जियाउद्दीन हत्या कांड : शरीर के जख्मों ने बढ़ाया पुलिसकर्मियों का दर्द
पुलिस अभिरक्षा में हुई थी मौत
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अंबेडकरनगर। पुलिस हिरासत में आजमगढ़ निवासी जियाउद्दीन की मौत ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर दिया। अधिकारी भले ही हिरासत में टाॅर्चर की बात से इन्कार करते रहे। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जियाउद्दीन के शव पर मिले चोट के गहरे निशान आठ पुलिसकर्मियों के गले की फांस बन गए। सीजेएम ने भी अपने आदेश में इसका जिक्र प्रमुखता से किया है।लूट के मामले में आरोपी का पता लगाने के लिए स्वॉट (स्पेशल वेपन्स ऐंड टैक्टिक्स) टीम 24 मार्च 2021 को आजमगढ़ जनपद के पवई थाना क्षेत्र के हाजीपुर कुदरत गांव पहुंची।
स्थानीय युवक जियाउद्दीन को गिरफ्तार कर मुख्यालय से दूर सम्मनपुर थाने में रखा। परिजनों के अनुसार जियाउद्दीन की थाने में लगातार पिटाई की गई। अगले दिन वह मरणासन्न हो गए तो पुलिस ने जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया। वहां कुछ ही देर में उन्होंने दम तोड़ दिया।जियाउद्दीन के भाई शहाबुद्दीन की तहरीर पर सभी आठ पुलिसकर्मियों के खिलाफ अकबरपुर कोतवाली में हत्या और अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया गया। । इसके बाद सभी पुलिसकर्मी फरार हो गए। मामले की विवेचना तत्कालीन अकबरपुर कोतवाली प्रभारी संजय पांडेय ने शुरू की।
लेकिन बाद में न्यायालय सुरक्षा प्रभारी बीरेंद्र बहादुर सिंह को जिम्मा दे दिया गया। कुछ दिन बाद बेवाना थानाध्यक्ष बनते ही उन्होंने सभी पुलिसकर्मियों को क्लीन चिट देते हुए दो अक्तूबर 2022 को कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी। इसी रिपोर्ट के खिलाफ शहाबुद्दीन ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी।सीजेएम सुधा यादव ने सुनवाई करते हुए विवेचना को निरस्त कर दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि जियाउद्दीन की मौत कैसे हुई यह तथ्य विवेचना में स्पष्ट नहीं है। चिकित्सीय जांच में भी स्पष्ट कारण नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि शरीर पर कुल आठ चोट किस प्रकार लगी।
इन चोटों के संदर्भ में भी चिकित्सीय विशेषज्ञ का कोई बयान दर्ज नहीं है। यह भी नहीं है कि इन चोटों से हृदयाघात की आशंका हो सकती है। कोर्ट के आदेश से अब संबंधित पुलिसकर्मियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।अधिकतर आरोपी पुलिसकर्मी अलग-अलग जनपदों में तैनात हैं। सभी पर हत्या का मुकदमा चलने से अब संबंधित जनपदों को भी रिपोर्ट भेजी जाएगी। इससे उनकी तैनाती पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है।
कोर्ट ने भी विवेचना पर उठाया सवाल
सुनवाई के दौरान सीजेएम ने विवेचना पर सवाल उठाए। पूछा कि मृतक एवं आरोपी पुलिसकर्मियोंं के मोबाइल फाेन की स्थिति घटना के समय कहां-कहां थी। विवेचक ने इस बारे में जांच आख्या उपलब्ध नहीं कराई। जियाउद्दीन युवा थे उन्हें पूर्व में कोई गंभीर बीमारी होने का साक्ष्य नहीं है। उनके द्वारा शराब या कोई अन्य ड्रग के सेवन का भी उल्लेख नहीं हुआ है। ऐसे में पुलिस की विवेचना अपूर्ण एवं दोषपूर्ण दिखती है।
छोड़ने के लिए तीन लाख रुपये मांग रही थी पुलिस
जियाउद्दीन की पत्नी फुजैला ने आजमगढ़ से शनिवार को दूरभाष पर बताया कि उनके पति ने फोन कर बताया था कि पुलिस वाले तीन लाख रुपये मांग रहे हैं। पैसा तत्काल नहीं दिया तो यह लोग मार डालेंगे। इसके बाद से हम सभी परेशान हो गए। आजमगढ़ पुलिस का चक्कर लगा रहे थे। लेकिन कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था। 25 मार्च की रात एक फोन आया। बताया गया कि पति को हार्ट अटैक आया है। फौरन अस्पताल आ जाओ। हम आजमगढ़ के पवई थाने गए।
वहां से जैतपुर गए। लेकिन कुछ पता नहीं चला कि हमें कहां जाना है। हमें जिस नंबर से फोन आया था उसे बाद में कोई रिसीव नहीं कर रहा था। काफी प्रयास के बाद जानकारी होने पर अंबेडकरनगर जिला अस्पताल पहुंचे तो वहां पति का शव मिला। पुत्र फैज व पुत्री अतुफा को अब भी जवाब देते नहीं बन रहा कि उनके पिता का कसूर आखिर क्या था, जिसके लिए पुलिस ने उन्हें मार डाला।
पुलिस ने 50 लाख तक लगाई थी कीमत
जियाउद्दीन के भाई और वादी मुकदमा शहाबुद्दीन ने बताया कि पुलिस ने भाई की मौत की कीमत 50 लाख रुपये तक लगाई थी। आरोपी पुलिसकर्मी लगातार सुलह के लिए संपर्क कर रहे थे। पचास लाख रुपये तक देने को तैयार थे। कई बड़े सफेदपोश और माफिया ने भी सुलह के लिए दबाव बनाया। हम लोग पैसा लेकर क्या करते। भाई की मौत का सौदा हमने नहीं किया। शहाबुद्दीन ने बताया कि हमें शुरू से पता था कि पुलिस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा कर सभी आरोपियों को बरी कर देगी। हमारा भरोसा कोर्ट पर था। निराशा तो होती रही। लेकिन कोर्ट से उम्मीद बनी रही। कोर्ट ने हमारे साथ न्याय किया।
यह है पूरा मामला
जैतपुर क्षेत्र में प्रदीप कुमार के साथ लूट हुई थी। इसमें कुल चार आरोपी बनाए गए। तीन आरोपियोंं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। आजमगढ़ जनपद के निजामाबाद निवासी कमर रसीद की पुलिस तलाश रही थी। कमर के मोबाइल से जियाउद्दीन की बात होने की जानकारी पुलिस को मिली। ऐसे में कमर तक पहुंचने की कोशिश में अंबेडकरनगर पुलिस ने आजमगढ़ जाकर जियाउद्दीन को पकड़ा। कमर रसीद की लोकेशन जानने के लिए ही जियाउद्दीन को टार्चर करने का आरोप लगा। उधर, लूट के वांछित कमर को बाद में पुलिस ने जौनपुर में हुई एक मुठभेड़ में मार गिराया।
मजिस्ट्रेटी जांच से भी परिजनों को मिली थी निराशा
आजमगढ़ के जियाउद्दीन की पुलिस हिरासत में हुई मौत की मजिस्ट्रेटी जांच भी परिजनों को कोई राहत नहीं दिला सकी थी। जांच के नाम पर प्रक्रिया तो सब अपनाई गई लेकिन वादी के अनुसार सारी कवायद दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने पर केंद्रित रही।पुलिस हिरासत में पिटाई से युवक की मौत होने के आरोपों ने तूल पकड़ा तो तत्कालीन डीएम सैमुअल पॉल एन ने मजिस्ट्रेटी जांच का आदेश जारी किया। उन्होंने टांडा के एसडीएम को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया। जांच हुई लेकिन यह जांच भी पुलिसकर्मियों के पक्ष में चली गई।जियाउद्दीन के रिश्तेदार डॉ. आफाक कहते हैं कि मजिस्ट्रेटी जांच में बयान आदि तो दर्ज किया गया, लेकिन शुरू से ही जांच का रुख पुलिसकर्मियों की मदद करने जैसा रहा।
न्याय तय करने की तरफ नहीं दिया गया। हमें पता भी था कि मजिस्ट्रेटी जांच सिर्फ दिखावा है। खानापूर्ति ही की जाएगी। फिर भी उनके बुलाए समय पर जाकर हमारी तरफ से जो बयान दर्ज हुए उन सबका ठीक से संज्ञान नहीं लिया गया।जियाउद्दीन के भाई शहाबुद्दीन कहते हैं कि मजिस्ट्रेटी जांच के नाम पर हमें सिर्फ दौड़ाया गया। इशारे में अधिकारियों ने कहा भी था कि परेशान मत हो। कुछ होने वाला नहीं है। उसी समय हमें लग गया था कि ऐसी जांच सिर्फ गुमराह करने और मामले को ठंडा करने के लिए होती है। इसलिए परिवार में किसी को भी मजिस्ट्रेटी जांच से कोई आस नहीं थी। हमने तो मानवाधिकार आयोग तक को पत्र भेजा था, लेकिन पुलिस प्रशासन ने न जाने कौन सी रिपोर्ट या इनपुट दिया कि उधर से भी हमें कोई मदद नहीं मिल सकी। अब कोर्ट से एक जीत मिली है। हमें पूरा भरोसा है कि मेरे भाई की हत्या करने वालों को कोर्ट ही अब सही सजा देगी।
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