थानों से गायब हो गई थानेदारों की गोपनीय डायरी, ।

डायरी से लगता था अच्छे-बुरे का अंदाजा!

थानों से गायब हो गई थानेदारों की गोपनीय डायरी, ।

स्वतंत्र प्रभात।
प्रयागराज। दया शंकर त्रिपाठी।
 
प्रदेश के थानों में मौजूद रहने वाली थानेदारों की गोपनीय डायरी अब बीते दिनों की बात हो गई है। अपने इलाके और व्यक्तियों को अच्छे से समझने के लिए थानेदार की यह डायरी काफी अहम होती थी। गोपनीय डायरी को थानेदार अपने अंडर में लॉकर में बंद रखता था। ट्रांसफर होने पर निवर्तमान थानेदार,इसे दूसरे थानेदार को सौंप देता था। इससे नए थानेदार को महीनों दर-दर की खाक नहीं छाननी पड़ती थी। उसे अपने थाना क्षेत्र के अच्छे बुरे का अंदाजा डायरी का पन्ने पलटने के साथ ही हो जाता था। लेकिन, वर्तमान में किसी भी थानेदार के पास उसकी गोपनीय डायरी नहीं है।
 
 नए जमाने के थानेदारों से पूछने पर पता चलता है कि उन्होंने अपने सीनियरों से गोपनीय डायरी के बारे में सुना था, पर देखा नहीं है। वहीं, कुछेक अफसर को छोड़कर किसी को इस डायरी के बारे में न तो जानकारी है और न ही उन्होंने जानने की कोशिश ही की है।
 
दरअसल, गोपनीय डायरी ऐसा दस्तावेज होती थी, जिसका निरीक्षण नहीं होता था पर उसमें साल-दर-साल थाना क्षेत्र की अच्छी-बुरी सारी बातें लिखी होती थी। थाने के खास इलाके और व्यक्तियों के बारे में पूरा ब्योरा होता था। थानेदार भले ही थाने पर बैठाकर किसी को चाय पिलाता लेकिन गोपनीय डायरी में इसका जिक्र जरूर करता था कि अमूक व्यक्ति किस तरह का है और उससे किस तरह की सावधानी बरतनी चाहिए। यही नहीं उसके साथ के लोग कैसे हैं और किस तरह का काम करते हैं। यह जानकारी भी दर्ज होती थी। 
 
 
गोपनीय डायरी में थाना क्षेत्र में होने वाले सभी अच्छे-बुरे धंधे का भी विवरण होता था। थाने का चार्ज लेते ही गोपनीय डायरी से थानेदार को तत्काल महत्वपूर्ण जानकारी हो जाती थी। यही नहीं लॉ एंड आर्डर की समस्या वाली घटनाओं में भी गोपनीय डायरी से मदद मिलती थी। साथ ही यह करामाती डायरी यह भी चुगली करती थी कि किस साहब के पास क्या और कब पहुंचाना है। न पहुंचने के नुकसान और फायदे भी लिखे होते थे। स्टॉफ के भी उन लोगों का जिक्र होता था जोकि धाने पर साजिश करते रहते थे या थाने के वफादार होते थे।
 
वहीं पुलिस उच्चाधिकारियों की मानें तो अपने इलाके और व्यक्तियों को अच्छे से समझने के लिए थानेदार की गोपनीय डायरी काफी अहम भूमिका निभाती थी लेकिन वर्तमान में किसी भी थानेदार के पास उसकी गोपनीय डायरी नहीं है। गोपनीय डायरी सरकारी दस्तावेज नहीं होती और न ही उसका कोई निरीक्षण करता है। यह थानेदार की प्रापर्टी होती थी जो कि ट्रांसफर होने पर दूसरे थानेदार को सौंपी जाती थी लेकिन इसकी परम्परा वर्तमान में खत्म हो गई है।

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