हाथरस भगदड़ : एक पहलू यह भी

    हाथरस भगदड़ : एक पहलू यह भी

 गत 2 जुलाई को अलीगढ़ संभाग के अंतर्गत हाथरस ज़िले के सिकंदरा राव क्षेत्र के फुलराई गांव में भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध एक कथित "बाबा " के 'सत्संग' के दौरान मची भगदड़  में मृतक श्रद्धालुओं की संख्या 121 से पार हो चुकी है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 121 मृतकों में केवल महिलाओं की संख्या 112 बताई जा रही है जबकि शेष 9 मृतकों में सात बच्चे और दो पुरुष थे। वहां इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी ने निश्चित रूप से उस कहावत को बलवती कर दिया है कि 'औरत का पीर कभी भूखा नहीं मरता'। आज हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है। सोशल मीडिया के इस युग में अनेक बहुरूपिये क़िस्म के स्वयंभू बाबा प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचे हुये हैं। ऐसे कई स्वयंभू बाबा कैमरे के सामने कई बार अपनी मूर्खता व अज्ञान का प्रदर्शन करते भी देखे जा चुके हैं। परन्तु इसके बावजूद वहाँ भीड़ बढ़ती ही जा रही है। और इस भीड़ में सबसे अधिक संख्या निश्चित रूप से महिलाओं की होती है। और कहना ग़लत नहीं होगा कि इनमें अधिकांशतः अनपढ़,अज्ञानी व अशिक्षित महिलायें ही अधिक होती हैं। और पुरूषों में ज़्यादातर पुरुष भी वही होते हैं जो अपने घर परिवार की महिलाओं के आग्रह पर उनके साथ आते हैं।
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आपने देखा होगा कि आमतौर पर जब कोई बाबा या प्रवचनकर्ता किसी नये स्थान पर जाकर सत्संग आयोजित करता है तो उस बाबा के पहुँचने से पहले उसकी 'मार्केटिंग ' टीम के सदस्य वहां पहुंचकर स्थानीय लोगों की मदद से सबसे पहले अधिक से अधिक संख्या में महिलाओं से संपर्क करते हैं। और आयोजन से पहले उन्हीं महिलाओं को सजधज कर आने के लिये कहा जाता है। फिर यही महिलायें श्रद्धापूर्वक अपने सर पर कलश रखकर नगर भ्रमण करती हैं। प्रायः कलश भी महिलायें अपना ही लेकर आती हैं। महिलाओं की इस क्लश यात्रा के दो पहलू हैं। भोली भाली धर्मभीरु महिलायें तेज़ धुप, सर्दी व बारिश की परवाह किये बिना पुण्यार्थ के फेर में सिर पर क्लश रखकर एक ही शारीरिक स्थिति में घंटों तक उस क्लश यात्रा का हिस्सा बनी रहती हैं। तो दूसरी तरफ़ चैन से कहीं ए सी में बैठे बाबा जी के प्रवचन व उनकी नगर उपस्थिति का मुफ़्त में प्रचार हो जाता है। अब यदि क्लश यात्रा के दौरान किसी महिला का स्वास्थ्य बिगड़ जाये या कोई हादसा हो जाये तो इसका ज़िम्मेदार कौन है कुछ नहीं पता।    
 
हाथरस भगदड़ निश्चित रूप से देश की भगदड़ की कोई पहली घटना नहीं है। और ऐसा भी नहीं कि भगदड़ केवल भारत में ही मचती हो। दुनिया के कई देशों में भगदड़ व जान-माल के नुक़्सान होते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर 30 अक्टूबर 2022 की रात में दक्षिण कोरियाई राजधानी सियोल में हैलोवीन समारोह के दौरान भगदड़ मची भगदड़ में 151 लोगों की मौत हुई थी। अप्रैल 1989 में ब्रिटेन में शेफील्ड के हिल्सबोरो स्टेडियम में लिवरपूल और नॉटिंघम फॉरेस्ट के बीच इंग्लिश एफ़ ए कप सेमीफ़ाइनल मैच के दौरान भगदड़ मच गई जिसमें 96 लोग मारे गए थे। जुलाई 1990 में सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान मक्का के पास अल-मुआइसिम सुरंग के अंदर, ईद-उल-अज़हा के दौरान भगदड़ में 1,426 हाजी कुचलकर मर गए।सऊदी अरब में ही मई 1994 में भी हज के दौरान दमरात ब्रिज के पास भगदड़ में 270 लोगों की मौत हो गई। फ़रवरी 2004 में भी ज़मारात पुल के पास हुई भगदड़ में 251 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। इसी तरह अप्रैल 1998 में भी सऊदी अरब में भगदड़ की घटना में 191 हाजियों की कुचलकर मौत हो गई थी। मई 2001 में अफ़्रीक़ा में अकरा के मुख्य फुटबॉल स्टेडियम में मची भगदड़ में कम से कम 126 लोग मारे गए थे इसी तरह अक्टूबर 2022 में इंडोनेशिया के एक फ़ुटबॉल स्टेडियम में भगदड़ में कम से कम 125 लोगों की मौत हो गई थी।
    हाथरस भगदड़ : एक पहलू यह भी
इसी तरह हमारे दश में भी  भगदड़ की अनेक घटनाएं घटी हैं परन्तु इनमें सर्वाधिक घटनायें केवल मंदिर या धर्म अथवा धार्मिक स्थलों से जुड़े आयोजनों की ही हैं। जैसे महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में 2005 में हुई भगदड़ में 340 श्रद्धालुओं की मौत हो गयी थी। इसी तरह  2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर में हुई भगदड़ में कम से कम 250 लोगों की मौत हुई थी। 2008 में हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर में भी  एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ मच गयी थी जिसमें 162 लोगों की जान चली गई थी। महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में सिंहस्थ कुंभ मेले में 27 अगस्त 2003 को पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ में 39 लोग मारे गए थे । 4 मार्च 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से लगभग 63 लोगों की मौत हो गई थी । भक्तों में उस समय कृपालु महाराज द्वारा दान किए जा रहे कपड़े और भोजन लेने की होड़ मच गयी थी। देश में ऐसी और भी अनेकानेक घटनाएं धार्मिक आयोजनों व धर्मस्थानों पर होती रही हैं। 
 
ऐसे हर हादसे के बाद एक सवाल हर तरफ़ उठने लगता है कि इसका ज़िम्मेदार कौन है ? सरकार,प्रशासन, प्रवचनकर्ता (बाबा ) आयोजनकर्ता या फिर ख़ुद जनता और जनता में भी ख़ासकर महिलायें ? ऐसे हादसों के बाद प्राप्त रिपोर्ट्स के अनुसार सामान्य रूप से यही कहा जाता है कि प्रशासन पर्याप्त प्रबंध नहीं करता। प्रायः आशा से अधिक लोग आते हैं जिससे लोगों के बैठने निकलने आने जाने में दिक़्क़त होती है। ना ही मौक़े पर एंबुलेंस रहती है, ना ही फ़ायर ब्रिगेड की टीम ना ही भीड़ के अनुसार पर्याप्त सुरक्षाकर्मी। अब यदि कोई अफ़वाह फैल जाये ,कोई अनहोनी हो जाये और भगदड़ मचे तो उसे कौन और कैसे नियंत्रित करेगा ? हाथरस हादसे में  121 मृतकों में केवल महिलाओं की संख्या 112 आने के बाद एक अलग ही बहस छिड़ गयी है। लोगों में आम चर्चा है कि यहाँ भगदड़ इसलिए हुई क्योंकि ‘महिलाएं ढोंगी बाबाओं से आसानी से प्रभावित हो जाती हैं'।
 
इस हादसे के बाद हाथरस ज़िले के अनेक गांवों में महिलाओं के प्रति घृणा की लहर पैदा हो गई है। पुरुष महिलाओं पर बाबा का अनुयायी होने का आरोप लगा रहे हैं और इस तरह की राय व्यक्त कर रहे हैं कि महिलाओं को घर पर रहना चाहिए। इलाक़े के तमाम लोग यह कहते सुने गये कि अगर इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं सत्संग में नहीं जातीं तो यह घटना नहीं होती। महिलायें ही बाबा के चरणों की धुल(रज ) लेने के लिये अनियंत्रित हो गयीं जिससे भगदड़ मच गयी। लोगों का यह भी कहना था कि “महिलाएं हमेशा आस्था में डूबी रहती हैं और चूँकि वे भावनात्मक रूप से कमज़ोर होती हैं इसलिये आसानी से  किसी के भी झांसे में आ जाती हैं।आश्चर्य तो यह भी है कि दर्जनों ढोंगी बाबाओं के कुकर्मों का भंडाफोड़ होने के बाद तथा कई स्वयंभू अय्याश व्यभिचारी बाबाओं के जेल में सड़ने के बावजूद महिलाओं का इनसे मोह भांग होने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे हादसों का एक पहलू यह भी है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। 
 
                                                                                       निर्मल रानी

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