'एक्ट ऑफ़ फ़्रॉड' और प्रधानमंत्री की मुआफ़ी ?

    'एक्ट ऑफ़ फ़्रॉड' और प्रधानमंत्री की मुआफ़ी ?

 महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले के मालवन में स्थित राजकोट क़िले में केवल आठ माह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों  छत्रपति शिवाजी महाराज की जिस 35 फ़ुट ऊँची मूर्ति का उद्घाटन किया गया था वह प्रतिमा गत 26 अगस्त को ताश के पत्तों की तरह ढह गयी। चूँकि शिवाजी महाराज को मराठा स्मिता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है और इसी महाराष्ट्र राज्य में  शीघ्र ही विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं इसलिये वक़्त की नज़ाकत को भांपते हुये शिवाजी महाराज की इस प्रतिमा ढहने के मामले पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छत्रपति शिवाजी से माफ़ी मांगने के लिये सामने आना पड़ा।
 
मूर्ति खंडित होने के बाद महाराष्ट्र के पालघर ज़िले में वधावन बंदरगाह परियोजना के शिलान्यास समारोह के दौरान मोदी ने कहा कि  "छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल हमारे लिए एक महान व्यक्ति हैं, बल्कि वह हमारे आदर्श हैं। मैं उस मूर्ति के चरणों में झुक रहा हूं और अब उनसे सिर झुकाकर माफ़ी मांग रहा हूं। हमारे लिए शिवाजी आराध्य देव हैं।" प्रधानमंत्री की मुआफ़ी से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी यही कहा था कि वे  इस घटना पर सौ बार माफ़ी मांगने को तैयार हैं। जबकि उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने भी इस घटना के फ़ौरन बाद ही माफ़ी मांग ली थी। 
 
किसी मूर्ति खंडित होने के बाद भ्रष्टाचार के इसतरह सिर चढ़कर बोलने के बाद आजतक 'मुआफ़ियों ' का ऐसा सिलसिला पहले कभी नहीं देखा गया। परन्तु इन मुआफ़ी नामों का केवल एक ही कारण है कि राज्य में चुनाव सिर पर हैं और विपक्ष छत्रपति शिवजी महाराज की प्रतिमा विखंडित होने को लेकर सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी पर यही कहते हुये हमलावर है कि चूँकि मूर्ति निर्माण व स्थापना के काम की गुणवत्ता की भारी कमी थी और इसके अनावरण में जल्दबाज़ी की गयी। जिसका कारण केवल भ्रष्टाचार था। और भ्रष्टाचार की वजह से हवा के झोंके मात्र से मूर्ति का गिरना बेहद शर्मनाक है।
 
Shivaji statue (1)इसी तरह गत वर्ष  उज्जैन के महाकाल लोक में 15 करोड़ रूपये की लागत से बनाई गयी देवताओं,ऋषियों मुनियों व की मूर्तियां जिनमें प्रति मूर्ति की क़ीमत लगभग 11लाख रूपये बताई गयी थी,  उनमें कई मूर्तियां तेज़ हवा में उड़कर दूर जा गिरी थीं और बुरी तरह खंडित हो गयी थीं। यह मूर्तियां भी अंदर से खोखली थीं और इन्हें स्टील रॉड से अंदर से मज़बूत नहीं किया गया था। ऐसी लगभग 136 मूर्तियां पूरे महाकाल लोक में लगाई गई हैं। तेज़ आंधी-तूफ़ान में इन मूर्तियों के उड़कर गिरने व खंडित होने के समय भी इसके निर्माण में हुये घोर भ्रष्टाचार पर सवाल उठे थे। परन्तु उस समय किसी ने मुआफ़ी मांगने की ज़रुरत महसूस नहीं की थी क्योंकि तब चुनाव भी दूर थे और वैसे भी इन भ्रष्टाचारियों को पता था कि देवताओं,ऋषियों मुनियों के मूर्ति विखंडित होने से चुनाव पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला।     
 
परन्तु सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री के मुआफ़ी मांगने के बावजूद भ्रष्टाचार के कलंक को धोया भी जा सकेगा ? और प्रधानमंत्री कहाँ कहाँ मुआफ़ी मांगते फिरेंगे ? राम मंदिर बारिश में टपकने लगा,देश का नवनिर्मित संसद भवन भी टपकता नज़र आया। अयोध्या का राम पथ जगह जगह धंस गया तो दिल्ली सहित देश के कई हवाई अड्डे की छतें कहीं धराशायी हो आईं तो कहीं टपकने लगीं।  30 अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोरबी में केबल ब्रिज हादसे में 135 लोगों की मौत हो गई थी। कितनी रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं। यह सभी भ्रष्टाचार और लापरवाही के मामले थे। किसी ने न तो मुआफ़ी मांगी न ग़लती स्वीकार की। कितने शहरों में भ्रष्टाचार के कारण जल निकासी न होने से शहर के शहर डूब रहे हैं।
 
कोई पूछने वाला नहीं। कोई ज़िम्मेदार नहीं। परन्तु जब कोलकाता में 31 मार्च 2016 को विवेकानंद पुल गिरने की घटना हुई उस समय चुनावी बेला में प्रधानमंत्री ने इस हादसे पर कैसी कैसी बातें की थीं। प्रधानमंत्री ने ममता बनर्जी पर मौत की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि -'कोलकाता में हुआ फ़्लाई ओवर हादसा 'दैविक संदेश' है कि लोग बंगाल को तृणमूल कांग्रेस से बचाएं। यह एक्ट ऑफ़ गॉड नहीं एक्ट ऑफ फ़्रॉड है'। उन्होंने ममता बनर्जी को सम्बोधित करते हुये एक जनसभा में कहा था कि- 'कम से कम मृतकों को तो सम्मान दीजिए। लेकिन दीदी को मरते लोग नहीं, कुर्सी दिखाई पड़ती है। उनकी बेशर्मी तो देखिए। यह एक बड़ा हादसा था, लेकिन उन्होंने आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू कर दिया।'
 
 देश ने जब प्रधानमंत्री का 'न खाऊंगा न खाने दूंगा ' का वचन सुना तो देशवासियों में निश्चित रूप से यह उम्मीद जगी थी कि शायद देश अब भ्रष्टाचार मुक्त होने जा रहा है। देश भर में भ्रष्टाचार के आरोपियों या संदिग्धों पर पड़ने वाले ई डी,सी बी आई व आयकर विभाग के छापे भी यही संकेत दे रहे थे। स्वयं को जब प्रधानमंत्री ने चौकीदार बताया तो भी देश को लगा था कि देश की सीमाओं सहित धन सम्पदाओं व राजस्व की निगरानी होगी।
 
परन्तु शीघ्र ही जब इसी देश ने यह भी देखा कि प्रधानमंत्री द्वारा कल तक जिन्हें भ्रष्टाचारी बताया जा रहा था वही प्रधानमंत्री के पाले में आने के बाद न केवल सदाचारी हो जाते हैं बल्कि मुख्यमंत्री उपमुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद भी हासिल कर लेते हैं ? देश ने यह भी देखा कि किस तरह भ्रष्टाचारियों ने एलेक्टोरल बांड ख़रीद कर भ्रष्टाचार करने और देश को लूटने का लाइसेंस हासिल कर लिया है। किस तरह चंद उद्योगपतियों के हवाले देश के अनेक सरकारी उपक्रम किये जा रहे हैं यह भी देश देख रहा है। 
 
ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का गिरना और केवल महाराष्ट्र के चुनावी वातावरण में मुआफ़ी मांग कर भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश करना पर्याप्त नहीं होगा। देश यह कैसे नज़रअंदाज़ कर सकता है कि हर्बर्ट बेकर व एडविन लुटियंस की डिज़ाइन पर निर्मित व 1927 में उद्घाटन किया गया देश का संसद भवन तो आज तक बारिश में नहीं टपका परन्तु नवनिर्मित संसद भवन एक बारिश भी झेल नहीं सका ? इसी तरह पुणे के शिवाजी नगर में 96 वर्ष पूर्व शाहूजी महाराज की पहल पर लगाई गयी छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा तो अभी तक जस की तस खड़ी है
 
जबकि मात्र 8 महीने पहले बनी  शिवाजी महाराज की प्रतिमा ढह गई है। ज़रुरत तो इसी बात की है कि 2016 में जिसतरह प्रधानमंत्री ने कोलकता के विवेकानंद पुल गिरने की घटना को 'एक्ट ऑफ़ फ़्रॉड' बताया था और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को खरी खोटी सुनाई थी उसी तरह की प्रतिक्रिया  छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने पर भी आनी चाहिये। साथ ही इस ग़ैरज़िम्मेदाराना कृत्य के लिये ज़िम्मेदार लोगों को सख़्त सज़ा भी दी जानी चाहिये। 
 

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