जम्मू-कश्मीर में क्या फिर से एक हो सकती है भाजपा और पीडीपी
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जम्मू-कश्मीर में 6 साल बाद विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। और सभी राजनैतिक दल अपनी अपनी रणनीति बनाने लगे हैं। कांग्रेस का गठबंधन नेशनल कांफ्रेंस से हो गया है और पीडीपी तथा भारतीय जनता पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन यदि किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला तो फिर क्या भारतीय जनता पार्टी और पीडीपी का गठबंधन हो सकता है। इस बात पर चर्चा बहुत चल रही है। भारतीय जनता पार्टी जम्मू क्षेत्र में काफी मजबूत है। लेकिन जम्मू क्षेत्र में इतनी सीट नहीं हैं जो भारतीय जनता पार्टी को बहुमत तक पहुंचा सके। जब कि कश्मीर घाटी क्षेत्र में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस की अच्छी पैठ है। लेकिन यह तीनों एक नहीं हैं। नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन तो कांग्रेस के साथ हो गया है लेकिन पीडीपी अकेले चुनाव लड़ रही है। यह भारतीय जनता पार्टी के लिए फायदेमंद है लेकिन यदि पीडीपी के कारण कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन पिछड़ता है तो स्थिति 2014 वाली ही बन सकती है। जब भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इसमें कुछ भी असंभव नहीं है। यदि जनादेश यही मिलता है तो ऐसा फिर से हो सकता है।
जम्मू-कश्मीर में पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था। इस चुनाव में प्रमुख दलों में भारतीय जनता पार्टी को 25, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को 28, नेशनल कांफ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत मिली थी। इसके अतिरिक्त कुछ पता अन्य छोटी पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार विजई हुए थे। कुल मिलाकर किसी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं था। अतः भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी के साथ गठबंधन कर सरकार का गठन किया था। इस पर विपक्षी पार्टियों ने भारतीय जनता पार्टी को बहुत जम कर घेरा था। और उसका असर यह हुआ कि यह गठबंधन 2018 में टूट गया। गठबंधन टूटने के बाद केन्द्र ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा दिया।जो कि अब तक रह। इस बीच जम्मू-कश्मीर में कई तरह की राजनैतिक घटनाएं घटीं जम्मू-कश्मीर को जो विशेष राज्य का दर्जा मिला था वह समाप्त कर दिया गया। यानि कि धारा 370 को समाप्त कर दिया गया। और इसके बाद दो केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जम्मू-कश्मीर को बांट दिया गया।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के 90 सदस्यों के लिए चुनाव कराने के लिए 18 सितंबर से 1 अक्टूबर 2024 तक तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होने हैं। और चुनाव के नतीजे 4 अक्टूबर 2024 को घोषित किए जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के गठन के बाद राजनैतिक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि वहां बहुमत किसी को मिला ही न हो। कांग्रेस छोड़कर आये केन्द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1999 में पीडीपी का गठन किया था और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने सरकार बनाई थी।
राजनीति संभावनाओं का खेल है जब जैसी परिस्थिति बनती है तब समीकरण भी उसी तरह के बनाने पड़ते हैं। यह तो निश्चित है कि भारतीय जनता पार्टी अकेले दम पर सत्ता हासिल नहीं कर सकती। कश्मीर घाटी ने यदि एक पक्ष मत किया तो पीडीपी या कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन में से किसी की सरकार बन सकती है। लेकिन यदि वहां भी जनादेश खंडित मिलता है तो निश्चित है कि 2014 वाली स्थिति बन सकती है। और फिर विकल्प दो ही बन सकते हैं कि पीडीपी या तो गठबंधन के साथ जाये या भारतीय जनता पार्टी के साथ। लेकिन भारतीय जनता पार्टी किसी हालत में जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहेगे फिर चाहे उसे किसी के साथ भी मिलना पड़े।
राजनीति में ऐसा कुछ भी नहीं है जो हो नहीं सकता, महाराष्ट्र में शिव सेना ने भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध सरकार बनाई। बिहार में नीतीश कभी लालू के साथ तो कभी भाजपा के साथ सरकार बनाते रहते हैं। उत्तर प्रदेश में गेस्ट हाउस कांड के बाद भी सपा बसपा एक होकर चुनाव लड़ चुकीं हैं। बहुजन समाज पार्टी भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बना चुकी है। कहने का मतलब विरोधी पार्टियां भी समय-समय पर एक हो जातीं हैं। और ऐसी ही कुछ तस्वीर एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर में होती दिखाई दे रही है। अब यहां देखने वाली बात यह होगी कि यदि जम्मू-कश्मीर में खंडित जनादेश आता है तो पीडीपी किसके साथ जा सकती है। वैसे तो पीडीपी ने घोषणा की थी कि जहां जहां नेशनल कांफ्रेंस के प्रत्याशी खड़े होंगे वहां वह अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी। इसका मतलब यह है कि अंदर ही अंदर कुछ पक रहा है। जो चुनाव परिणाम के बाद बाहर निकल कर सामने आ जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में 2014 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो विपक्षी दलों के तमाम विरोधों के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। अब देखना यह है कि इस चुनाव में पीडीपी कितना उभर कर सामने आ सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में पीडीपी 28 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रुप में बनकर उभरी थी। जब कि 25 सीटें जीत कर भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ नीचे नहीं गिराना है क्योंकि जम्मू क्षेत्र में उसकी पकड़ बहुत अच्छी है। यदि जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस अपना प्रदर्शन अच्छा कर सकी तो यह भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही मुश्किल बात होगी।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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