विश्व शांति की खोज में प्रधानमंत्री की युक्रेन यात्रा  

विश्व शांति की खोज में प्रधानमंत्री की युक्रेन यात्रा  

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब भारतीय प्रधानमंत्री मोदी मॉस्को के दौरे पर गए तब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और दोनो की गले मिलने वाली तस्वीर ने पश्चिम देशों तक में खूब सुर्खिया बटोरी। पश्चिम 
देशो और अमेरिकी पिछलग्गूओं ने इस दौरे को लेकर बेवजह चिंता जताई और भारत की खूब आलोचना की थी। अमेरिका और उसके चमचे चाहते थे कि भारत रूस के सामने क्षेत्रीय अखंडता व सम्प्रभुता का मुद्दा उठाए। अमेरिका ने मोदी की रूस यात्रा को लेकर आपत्ति जताई थी। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा था कि वे रूस के साथ भारत के संबंधों को लेकर चिंतित है। अमेरिका के एनएसए ने भारत को सलाह तक देते हुए कहा कि रूस के साथ मजबूत संबंध भारत के लिए सही दांव नहीं है। भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने यहां तक कह डाला था कि भारत को अमेरिका के साथ संबंधों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे बड़े खूनी हत्यारे को गले लगाना बेहद दुखद है। इससे यूक्रेन में शांति के प्रयासों को झटका लगा है।
 
भारत ने रूस को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान खोजने की सलाह दी थी। निसंदेह रूस भारत का दशकों पुराना मित्र है और रूस ने भारत का हमेशा हर अच्छे बुरे समय में डटकर साथ दिया है। भारत अपनी सैन्य मशीनरी को चालू रखने के लिए रूस के स्पेयर पार्ट्स और अन्य जरूरी वस्तुओं पर बहुत अधिक निर्भर है। रूस-यूक्रेन युद्ध इन आपूर्तियों को प्रभावित न करे यह भारत के लिए आवश्यक है। प्रधानमंत्री के रूस दौरे का मुख्य उद्देश्य चीन को रूस के बहुत करीब आने से रोकना था परन्तु  युद्ध ने अलग ही हालात पैदा कर दिए हैं। चीन रूस से सस्ते दामों पर कच्चा माल खरीद सकता है और वहां अपने तैयार माल की बेशक बाढ़ ला सकता है। इसके अलावा चीन द्वारा रूस को दिए जाने वाले उसके गुप्त सैन्य समर्थन में ड्रोन, माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स,मिसाइल, टैंक और अन्य सैन्य उपकरण युद्ध समय जरूरतों में अहम हैं। रूस से प्रधानमंत्री मोदी की वापसी के अगले ही दिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा ना ले अपनी दोस्ती निभाई थी।
 
इस यात्रा को अमेरिका और पश्चिम देशों ने भारत की विश्व में नकारात्मक छवि बनाने के लिए बहुत जोर-शोर से इस्तेमाल किया था। इसी के तोड़ के लिए प्रधानमंत्री ने युक्रेन यात्रा की है। उल्लेखनीय है कि 1991 में सोवियत संघ से यूक्रेन को स्वतंत्रता मिलने के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा है। प्रधानमंत्री मोदी पोलैंड की यात्रा के बाद प्लेन के बजाय ट्रेन से शुक्रवार को यूक्रेन पहुंचे। पीएम मोदी के लिए रेलफोर्स वन नामक ट्रेन का इंतजाम किया गया था। युद्ध क्षेत्र में हवाई जहाज से यात्रा करना काफी खतरनाक होता है, ऐसे में पीएम मोदी ने कीव पहुंचने के लिए 10 घंटे की ट्रेन यात्रा की। मोदी यूक्रेन में सात घंटे रूकने के बाद यहां से रवाना हो गए। इस दौरान उन्होंने यूक्रेन राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ मुलाकात की और रूस के साथ जारी युद्ध को समाप्त करने में व्यक्तिगत रूप से योगदान देने का आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री मोदी जेलेंस्की से भी गले मिले। प्रधानमंत्री मोदी की पुतिन या अन्य किसी भी नेता से गले मिलने वाली तस्वीर से भ्रमित नहीं होना चाहिए। यह प्रधानमंत्री की खास शैली है और वे ऐसा कर दर्शाने की कोशिश करते हैं कि विदेशी नेताओं के साथ उनकी व्यक्तिगत मित्रता है।
 
कई बैठकों में हिस्सा लेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा कि यूक्रेन की मेरी यात्रा ऐतिहासिक रही। मैं भारत-यूक्रेन मित्रता को और गहरा करने के उद्देश्य से इस महान देश में आया हूं। राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ मेरी सार्थक बातचीत हुई। भारत का दृढ़ विश्वास है कि शांति हमेशा बनी रहनी चाहिए। मैं यूक्रेन की सरकार और लोगों को उनके आतिथ्य के लिए धन्यवाद देता हूं। यदि हम मोदी की इस यात्रा की बात करे तो उसका मुख्य उद्देश्य युद्धरत दोनो देशों में शांति बहाली की कोशिश करना था। रूस-यूक्रेन युद्ध को न तो अमेरिका रोकना चाहता है और न ही रूस की इसे खत्म करने में कोई दिलचस्पी है। मोदी जब रूस गए थे तो उन्होंने वहां शांति की बातें की थीं। यूक्रेन जाकर भी मोदी ने यही बात कही। भारत सिर्फ खुद को रिप्रेजेंट नहीं करता बल्कि ग्लोबल साउथ के देशों का भी नेतृत्व करता है। ऐसे में मोदी ने यूक्रेन जाकर ग्लोबल साउथ देशों का पक्ष रखा। भारत ने साबित करने की कोशिश की कि वह दो गुटों में बंटी दुनिया को जोड़ने के लिए एक पुल का काम कर सकता है।
 
निसंदेह भारत किसी एक का पक्ष नहीं ले सकता है। भारत अपना नेशनल इंट्रेस्ट आगे रखेगा। भारत के लिए दोनों देशों से संबंध बनाकर रखना बहुत जरूरी है। भारत का 75 फीसदी से ज्यादा सूरजमुखी का तेल यूक्रेन से आता है। युद्ध से पहले 20 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स वहां पर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। बेशक भारत की विदेश नीति क्या होनी चाहिए ये जेलेंस्की या अन्य नही बताएंगे। हमारा जो नेशनल इंट्रेस्ट है, हम उससे समझौता नहीं कर सकते। अगर जेलेंस्की ये उम्मीद करते हैं कि जिस तरह से नाटो और अमेरिका उसके साथ खड़े है, उसी तरह से भारत खड़ा हो जाए तो ये मुमकिन नहीं है। क्योंकि रूस 1947 से लेकर आज तक हमारा अच्छा पार्टनर रहा है। वैसे भी रूस ने यूक्रेन पर हमला उस पर कब्जा करने के उद्देश्य से नही किया है। रूस का मुख्य उद्देश्य यही है कि युक्रेन यह समझे कि उसका नाटो के हाथों की कठपुतली बनना रूस की सुरक्षा के लिए खतरा है और वैसे भी अगर भारत जेलेंस्की के पक्ष मे खड़ा हो जाए तो बातचीत कैसे होगी। भारत की जो वैश्विक हैसियत है उसको रूस भी स्वीकार करता है। ऐसे में जो देश जंग रूकवाना चाहते है उनके लिए भारत रूस-यूक्रेन को एक मेज तक लाने का अच्छा जरिया बन सकता है। भारत सदा विश्व में शान्ति और विश्व कल्याण का पक्षधर रहा है। भारत के लिए रूस और यूक्रेन दोनों जरूरी है, जैसा कि पीएम मोदी ने कहा.कि यहां दो पक्ष है- यूद्ध और शांति, हम शांति के पक्ष में खड़े हैं। यानी भारत युद्ध के पक्ष में नहीं है और भारत पक्षपात नहीं करेगा।
 
(नीरज शर्मा'भरथल')
 
 

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