अराजकता की नई बस्ती बांग्लादेश, भारतीय सीमा सुरक्षा पर असरl

(बांग्लादेश भी पाकिस्तान के नक्शे कदम पर) 

अराजकता की नई बस्ती बांग्लादेश, भारतीय सीमा सुरक्षा पर असरl

विगत दिनों बांग्लादेश में वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटते ही छात्रों की संघर्ष समिति के कुछ नेताओं के साथ मोहम्मद यूनुस में अंतरिम सरकार का गठन कर लिया है छात्र नेताओं को भी मंत्री परिषद में स्थान दिया गया। शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के सर्वे सर्वा बनाए गए हैं मोहम्मद यूनुस को जो अर्थशास्त्री भी है शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था पर उनके नेतृत्व में हिंसक प्रदर्शन और विद्रोह कर सत्ता हथयाई गई, इस विद्रोह को हथियारों से युक्त सेना का समर्थन प्राप्त था और इस हिंसा में सैकड़ो लोगों की हत्या कर दी गई। कायदे से मोहम्मद यूनुस से बांग्लादेश में अराजकता तथा हिंसा करवाने के परिपेक्ष में शांति का नोबेल पुरस्कार या तो उन्हें वापस दे देना चाहिए या उनसे नोबेल पुरस्कार वापस लिया जाना चाहिए। बांग्लादेश में शेख हसीना को सत्ता से हटाने में छात्रों के अलावा जमात ए इस्लामी आतंकवादी संगठन ने मोहम्मद यूनुस का बहुत साथ दिया था किंतु अब मोहम्मद यूनुस के अंतिम प्रधानमंत्री बनने के साथ-साथ इस संगठन से प्रतिबंध हटा दिए जाने के फलस्वरूप जेल में बंद इनके  शागिर्दों को जेल से रिहा कर दिया गया।
 
बताया जाता है कि बांग्लादेश में देश के गठन के बाद यह दूसरी क्रांति अमेरिका,चीन तथा पाकिस्तान के इशारे पर की गई है। बांग्लादेश में आतंकवाद अब पूरी तरह से सिर उठाने लगा है, जमात ए इस्लामी से प्रतिबंध हटते ही वर्तमान मोहम्मद यूनुस सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन कर दिया है हिंसा की कई घटनाएं हुई है आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं भी जारी है छात्र संगठनों में भी दो ग्रुप हो गए हैं और एक छात्र संगठनों का ग्रुप मोहम्मद यूनिस सरकार का घोर  विरोधी बनाकर आंदोलन कर रहा है। पाकिस्तान की तर्ज में बांग्लादेश में भी सत्ता परिवर्तन होते ही हिंदुओं का बड़ी संख्या में वध किया गया एवं मंदिरों में तोड़फोड़ की गई। इसमें दो मत नहीं कि यदि बांग्लादेश भी उग्रवादियों आतंकवादियों के कब्जे में चला जाता है तो उसका विकास तेजी से अवरुद्ध हो जाएगा और वह पाकिस्तान की तरह आर्थिक रूप से कमजोर एवं पिछड़ा राष्ट्र बन कर रह जाएगा। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही क्योंकि शेख हसीना ने भारत में शरण ली है फ़ौरी तौर पर बांग्लादेश को शेख हसीना की भारत के प्रति अनुराग एवं मित्रता पसंद नहीं आई होगी। आतंकवादी संगठन जमात ए इस्लामी ने फिर बांग्लादेश में उपद्रव मचाना शुरू कर दिया है।
 
अराजकता और आतंकवादी संगठनों का बांग्लादेश अब एक नया ठिकाना बन गया है चीन और अमेरिका भी इसे अपनी नई बस्ती बनाना चाहते हैं निश्चित तौर पर भारत के लिए यह शुभ संकेत नहीं है पाकिस्तान व चीन स्वतंत्रता के बाद से भारत के पारंपरिक दुश्मन रहे है पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन अभी भी जम्मू कश्मीर में लगातार हिंसा एवं वारदात करने में लगे हुए हैं। अब बदले हुए बांग्लादेश का शासन तंत्र भारत के पक्ष में नहीं होगा ऐसी स्तिथि में भारत अब अनेक पड़ोसी दुश्मन देशों से घिरा हुआ रहेगा फल स्वरुप भारत की सीमा सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है ऐसे में भारत को अंदरुनी तथा सीमा पर अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर कड़ी निगरानी रख चाक चौबंद व्यवस्था रखनी होगी। भारत संप्रभुता एकता तथा अखंडता का वैश्विक स्वच्छ एवं साफ-सुथरी छवि वाला एकमात्र बड़ा लोकतांत्रिक देश है। अमेरिका में भी लोकतंत्र है पर वहां पूंजीवादी व्यवस्था तथा व्यापक व्यवसायीकरण ने अनेक राष्ट्रपतियों को विस्तार वादी तथा साम्राज्यवादी मानसिकता का बना दिया है।
 
अमेरिका की शक्ति संपन्नता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे एक संवेदनहीन,लोकतांत्रिक एवं निरंकुश राष्ट्र के रूप में स्थापित कर चुकी है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अमेरिका और विभिन्न काल खंडों में अलग-अलग देशों को एक दूसरे से युद्ध करने के उकसाने के लिए बदनाम रहा है, और उसकी इस इस कूटनीति का सबसे बड़े एवं तात्कालिक उदाहरण अफगानिस्तान में तालिबान आतंकवादियों का कब्जा एवं और रूस यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन अमेरिकी तथा अमेरिकी समर्थित नैटो एवं यूरोपीय देशों की भूमिका ही रही है। इसी तरह इसराइल हमास युद्ध में इसराइल को खुला समर्थन देकर अमेरिका ने विस्तारवाद तथा साम्राज्यवाद की आग को हवा देने का काम किया है और लगभग 2 हजार लोगों की जान को जिंदगी से वंचित कर दिया है। दूसरी तरफ भारत एक विशाल लोकतांत्रिक देश होने के साथ-साथ शांति सौहार्द्र और गुटनिरपेक्षता का पक्षधर रहा है। भारत देश में सदैव वैश्विक शांति का संदेश ही दिया है, यह अलग बात है कि भारत को धार्मिक सामाजिक आर्थिक विविधता विषमता के कारण अंदरूनी विवादों तथा आतंकवादी गतिविधियों के कारण अशांत रहने पर मजबूर किया है।
 
भारत की आंतरिक सुरक्षा भी पिछले 20 वर्षों से अलग-अलग शहरों यहां तक संसद भवन के हमलों और कश्मीर में विभिन्न समय तथा स्थानों पर आतंकवादी हमलों ने भारत की आंतरिक व्यवस्था में उथल-पुथल मचाने का प्रयास किया है, भारत की शक्ति और सामर्थ्य इतनी सक्षम है कि आतंकवादियों के हमलों का भारत सरकार ने समय-समय पर मुंहतोड़ जवाब भी दिया है। पठानकोट और पुलवामा हमले इसके सबसे सशक्त और सक्षम मामले हैं जहां भारत ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट किया है। जम्मू कश्मीर में भी छुटपुट घटनाओं के अलावा स्वतंत्रता के बाद से शांति का माहौल स्थापित हुआ है। जहां तक भारत की सीमा के विवाद का प्रश्न है तो भारत भौगोलिक रूप से एशिया के दक्षिणी भाग में स्थित है और भारत की सीमाएं 7 जिनमें चीन, नेपाल, म्यानमार ,भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान देश शामिल हैं।
 
इनमें चीन और पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष या प्रतिनिधि मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में सद्भावना पूर्वक शामिल होने आए थे। भारत सदैव अपने पड़ोसियों से शांति के संबंध स्थापित रखना चाहता है। भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्ष एवं शांति, सद्भावना की रही है। भारत के साथ पड़ोसी देशों में भूटान,बांग्लादेश श्रीलंका ,मालदीव ,सदैव भारत के साथ मित्रवत रहे हैं किंतु चीन तथा पाकिस्तान ने हमेशा भारत के हितों का नुकसान की चाहा है भूटान, बांग्लादेश, और बांग्लादेश ने भारत से अपने संबंध अपने हितों से जोड़कर कई संधियों में हस्ताक्षर किए ,जिसके कारण दोनों देशों ने मिलकर कई पावर प्लांट, पावर ट्रांसमिशन लाइन,1 बंदरगाह की विकास रेल लाइन निर्माण आदि में एक दूसरे का साथ दिया है। मालदीव एक एसा देश है जिसका दक्षिण तथा अरब सागर में सामरिक महत्व है, इसलिए भारत के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चीन पाकिस्तान के अलावा नेपाल से भी भारत के संबंध बहुत मधुर कभी नहीं रहे हैं नेपाल में चीन तथा पाकिस्तान के हस्तक्षेप के कारण नेपाल भारत की आलोचना करता आया है। पाकिस्तान का इस्लामिक कट्टरपंथ एवं वहां की सेना तथा पाकिस्तानी शासन के हुक्मरान भारत को अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं।
 
भारत का नेपाल के साथ सीमा विवाद है जिसके चलते नेपाल का नजरिया भारत के प्रति बदलता गया है। भारत और चीन के संबंध 1962 के बाद से सभी सामान्य नहीं रहे हैं। लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल में चीन ने अरुणाचल प्रदेश तथा लद्दाख में सदैव अतिक्रमण किया है और भारत का चीन से डोकलाम, पपेंगांग, गलवान क्षेत्रों में सैनिक स्तर का विवाद होता रहा है और एलएसी पर चीन और भारत में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है। इसी बात में अमेरिका भारत के साथ है किंतु रूस इस मामले में निरपेक्ष नीति अपनाए हुए हैं। यह तो तय है कि भारत में आतंकी गतिविधियां आंतरिक सुरक्षा के लिए हमेशा खतरा बनी हुई थी और है। इसके अलावा एल ए सी तथा एलओसी में चीन तथा पाकिस्तान जैसे देशों से हमें मुकाबला करना होगा। पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर है पर चीन की मदद तथा उकसावे के कारण पाकिस्तान भारत को एक बड़ा दुश्मन मानती है। अमेरिका जैसे देश बाहर से तमाशा देखने वाले देशों में माने जाते हैं। अतः भारत को अपनी आंतरिक तथा सीमा की सुरक्षा स्वयं के शक्ति तथा सामर्थ से ही करनी होगी एवं हमेशा सतर्कता बरतनी होगी।
 
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक, वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक,

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