स्त्री लज्जा और सियासत। शर्मसार करती राजनीतिक दलीलें। 

स्त्री लज्जा और सियासत। शर्मसार करती राजनीतिक दलीलें। 

क्या हम कहीं खो गए या हम सो गए हैं या नपुंसकता की हद तक हम मजबूर हो गए। इंटरनेट और फिल्मों में स्त्री की निवस्त्र देह देख कर आदमी पासविक होकर मां,बहन और बेटियों को केवल औरत समझकर पूरी हैवानियत के साथ उससे दुराचार बलात्कार करने में जुट जाता है बात जब तक सतह पर आती है तब तक देश के अलग-अलग  राजनीतिक दल अपनी सड़ी गली दलीलें देकर कभी डीएनए टेस्ट तो कभी अंतरंग बातें सामने लाने की बात करतें है। अब प्रश्न यह उठता है कि इन राजनीतिक नेताओं, बाहुबलियों और धनी समाज के कर्ताधर्ताओं और बड़े ब्यूरोक्रेट्स की बहन बेटियों के साथ बलात्कार होगा तब जाकर शासन प्रशासन की नींद जागेगा और न्याय मिलेगा ? राजनीतिक दल अपनी सत्ता की कुर्सी,अपनी चमड़ी बचाने के चक्कर में स्त्री देह का का परीक्षण करने न्यायालय से मांग करते हैं क्या यही मांग अपनी बहन बेटियों के साथ हुए बलात्कार के साथ भी कर सकते हैं?
 
न्याय महंगा तथा इतना समयापेक्षी हो गया है कि कि अपराधी जमानत में छूट कर फिर से कई दुराचार, बलात्कार और अनाचार कर चुका होता है और उसे सबूत मिटाने के लिए पूरा समय,धन और राजनीतिक लाभ मिल जाता है। 9 अगस्त को कोलकाता के आर जी हॉस्पिटल में डॉक्टर मौमिता के साथ हुए विभस्त बलात्कार एवं हत्याकांड में बलात्कारी अभी तक दोषी सिद्ध नहीं हो पाया है? पूरे देश के युवा बलात्कारी को सजा देने के लिए सड़क पर आ गए जन आक्रोष भड़क चुका है और बंगाल की महिला मुख्यमंत्री के साथ विपक्ष की बड़ी-बड़ी नेत्रियां की इस मामले में चुप्पी न सिर्फ स्त्रियों का स्त्रियों के प्रति असंवेदनशीलता दर्शाती है बल्कि नेत्रियों की खामोशी पीड़ित महिला के साथ महिला नेत्रियों द्वारा किया गये अनादर के समान है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक देश में हजारों स्त्रियों,बेटियों,माता बहनों के साथ  न जाने कितने बलात्कार और हत्या के प्रकरण न्यायालय में चल रहे हैं,
 
लंबित है और इनमें से कितनों को फांसी दी गई कितनों को कठोर कारावास दिया गया इसके आंकड़े अभी भी लापता है। अजमेर राजस्थान में तो 100 बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटना का 30 साल बाद न्याय मिलना कितना दुर्भाग्य जनक है। अब स्त्रियों के अधिकारों और नई भूमिका के सही मूल्यांकन महती जरूरत है। अब महिला की सुरक्षा को प्रथम प्राथमिकता में रखते हुए घरों में कार्य स्थलों, सरकारी कार्यालय, अस्पताल में एवं हर उसे स्थान में जहां स्त्रियां अपनी उपस्थिति देकर देश के विकास में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती हैं वहां संविधान में स्त्रियों के साथ बलात्कार एवं दुराचार जैसी जघन्य घटना के लिए त्वरित निर्णय लेकर फांसी जैसे कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। अब वह समय चला गया जब किसी घर में कन्या के पैदा होने से पूरे परिवार में मातम छा जाता था अब भारत में धीरे-धीरे सामाजिक परिवेश में लिंग भेद बदलने लगा है।
 
स्थिति यह है कि शिक्षित परिवार केवल एक संतान ही पैदा करना चाहती है चाहे वह कन्या हो या पुत्र। अब परिवार में कन्या पैदा होने से खुशियां मनाई जाती है और पुरातन सोच अब धीरे-धीरे सामाजिक परिवेश को मस्तिष्क के मूल्यांकन के साथ बदलते जा रही है। पुरुष प्रधान समाज में नारी को पूज्या कह कर बहला दिया जाता था और उसे घर की चहारदीवारी में सीमित कर दिया गया था। यही कारण था कि वे पुरुषों की बराबरी में ना आकर बहुत पिछड़ गई और देश की समग्र विकास की स्थिति एकांगी हो गई थी। समाज यह भूल गया था कि जिन हाथों में कोमल चूड़ियां पहनी जाती हैं वही हाथ तलवार भी उठा कर युद्ध में एक वीरांगना की भूमिका निभाती है, इसकी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण रजिया बेगम और रानी लक्ष्मीबाई रही हैं।
 
मनुस्मृति पर यदि आप नजर डालेंगे तो पाएंगे कि उसमें स्पष्ट कहा गया है कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है। प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का काफी प्रचार प्रसार किया गया था इसके कई प्रमाण भी हैं कि वेद की रिचाओं का ज्ञान नारियों को था इसमें कुछ महत्वपूर्ण नारियां समाज के लिए एक उदाहरण बन गई थी उनमें मैत्री, गार्गी, अनुसूया, सावित्री, आदि उल्लेखनीय हैं। वैदिक काल के विद्वान मुंडन मिश्र की पत्नी उदय भारती ने प्रकांड पंडित विश्व विजयी आदि शंकराचार्य को भी शास्त्रार्थ में भरी सभा में पराजित किया था । इसीलिए वेदों और पुराणों में भी उल्लेखित है की बालिका शिक्षा समाज के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला होता है। नारी के उत्थान में कई कुप्रथा कुठाराघात करती रही हैं, जो नारी के विकास में बाधा बनकर सामने आई थी इनमें बाल विवाह सबसे बड़ा अवरोध बना था और इसी का प्रतिफल है कि नारी पुरुष के समाज में काफी पिछड़ गई थी।
 
महादेवी वर्मा ने नारी शिक्षा को पुरुष शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया था उन्होंने कहा था स्त्री को शिक्षित बनाना एक पुरुष को शिक्षित बनाने से ज्यादा आवश्यक और महत्वपूर्ण है यदि एक पुरुष शिक्षित -प्रशिक्षित होता है तो उससे एक ही व्यक्ति को लाभ होता है किंतु यदि स्त्री शिक्षित होती है तो उससे संपूर्ण परिवार शिक्षित हो जाता है. उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बात कही नारी को अशिक्षित रखना समाज के लिए अपराध के समान है। समय के परिवर्तन के साथ साथ नारी का महत्व अब पूरे तौर पर समझा जा रहा है आज समाज तथा देश में नारियां सर्वोत्कृष्ट कार्य कर रही है। समाज हो या विज्ञान या राजनीति अथवा समाज सेवा संपूर्ण क्षेत्र में आज नारियां पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर सर्वश्रेष्ठ कार्य कर रही है।
 
मैडम क्यूरी, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, श्रीमति भंडार नायके, सरोजनी नायडू, कस्तूरबा गांधी जैसी महिलाएं राष्ट्र का मार्गदर्शन करने का काम करती रही है। महात्मा गांधी ने स्वयं कहा है कि जब तक भारत की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम नहीं करेगी तब तक भारत का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। आज का सबसे ताजा उदाहरण कॉमनवेल्थ गेम में महिला क्रिकेट टीम ने फाइनल में प्रवेश किया है और गोल्ड मेडल की तालिका में साक्षी मलिक बहनो, फोगाट बहनों ने विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया है।
 
पी वी संधू, वित्त मंत्री सीतारमण स्मृति ईरानी और मंत्रिमंडल में शामिल महिलाएं किसी से पीछे नहीं हैं। और सबसे ताजा उदाहरण भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने महिला होकर महिलाओं का नाम राष्ट्र की प्रथम पंक्ति में दर्ज कर देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया है। उन्होंने भारत के लिए एक स्वर्णिम इतिहास भी बनाया है।अब भारत में नारियों की स्थिति प्रथम पंक्ति में मानी जाती है। ऐसे में भारत में नारी शिक्षा, उनकी सहभागिता तथा उनकी आत्म निर्भरता भारत के भविष्य की शक्तिशाली ऊर्जा एवं संपत्ति ही होगी। भारत की नारियों को नमन, प्रणाम एवं अभिनंदन।
संजीव ठाकुर,
स्तंभकार,चिंतक, वर्ल्ड रिकॉर्ड धारी लेखक

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