कोटे में कोटा नई बहुजन राजनीति का आरंभ
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सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जाति के लिए कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी। इस फैसले ने अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण पर मुहर लगा दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को एससी के उप-वर्गीकरण का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने एससी के उप-वर्गीकरण को वैध ठहराया है। कोर्ट के आदेश के बाद कोटा के भीतर कोटा का रास्ता साफ हो गया है। सर्वोच्च अदालत ने इस फैसले के साथ ही ई.वी.चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के अपने ही फैसले को पलट दिया है। तब सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जातियों के भीतर कुछ उप-जातियों को विशेष लाभ देने से इनकार कर दिया था। कोटे में कोटा की ये कानूनी लड़ाई 1975 में पंजाब की तत्कालीन ज्ञानी जैल सिंह सरकार के लिए एक फैसले के बाद आरंभ हुई। उस समय की पंजाब राज्य सरकार ने 25 प्रतिशत एस.सी कोटे को दो श्रेणियों में बांट दिया था। पहली श्रेणी बाल्मिकी और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी श्रेणी अन्य अनुसूचित जातियों के लिए।
इस मुद्दे पर आंध्र प्रदेश सरकार ने साल 2000 में एक कानून बनाया था। इस कानून के तहत एस.सी वर्ग को चार समूहों में बांटा गया था। साथ ही आरक्षण में इन चारों समूहों की हिस्सेदारी भी तय की गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में ई.वी.चिन्नैया मामले में इस कानून को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अनुसूचित जाति एक समरूप समूह है और इसे उप-श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता, तब पांच जजों की बेंच ने आंध्र प्रदेश शेड्यूल्ड कास्ट (रैशनलाइजेशन ऑफ रिजर्वेशंस) एक्ट 2000 को रद्द कर दिया था। इसके बाद से ही अनुसूचित जातियों के आरक्षण के भीतर आरक्षण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इस बहस का मुख्य केंद्र है अनुसूचित जाति में भी उन समूहों को आरक्षण का लाभ कैसे मिले जो बहुत ही ज्यादा पीछे रह गए हैं। दरअसल 1960 के दशक से ही आरक्षण श्रेणी में आने वाले वर्ग के लोगों की शिकायत रही है कि आगे बढ़ चुके एस.सी का विशेष वर्ग आरक्षण का सारा लाभ हथिया लेते हैं।
कई राज्यों ने अपने यहां पिछड़े अनुसूचित जाति समूहों को आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए समय-समय पर आयोगों का गठन किया और कानून भी बनाए। अलग अलग राज्यों में गठित आयोगों की रिपोर्ट बताती हैं कि आरक्षण का लाभ एस.सी वर्ग के सभी समुदायों तक समान रूप से नहीं पहुंच पाया है। आंध्र प्रदेश ने 1997 में जस्टिस पी. रामचंद्र राजू आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आरक्षण का लाभ मुख्य रूप से एस.सी वर्ग के एक खास समुदाय को मिला है। आयोग ने एस.सी वर्ग को चार श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की थी। उत्तर प्रदेश में 2001 में हुकुम सिंह समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने पाया कि आरक्षण का लाभ सबसे पिछड़े वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है। समिति ने एस.सी और ओ.बी.सी सूची का उप-वर्गीकरण करने की सिफारिश की थी।
महाराष्ट्र में 2003 में लाहुजी साल्वे आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को एस.सी सूची में शामिल मांग जाति की सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने का काम सौंपा गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कोटे का लाभ निचले पायदान तक के लोगो को नहीं मिल पाया है। इसी तरह कर्नाटक में 2005 में न्यायमूर्ति ए.जे. सदाशिव पैनल का गठन किया गया था। इस पैनल को उन एस.सी जातियों की पहचान करने का काम सौंपा गया था जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला था। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में 101 जातियों को चार श्रेणियों में बांटने और प्रत्येक श्रेणी को एस.सी आरक्षण का 15 प्रतिशत हिस्सा देने की सिफारिश की थी। बिहार में 2007 में महादलित पैनल ने एस.सी सूची में शामिल 18 जातियों को अत्यंत कमजोर जातियों के रूप में शामिल करने की सिफारिश की थी।
इसी वर्ष राजस्थान में न्यायमूर्ति जसराज चोपड़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गुर्जर समुदाय अत्यंत पिछड़ा हुआ है, इसे ओ.बी.सी को मिलने वाली सुविधाओं से बेहतर सुविधाएं दी जानी चाहिए। तमिलनाडु में 2007 में न्यायमूर्ति एम.एस. जनार्दनम पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अरुंधतियार समुदाय को आरक्षण में अलग से प्रावधान किए जाने चाहिए। कर्नाटक में 2017 में के. रत्ना प्रभा समिति की सिफारिशों के आधार पर 2018 में एक कानून बनाया गया था। इस कानून के तहत, आरक्षण के आधार पर तरक्की पाने वाले सरकारी कर्मचारियों को वरीयता देने का प्रावधान किया गया था। आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में मडिगा रिजर्वेशन पोराता समिति ने 27 जुलाई 1994 को एससी के भीतर सब-कैटिगराइजेशन की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। उन्होंने तर्क दिया कि एस.सी के भीतर कुछ जातियां दूसरों की तुलना में अधिक पिछड़ी हैं और उन्हें आरक्षण का उचित लाभ नहीं मिल पाता। तेलंगना विधानसभा चूनावों के दौरान 11 नवंबर 2023 को पीएम मोदी ने सिकंदराबाद की रैली में ऐलान किया कि केंद्र सरकार एस.सी के उप-वर्गीकरण का समर्थन करेगी। इसमें कोई शक नही कि आरक्षण प्राप्त जातियों में अंदर ही अंदर अलग अलग वर्ग बन गए हैं।
सम्पन्न, मध्यम और गरीब, सम्पन्न वर्ग वो है जो कई पीढियों से आरक्षण का फायदा उठा अच्छे प्रोफेशनल कोर्सेज या अन्य कालेजों में दाखिला ले अच्छी नौकरियों पर विराजमान हैं। यह वर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी इस व्यवस्था का फायदा उठा रहे है। दूसरा मध्यम वर्ग वो है जिनकी एक पीढ़ी ने इस व्यवस्था का फायदा उठाया है। गरीब वर्ग वो है जिसने इस व्यवस्था का अभी तक ना पढाई में और ना ही नौकरी में लाभ उठाया है। शीर्ष अदालत के आदेशों के बाद अब राज्य सरकार को अधिकार मिल गया है कि वो इन जातियों के निम्न समूहों को खोज कर उन्हे आरक्षण के अंदर ही विशेष आरक्षण दे उन्हे कल्याणकारी योजनाओं के साथ जोडें।
निस्संदेह यह एक अच्छा कदम है जिससे असल जरूरतमंदों को इस व्यवस्था का लाभ मिल सकेगा परन्तु यह विशेष व्यवस्था एक नई तरह राजनीति का आरंभ भी कर देगी। अब सतारूढ राज्य सरकार के पास विशेष जातियों को आकर्षित करने के लिए ब्रह्मअस्त्र आ गया है। किस समूह को लाभान्वित कर ज्यादा से ज्यादा वोट बटोरने है अब चिन्हित करना इनके लिए आसान हो जाएगा। यह मुद्दा नेताओं, राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीति का हिस्सा बन जाएगा। कोटे में कोटा किसी विशेष वर्ग को देना चुनावी वायदों, जुमलो , घोषणापत्र और चुनावी भाषणों में विशेष स्थान पायेगा। बहुजन समाज के नेता के स्थान पर बहुजन के विशेष वर्ग के नेताओं का उदय होगा। बहुजन समाज जो अब तक एक माना जाता है उसमें भी टूट और फूट पड़ेगी।
(नीरज शर्मा'भरथल')
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