कभी-कभी मौत ज़िंदगी से बड़ी हो जाती है। - योग गुरु धर्मचंद।

कभी-कभी मौत ज़िंदगी से बड़ी हो जाती है। - योग गुरु धर्मचंद।

स्वतंत्र प्रभात।
 ब्यूरो प्रयागराज 
 
  योग गुरु धर्मचंद ने कहा है कि कभी मौत ज़िंदगी से बड़ी हो जाती है।  जब तक मनमोहन सिंह ज़िंदा रहे किसी ने याद नहीं किया. लेकिन आज श्रद्धांजलियों की बाढ़ आई हुई है. संस्मरण लिखे जा रहे हैं. गुरुद्वारों में, मंदिरों में कीर्तन चल रहा है. दुआएं पढ़ी जा रही हैं. अचानक क्या बदल गया?
 
योग गुरु पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह के मौत पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दरअसल, यह मुल्क प्रायश्चित के आंसू रो रहा है. एक सामूहिक प्रायश्चित. प्रायश्चित मनमोहन सिंह को न समझ पाने का. मनमोहन सिंह के प्रति कठोर बर्ताव का. मनमोहन सिंह ने हमें जो भी दिया था या संरक्षित रखा था, वह छीना जा रहा है. इसके लिए हमीं जिम्मेदार हैं-यह प्रायश्चित इसी बात के लिये है.
 
मनमोहन सिंह की ज़िंदगी बहुत साधारण सी रही. लेकिन उनकी मौत बहुत बड़ी हो गई. इतनी बड़ी कि संभाले नहीं संभल रही. तुम्ह हो या न हो, पूरा मुल्क उन्हें खो देने के अहसास से गुज़र रहा है. मत दो राजघाट. यह अहसास कम नहीं होगा. 
 
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन... यह क्रंदन तुमको सुनाई नहीं पड़ेगा. लेकिन मुल्क के मन में चल यही रहा है. मनमोहन सिंह की मौत मुल्क की आत्मा को थोड़ा ज़िंदा कर गई.

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