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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

प्रकृति के अलग-अलग तेवर। कहीं उष्णता, कहीं बाढ़, बिखेरती प्राकृतिक तेवर। 

प्रकृति के अलग-अलग तेवर। कहीं उष्णता, कहीं बाढ़, बिखेरती प्राकृतिक तेवर।  भारत जैसे विकासशील देश में ही जहां गरीबी ने अपना परचम फैला रखा है। शहरों में पेट्रोल ,डीजल, केरोसिन से चलने वाली गाड़ियों और वातानुकूलित यंत्रों याने ए,सी की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने से वातावरण में उष्णता बढ़ते जा...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

पांच त्योहारों की श्रृंखला दीपोत्सव पर्व

पांच त्योहारों की श्रृंखला दीपोत्सव पर्व समस्त विश्व में दिपावली का त्यौहार हर साल पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। दीपावली का त्यौहार एक दिन का त्योहार नही है बल्कि पांच दिनों के त्योहारों की एक श्रृंखला है। दीपावली का पावन पर्व धनतेरस से आरंभ होकर...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

श्राद्ध पक्ष में नफरत के तर्पण की जरूरत

श्राद्ध पक्ष में नफरत के तर्पण की जरूरत दिशाहीन, कसैली, विषैली सियासत पर लिखते-लिखते अब ऊब होने लगी है। इसलिए आज श्राद्ध पक्ष पर लिख रहा हूँ ।  भारत में श्राद्ध पक्ष का बहुत महत्व है ।  मान्यताएं हैं ,अस्थायें हैं। हमारे पूर्वजों ने पूर्वजों की आत्मशांति और...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

 बढ़ती आबादी और घटते संसाधन

 बढ़ती आबादी और घटते संसाधन बेतहाशा बढ़ती आबादी आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। दुनिया के कई देशों बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में वहां उपलब्ध संसाधन अब कम पड़ने लगे हैं। जाहिर है कि अगर किसी भी देश की जनसंख्या लगातार...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

युवाओं को रोजगार पर ठोस नीति बनानी होगी

युवाओं को रोजगार पर ठोस नीति बनानी होगी भारत में रोजगार एक बहुत ही ज्वलंत समस्या रही है और जैसे जैसे आबादी बढ़ती जा रही है वैसे ही यह समस्या और बढ़ती चली जा रही है। यह सत्य है कि कोई भी सरकार सभी को सरकारी नौकरी नहीं...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

सियासत की नयी सूरत और देश की जरूरत

सियासत की नयी सूरत और देश की जरूरत देश में चुनाव हुए और नयी सरकार बने एक महीने से चार दिन ऊपर हो चुके हैं। देश की नई सूरत धीरे-धीरे उभर कर सामने आने लगी है। देश के प्रधानमंत्री और संसद में विपक्ष के नेता की प्राथमिकताएं भी...
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विचारधारा  स्वतंत्र विचार 

आज की दुनिया में मार्क्स बनाम कौशल

आज की दुनिया में मार्क्स बनाम कौशल दुनिया कौशल के बजाय अंकों के मामले में इस हद तक प्रतिस्पर्धी हो गई है कि यदि छात्र एक सेकंड के लिए भी झपकी ले लेते हैं तो वे अनिवार्य रूप से हार जाते हैं। इस संस्कृति के कारण, अधिकांश...
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