दिल्ली इलेक्शन ! बीते वर्षों में कितनी बदली है दिल्ली की सियासी हवा

दिल्ली इलेक्शन ! बीते वर्षों में कितनी बदली है दिल्ली की सियासी हवा

2025 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव संभव हैं और सभी दलों ने विशेषकर आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस पार्टी ने लगभग अपने उम्मीदवारों पर मोहर लगा दी है या तैयारी कर ली है। यह चुनाव आम आदमी पार्टी का भविष्य तय करेंगे, क्या आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ी है या तमाम राजनैतिक उठापटक के बाद अब वह अपने अस्तित्व को बचा रही है। आप ने 2013 में कांग्रेस से दिल्ली की सत्ता हथियाई थी और उसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष को लगभग हांसिए पर रख दिया। 2013 ने आप ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी लेकिन तमाम आरोपों के बाद केजरीवाल ने मात्र 49 दिन के बाद ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2015 और 2020 में केजरीवाल ने न सिर्फ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई बल्कि विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया।
 
इस बीच दिल्ली में बड़े ही घटना क्रम घंटे दिल्ली सरकार की बड़ी लीडरशिप तमाम आरोपों में जेल चली गई। आप नेता सतेंदर जैन, दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े आप नेताओं के ऊपर तमाम आरोप लगे और वह जेल चले गए। हालांकि संजय सिंह को जल्दी ही जमानत मिल गई, इसके बाद मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल को भी जमानत मिल गई। लेकिन अदालत ने अरविंद केजरीवाल से मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने, फैसले लेने पर रोक लगा दी। इसी वजह से आप को आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया। जो वर्तमान में भी दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री हैं। अब सवाल उठता है कि क्या इतने घटनाक्रम के बाद दिल्ली की राजनैतिक हवा बदली है या फिर आप का जलवा बरकरार है। इस पर दिल्ली की जनता ही अच्छी तरह से जानती होगी।
 
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में दो लोकसभा चुनाव हुए जिसमें भाजपा ने इकतरफा जीत हासिल की। दिल्ली में दो बार से यी पेटर्न देखने को मिल रहा है कि केंद्र में वहां की जनता भाजपा को पसंद कर रही है जब कि विधानसभा में आम आदमी पार्टी उसकी पहली पसंद बनी है। अब सवाल उठता है कि क्या दिल्ली का यह पेटर्न आगे भी बना रहेगा या इसमें बदलाव आएगा। क्या लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को दिल्ली में बढ़त मिलेगी या वही पुराना ट्रेंड चलेगा। कांग्रेस को दिल्ली की जनता ने एक दम से रेस से बाहर कर दिया है। और यहां मुकाबला सिर्फ आप और भाजपा के बीच ही होना है। कांग्रेस यदि कहीं मजबूत होती है तो वह आम आदमी पार्टी का नुक़सान ही करेगी। उसकी सीट जीतने की संभावनाएं काफी कम हैं। भाजपा इस बार पूरा प्रयास कर रही है कि वह दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो सके। क्योंकि पूरे देश में सफलता का परचम लहराने वाली भारतीय जनता पार्टी के दिल में दिल्ली को लेकर एक टीस है।
 
दिल्ली देश की राजधानी है और पूरा देश दिल्ली से ही चलता है। तमाम राज्यों में जीत का परचम लहराने वाली भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में आगे नहीं बढ़ पा रही है। ऐसा क्यों यह भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है। दिल्ली में आप और केंद्र में भाजपा दिल्ली का यह निर्णय भारतीय जनता पार्टी अभी तक नहीं समझ सकी है कि आखिरकार ऐसा क्यों। यह बात भी सही है अरविंद केजरीवाल दिल्ली के साथ अब देश के भी बड़े नेताओं में सुमार हो चुके हैं। केजरीवाल ने न सिर्फ दिल्ली में तीन बार सरकार बनाई बल्कि पिछले चुनाव में पंजाब में भी सबको पीछे छोड़ कर सरकार का गठन किया। अब यदि हम दिल्ली की बात करें तो दिल्ली प्रदेश भाजपा में अरविंद केजरीवाल की टक्कर का कोई भी नेता नहीं है। भाजपा के बड़े नेता केंद्र में हैं, देश के अन्य राज्यों में भी हैं लेकिन दिल्ली में कोई ऐसा नहीं है जो कि अरविंद केजरीवाल को टक्कर दे सके। दिल्ली भाजपा पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे चलती है। जब कि आम आदमी पार्टी का जन्म ही दिल्ली से हुआ है। यह एक बहुत बड़ा फर्क है। 
 
हालांकि पिछले समय में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में कई प्रयोग किए थे लेकिन वो सफल नहीं हुए और डॉ हर्षवर्धन, किरण बेदी सहित कई बड़े चेहरों को दिल्ली में उतारा गया लेकिन वो सफल नहीं हुए। अंततः भोजपुरी फिल्म अभिनेता मनोज तिवारी को इस आशय के साथ दिल्ली में एक बड़ा चेहरा बनाया गया ताकि वो बिहारी वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत बना सके। दिल्ली में बिहारी मतदाताओं की संख्या काफी है और कुछ सीटें तो ऐसी हैं जहां बिहारी मतदाता ही हार-जीत का फैसला तय करते हैं। लेकिन उन सीटों पर आप ने भी अपने प्लान तय कर लिए हैं। देश के जाने-माने कोचिंग शिक्षक जो कि दिल्ली की तमाम आईएएस कोचिंग में रहे हैं और यूट्यूब के माध्यम से भी बच्चों को यूट्यूब चैनल के माध्यम से कोचिंग करते हैं अवध ओझा सर के नाम से मशहूर शिक्षक ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। अवध ओझा बिहार की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं। और इसका लाभ आम आदमी पार्टी को मिल सकता है।
 
अरविंद केजरीवाल जेल जाने के बाद से और जमानत मिलने से शांत दिखाई दे रहे हैं उनके तेवर में थोड़ा ठहराव आया है लेकिन उनकी चुनावी तैयारियां काफी जोरों से चल रहीं हैं। इधर भाजपा अपनी रणनीति को अभी जाहिर नहीं कर रही है लेकिन वह आस्वस्त है दिल्ली में कि बदलाव किया जा सकता है यदि उनको दिल्ली के लिए कुछ अच्छे उम्मीदवार मिल जाएं तो। हालांकि दिल्ली एक छोटा प्रदेश है और वहां के मुख्यमंत्री के अधिकार भी सीमित हैं। तमाम फैसले ऐसे होते हैं जिनको दिल्ली सरकार अकेले नहीं ले सकती उसमें एलजी की अनुमति आवश्यक होती है। दिल्ली सरकार की स्वायत्तता को लेकर अरविंद केजरीवाल ने बहुत प्रयास किए हैं लेकिन वो भी जानती है जब तक केंद्र में उनके पक्ष की सरकार नहीं होती तब तक ऐसा मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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