही उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ और उनका बकाया वेतन जल्द से जल्द नहीं मिला,
तो वह मजबूरन आंदोलन करने पर विवश होंगे।जिसके संबंध में ग्राम सेवा समिति के अध्यक्ष शिवदत्त दुबे ने मजदूरों के साथ तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन करते हुए एसडीएम ओबरा से वार्ता करते हुए कहा कि “श्रमिकों को तीन महीने का बकाया वेतन तत्काल प्रदान किया जाए,भविष्य में समय पर वेतन भुगतान की सुनिश्चितता हो, श्रम कानूनों का पालन और कार्यस्थल पर सभी सुरक्षा मानकों का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए।इस दौरान श्री दुबे, महेश अग्रहरी, उमेश शुक्ला एडवोकेट आदि ने सैकड़ों मजदूरों की उपस्थित में ओबरा तापीय परियोजना के मुख्य महाप्रबंधक को भी ज्ञापन
सौंपकर श्रमिकों की व्यथा को सुनाया था।
श्रमिक अधिकारों की अनदेखी कर दूसान पावर सिस्टम दिखा रहा हठधर्मिता
जिसके संबंध में पिछले महीने उपजिलाधिकारी ओबरा, सोनभद्र को ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट के श्रमिकों ने ज्ञापन सौंपकर अवगत कराया था कि 9 अक्टूबर 2024 को दूसान पावर सिस्टम इण्डिया लिमिटेड में कार्यरत सहसंविदाकार मेसर्स टीएमसी के वर्करों, स्टाफों के वेतन गड़बड़ी व बकाया भुगतान के सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र दिया गया था। जिसमें उनकी (एसडीएम) अध्यक्षता में श्रम विभाग व टीएमसी कम्पनी के अधिकारियों व मजदूरों के तरफ से ग्राम सेवा समिति के अध्यक्ष शिव दत्त दूबे के मध्य वार्ता हुई थी और 15 अक्टूबर 2024 को दूसरी वार्ता में श्रम विभाग के अधिकारी द्वारा कहा गया था कि दूसान पावर सिस्टम इण्डिया लिमिटेड के अधिकारी के समक्ष ही वार्ता किया जायेगा।
परन्तु दूसान पावर सिस्टम इण्डिया लिमिटेड के अधिकारियों ने उक्त के सम्बन्ध में किसी प्रकार की वार्ता करने से इन्कार कर दिया। जिससे स्पष्ट होता है कि कंपनी में कार्यरत मजदूरों के वेतन में व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी की गयी है तथा वेतन भुगतान समय से श्रम कानून के तहत नहीं किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में नोटिस जारी कर दूसान पावर सिस्टम इण्डिया लिमिटेड के अधिकारियों को वार्ता में बुलाया जाने को आवश्यक एवं न्यायसंगत बताया गया था। जिससे मजदूरों के साथ हो रहे शोषण को रोका जा सके एवं उनके साथ न्याय हो सके।
श्रमिकों ने चेताया था कि “अन्यथा की स्थिति में गरीब मजदूर टीएमसी दूसान पावर सिस्टम इण्डिया लिमिटेड व मुख्य महाप्रबन्धक, ओबरा तापीय परियोजना के खिलाफ धरना प्रर्दशन व अनशन के लिए बाध्य होगें।ग्राम सेवा समिति के अध्यक्ष श्री दुबे ने आरोप लगाते हुए कहा कि “कंपनियों द्वारा पैसे का बंदरबाट हो रहा है श्रमिकों का शोषण हो रहा है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”वेतन विसंगतियों पर गोल-मटोल ज़बाब ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट सी में श्रमिकों के वेतन विसंगतियों मसले पर एडवोकेट उमेश चंद शुक्ला बताते हैं कि “कंपनी के ठेकेदार श्रमिकों के हक अधिकारों पर कुंडली मारकर कब्जा जमाएं हैं जो जवाबदेही से भी बचते नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों कंपनी के अधिकारियों और उपजिलाधिकारी ओबरा, श्रमिक के संग हुई वार्ता के दौरान ही साफ हो गया है कि कंपनी के अधिकारी अपनी जवाबदेही से पीछे हटते हुए श्रमिकों के वेतन विसंगतियों के मामले में
गोल-मटोल जवाब देते रहे हैं।”
इस मामले में उप जिलाधिकारी ओबरा विवेक सिंह एवं श्रम विभाग द्वारा 10 अक्टूबर 2024 को ओबरा तहसील में उप जिलाधिकारी की अध्यक्षता में ग्राम सेवा समिति के अध्यक्ष,टीएमसी के सुपरवाइजर कौशल,श्रम प्रवर्तन विभाग के अधिकारी, टीएमसी कंपनी के कर्मचारियों के समक्ष वेतन भुगतान में गड़बड़ी को लेकर वार्ता की गई थी। जिसमें श्रम प्रवर्तन विभाग के अधिकारी मजदूरों की मजदूरी हर हाल में देने के लिए संबंधित को दिशा-निर्देश दिए थे। जिसके संबंध में निर्देशित किया गया था कि मजदूरों का जितने दिन का वेतन होगा उसको टीएमसी कंपनी को देना पड़ेगा साथ ही श्रम विभाग को तथा संबंधित कंपनी टीएमसी को वेतन भुगतान जल्द करने तथा हाजिरी कार्ड व वेतन स्लीप का जल्द मिलान करने हेतु आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए जिसके क्रम में टीएमसी के सुपरवाइजर को फटकार भी लगाया था। टीएमसी के सुपरवाइजर द्वारा वेतन विसंगति में गोलमोल ज़बाब देने पर उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए उप जिलाधिकारी ने इसे घोर मनमानी करार दिया था।
आश्चर्य की बात रही है कि टीएमसी के सुपरवाइजर द्वारा हाजिरी कार्ड पर सिग्नेचर को भी मानने से इनकार कर दिया गया था। इस पर श्रम प्रवर्तन अधिकारी ने काफी डांट फटकार लगाई और कहा कि क्या मजदूर अपने से हाजिरी कार्ड भरेगा? तब टीएमसी के सुपरवाइजर कौशल द्वारा यह नहीं बताया गया की हाजिरी कार्ड कौन भरता है?यह कंपनी मजदूरों के साथ अन्याय करती हुई पाई गई है। पुनः उप जिलाधिकारी और श्रम प्रवर्तन अधिकारी ने 15 अक्टूबर 2024 को बोर्ड के अधिकारी, दुसान के अधिकारी और टीएमसी के वर्कर ग्राम सेवा समिति के समक्ष वार्ता कर मजदूरों की समस्या का हर हाल में निदान करने का आश्वासन दिया गया था जिसके क्रम में श्रमिकों ने सहमति दिया था।
सरकार की चुप्पी बढ़ा रही मनोबल
ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट में श्रमिकों के होने वाले शोषण की दास्तां बढ़ती जा रही है। ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट सी में कार्यरत मजदूरों की माने तो कई सालों से मजदूरों के साथ मजदूरी वेतन को लेकर शोषण होता आया है।
श्रमिक कहते हैं “ठेकेदार खुद सरकार की नीति को फेल करने में लगे हैं, लेकिन खुद सरकार श्रमिकों की गुहार पुकार नहीं सुनती है। सरकार की चुप्पी ठेकेदारों का मनोबल बढ़ा रही है। गौरतलब है कि मौजूदा समय तीन कई कंपनियों के जरिए ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट सी में काम चल रहा है। इनमें मुख्य बोर्ड है जिसने दूसान को काम दे दिया है। भवानी व्यालर, टीएमसी तथा ठेकेदार के दस बारह कंपनियों के जरिए श्रमिकों से काम लिया जाता है। बड़ी कंपनियां द्वारा अपनी जवाबदेही से बचने के लिए निजी कंपनियों को काम सौंप दिया गया है।
काम भी आठ के बजाए बारह घंटे काम लिया जाता है और ओटी नहीं दी जाती है। जबकि आठ घंटे काम के बाद ओटी का प्रावधान बनता है। श्रमिक कहते हैं “सरकार के अधीन बिजली उत्पादन वाली ओबरा थर्मल पावर प्लांट की ए, बी के बाद सी निर्माणाधीन है। काम पूरा होते ही करोड़ों का घोटाला करते हुए यह चलते बनेंगे। इस पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। श्रमिकों ने आशंका जताई है कि कहीं उनके हक पर डाका न डाला जाएं। बताते चलें कि शुरूआती दौर में रसियन कंपनी को ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट बोर्ड ने काम सौंपा था, लेकिन कुछ ही महीने बाद रसियन कंपनी को हटाकर कोरियाई कंपनी दुसान को काम सौप दिया गया है। इसके पहले भी श्रमिकों ने आक्रोश जताते हुए समय से भुगतान और मनमाने कटौती को लेकर आंदोलन पर उतर आए थे।
जबकि बीते 7 सितंबर को जिलाधिकारी सोनभद्र द्वारा बैठकर कर श्रमिकों के हक-अधिकार को लेकर सख्त आदेश दिया गया था कि उनकी न्यूनतम मजदूरी में कोई लापरवाही न हो समय से भुगतान हो, खासकर दुसान कंपनी के साथ बोर्ड को भी आदेशित किया था। इस बैठक में मुख्य विकास अधिकारी, पुलिस अधीक्षक, उपजिलाधिकारी, दुसान कंपनी के एच.आर. दिलीप ठाकुर, ओबरा तापीय परियोजना बोर्ड के सीजीएम मुख्य महाप्रबंधक मौजूद रहें।
जबकि बैठक में दुसान का प्रोजेक्ट मैनेजर सुआंगो अनुपस्थित थे।जिसपर जिलाधिकारी ने कड़ी नाराजगी जताई थी ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि विदेशी होने का किस प्रकार से लाभ लेते हुए दुसान न केवल शासन-प्रशासन को ठेंगा दिखाता आया है बल्कि श्रमिकों के हक अधिकारों को भी बूटों तले रौंदता रहा है।श्रमिकों कहना है कि दुसान कंपनी के अधिकारी पूरी तरह से मनमानी करते हुए आ रहे हैं। कहते हैं हम विदेशी कंपनी से है हमारा कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
बोर्ड के नोडल अधिकारी की कार्य प्रणाली पर उठती उंगलियां
ओबरा थर्मल पॉवर प्लांट बोर्ड के नोडल अधिकारी की कार्य प्रणाली पर भी उंगलियां उठाई जाती हैं। श्रमिक कहते हैं “श्रमिकों की समस्याओं को और कंपनी की मनमानी को बोर्ड के नोडल अधिकारी ठेकेदारों से मिलकर दबा जा रहे हैं। इन्हें किस बात के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है?
श्रम विभाग के अधिकारियों को भी श्रमिक कटघरे में खड़े करते हुए कहते हैं कि “एक ही व्यक्ति का दो बार पे स्लीप तैयार किया जाता है, लेकिन कंपनी को कोई भी नोटिस या कार्रवाई के लिए नहीं लिखा जाता है।इससे साफ जाहिर होता है कि दिखावें के लिए श्रमिकों के हक अधिकारों की बात होती है जबकि पर्दे के पीछे सभी एक जैसे ही प्रतीत दिखाई देते हैं।” ऐसा लगता है कि सोनभद्र में श्रमिकों के आर्थिक, मानसिक शोषण विरासत में मिली हो। विकास की बात पर जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी संदिग्ध नजर आ रहे है ऐसे में यह एक प्रश्न बना हुआ है कि आखिरकार कब तक आर्थिक, मानसिक शोषण कर विकास की बातें होती रहेगी?
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