आर्थिक तंत्र पर बोझ बनती प्राकृतिक विपदाएं।

आर्थिक तंत्र पर बोझ बनती प्राकृतिक विपदाएं।

आपदा सदैव अनअपेक्षित घटना होती है। जो मानवीय नियंत्रण से सदैव से बाहर होती है। प्राकृतिक आपदा अल्प समय में बिना किसी पूर्व सूचना के घटित होती है, जिससे मानव जीवन के सारे क्रियाकलाप अवरुद्ध हो कर,जान और माल की बड़ी हानि होती है । आर्थिक तंत्र,विकास नष्ट हो जाते हैं। आपदा की विद्रूपता, भयानक स्वरूप एवं निरंतरता मानव जीवन और समाज और देश को बड़ी हानि पहुंचाकर उस देश की आर्थिक स्थिति में गहरी चोट करते हैं  राष्ट्र को आर्थिक रूप से बहुत पीछे खींच कर ले जातें हैं। आपदा प्रबंधन में जापान से सीख ली जा सकती है। क्योंकि जापान आपदा प्रबंधन में विश्व में अग्रणी देश माना जाता है। जापान पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र में अवस्थित है, जहां भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाएं सदैव आती रहती हैं।
 
जापान में आपदा प्रबंधन की अत्याधुनिक तकनीक को याकोहामा रणनीति कहा जाता है। जापान में आपदा प्रबंधन की साल भर नियमित रूप से मॉनिटरिंग कर एक्सरसाइज की जाती रहती है, एवं आपदाओं पर निरंतर निगरानी तथा नजर रखी जाती है,एवं इसके निदान के लिए पूर्व से ही सुनियोजित योजना बनाकर नागरिकों को सुरक्षित कर लिया जाता है। भारत को भी इसी तरह आपदा प्रबंधन को अपनाकर अन्य आपदाओं के साथ सतर्क होकर कार्रवाई की जानी चाहिए।
आपदाओं के प्रति मानवीय सभ्यता के संदर्भ में समाज के आर्थिक सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग को ज्यादा प्रभावित करती है एवं समाज का सबसे संवेदनशील तबका यानी वृद्ध व्यक्ति, महिलाएं, बच्चों, दिव्यांग लोगों को प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है।
 
आपदा के समय सबसे ज्यादा निम्न आय वर्ग के व्यक्ति तथा मजदूर तबके के व्यक्ति  प्रभावित होतें हैं उनकी दिनचर्या सामूहिक रूप से छिन्न-भिन्न हो जाती है आर्थिक साधन भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे उसे आजीविका की एक बडी विडंबना सताने लगती है। भारत के भू भाग का लगभग 58% क्षेत्र भूकंप की संभावना वाला क्षेत्र है, जिसमें हिमालयिन क्षेत्र,पूर्वोत्तर राज्य, गुजरात का कुछ क्षेत्र, अंडमान निकोबार द्वीप समूह भूकंप की दृष्टि से सबसे सक्रीय क्षेत्र रहें है। देश के 65 से 68% भूभाग पर कभी कम कभी ज्यादा भीषण रूप से सूखा पड़ता है, इसी तरह भारत के पश्चिमी और प्रायद्वीपीय राज्य में मुख्यतः शुष्क तथा अर्ध शुष्क न्यून नमी वाले क्षेत्र सूखे से सदैव प्रभावित रहते हैं। बाढ़ से प्रभावित भूमि का विस्तार क्षेत्र देश के 12% है, यानी 7 करोड़ हेक्टेयर जमीन में भूकंप आने की संभावना सदैव बनी रहती है।
 
हिमालय क्षेत्र देश के पर्वतीय क्षेत्र में भूस्खलन की गंभीर समस्या की संभावना सदैव बनी रहती है। देश के विशाल तटवर्ती क्षेत्र में चक्रवात तथा सुनामी की भयावह स्थिति की संभावना  रहती है।भारत नें विश्व के साथ-साथ करोना संक्रमण की भयानक महामारी से प्रभावित होकर हजारों लाखों नागरिकों की जान गवा कर इस आपदा से जंग लडी है, यह कोविड-19 की महामारी या आपदा प्राकृतिक है या मानव निर्मित यह तो भविष्य ही बताएगा, किंतु इस महामारी ने पूरे वैश्विक स्तर पर आकस्मिक रूप से मानव जीवन में मृत्यु का तांडव मचा के रख दिया था। ऐसी ही अनपेक्षित आपदाओं का पूर्वानुमान अथवा आकलन किया जाना पहले से संभव नहीं हो सकता है।
 
ऐसे में राष्ट्रीय अन्य योजनाओं के साथ-साथ आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अत्यधिक सावधानी पूर्वक योजना तथा विभाग बनाने चाहिए, देश में जापान जैसे देश की तरह आपदा प्रबंधन से निपटने के लिए अत्याधुनिक आपदा प्रबंधन सिस्टम को तैनात कर तैयार रखने की आवश्यकता होगी। भारत को आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को चुस्त-दुरुस्त तथा अत्याधुनिक तकनीक से युक्त रखने की आवश्यकता है। तूफानी चक्रवात,सुनामी,भूस्खलन, भूकंप, सूखा बाढ़ के अलावा अब कोविड-19 यानी करोना संक्रमण जैसी खतरनाक बीमारियां भारत देश को अपना निशाना बना कर रखा है।ऐसे में भारत में मध्यम दर्जे का या निम्न दर्जे का आपदा प्रबंधन सिस्टम किसी भी काम का ना रहेगा, एवं इससे भारी जानमाल की हानि होने की संभावना सदैव बनी रहेगी। भारत में आपदा प्रबंधन के लिए 1990 में कृषि मंत्रालय के अंतर्गत डिजास्टर मैनेजमेंट सेल स्थापित किया गया था।
 
लेकिन 1993 में लातूर के भूकंप तथा 1998 में मालपा के भूस्खलन तथा 1999 में ओडिशा में सुपर साइक्लोन तथा 2001 में भुज के भूकंप के बाद देश में एक मजबूत आपदा प्रबंधन की व्यवस्था की जरूरत को महसूस करते हुए जे,सी, पंत जी की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट में एक सुव्यवस्थित तथा व्यापक सिस्टम तथा विभाग की स्थापना की आवश्यकता प्रतिवेदित की गई थी। 2002 में आपदा को देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला मानते हुए आपदा को गृह मंत्रालय के अंतर्गत समाविष्ट किया गया। आपदा प्रबंधन के इतिहास में 2005 में एक बड़ा परिवर्तन लाया गया भारत सरकार ने आपदा को अपनी कार्ययोजना के एक चक्रीय क्रम के रूप में प्रबंधित किया, जिसमें आपदा आ जाने के बाद इसके बचाव, नुकसान की भरपाई, निदान तथा आपदा आने के पूर्व की तैयारी तथा योजना को मूर्त रूप देने का एक सुनियोजित तरीका तैयार किया गया था। आपदा से खतरे का स्तर सभी इंसानों के लिए सदैव एक जैसा होता है।
 
किंतु समाज के विभिन्न वर्गों में खतरे से निपटने तथा जूझने की क्षमता अलग-अलग होती है। निम्न वर्ग का तबका अन्य लोगों की अपेक्षा आपदा से ज्यादा प्रभावित होता है। अतः सरकार को गरीब तथा वंचित वर्ग के तबके के लिए आपदा प्रबंधन में विशेष प्रावधान दिया जाना चाहिए। आपदाओं के प्रबंधन एवं अनुसंधान व त्वरित कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान तथा राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल का गठन किया गया है। यह आपदा राशि कार्रवाई बल पर किसी खतरनाक आपदा की स्थिति में रासायनिक, जैविक, परमाणु विकिरण तथा अन्य प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदा के संबंध में विशिष्ट कार्यवाही के निर्वहन का उत्तरदायित्व है। ईस संस्था ने बंगाल तथा उड़ीसा के तटीय क्षेत्र में आई सुनामी में काफी बड़ी संख्या में लोगों की जान भी बचाई है।
 
चक्रवाती तूफान से निपटने में हमारे समुचित प्रयासों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हाल के वर्षों में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। परंतु पिछले 3 वर्षों से करोना संक्रमण से हुई बड़ी संख्या में मृत्यु ने देश को हिला कर रख दिया था।अगर आपदा प्रबंधन सिस्टम को लगातार मॉनिटर किया जाता एवं उस सिस्टम के अधिकारी जिम्मेदार व्यक्ति सचेत एवं सजग रहते, तो द्वितीय लहर में इस तरह हड़कंप संक्रमण एवं मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ता। भारत को आपदा प्रबंधन के सिस्टम पर फिर से आंकलन कर एक नई व्यूह रचना बनाकर गरीब तबके निचले व्यक्ति तथा समग्र रूप से मानव जाति की सुरक्षा के लिए नए-नए उपाय करने चाहिए क्योंकि आपदा कभी बताकर नहीं आती है।
 
संजीव ठाकुर, स्तम्भकार,चिंतक,लेखक

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