नेताओं से बचाओ दीक्षांत समारोहों
अब भंडारकर,राजवाड़े ,टंडन ,तिवारी और बिसेन जैसे लोग मिलते ही कहाँ हैं
स्वतंत्र प्रभात कि प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव सचमुच उच्च शिक्षित हैं ,अन्यथा इस प्रदेश का दुर्भाग्य ये है कि यहां कुलाधिपति तक स्नातक नहीं हैं, किन्तु वे दीक्षांत समारोहों का अनिवार्य हिस्सा है | इस बार वे बीमार थे इसलिए दीक्षांत समारोह में नहीं आये | लेकिन जो स्वस्थ्य थे उनमें से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा बिजली मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर भी इस दीक्षांत समारोह के लिए वक्त नहीं निकाल पाए | के पास नेताओं से मुक्त होने की मानसिकता है ही नहीं | ऐसे में विश्वविद्यालय से ग्वालियर या प्रदेश से जुड़े किसी विशिष्ट व्यक्ति को मानद उपाधि दिए जाने के बारे में सोचने की कल्पना करना व्यर्थ है |.मैंने दो साल पहले ग्वालियर के सांसद को सुभाव दिया था कि वे ग्वालियर का गौरव रहे पद्मश्री आचार्य मुसलगांवकर को मानद उपाधि देने के लिए विश्विद्यालय से अनुशंसा करें तो विश्विद्यालय के लिए प्रतिष्ठा की बात हो ,लेकिन उनकी समझ में भी ठीक वैसे ही नहीं आया जैसे की विश्वविद्यालय के कुलपति या कार्यपरिषद की समझ में कुछ नहीं आता | जीवाजी विश्विद्यालय से बेहतर काम तो निजी क्षेत्र के आईटीएम विश्वविद्यालय का है .आईटीएम विश्वविद्यालय ने इस बारे में दो कदम आगे बढ़कर सोचा .देश का दुर्भाग्य ये है कि यहां शिक्षा हो या स्वास्थ्य ,महिला कल्याण हो या बाल विकास बिना नेताओं को साथ लिए होता ही नहीं है | नेताओं के कर कमल ही होते हैं जो हर क्षेत्र को कृतकृत्य करते हैं | नेता न हों तो शायद कोई काम पूरा ही न हो ,जबकि नेताओं की प्राथमिकता में ये सब क्षेत्र कभी होते ही नहीं हैं | मुश्किल ये है कि कोई नेताओं से उनकी प्राथमिकता के बारे में सवाल नहीं कर सकता | इस समय न संसद चल रही है और न कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम | ऐसे में नेताओं को विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आने से किसने रोका ?शायद राजनीति ही इसकी जड़ में रही हो !
नेताओं से मुक्त कराये बिना शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ाया जा सकता | हमारे यहां तो स्थिति ये है कि आप प्रधानमंत्री से लेकर अपने सूबे के गवर्नर की शैक्षणिक योग्यता का माहिती नहीं ले सकते |ग्वालियर का जीवाजी विश्विद्यालय 23 मई 1964 को ग्वालियर के पूर्व महाराज जीवाजीराव सिंधिया के नाम से स्थापित की गयी थी. इसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था .शुरू में इस विश्वविद्यालय से मात्र 29 महाविद्यालय संबद्ध थे,आज ये संख्या 400 तक जा पहुंची है .संख्या की दृष्टि से विश्वविद्यालय का विस्तार अवश्य हुआ है किन्तु गरिमा की दृष्टि से बिलकुल नहीं .48 वर्षीय इस विश्वविद्यालय ने अब तक 21 कुलपति देखे हैं ,इनमें से कुछ ही नाम ऐसे हैं जो इस विश्वविद्यालय को ऊंचाइयों तक ले जा सके .अन्यथा बहुत से तो ऐसे भी रहे हैं जिन्हें कोई नहीं जानता | |
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