मोदी को सराहूं या सराहूं योगी लाल को ?

मोदी को सराहूं या सराहूं योगी लाल को ?

मेरी दशा इन दिनों महाकवि भूषण जैसी हो रही  है। भूषण की काव्यप्रतिभा और कशीदाकारी से प्रभावित होकर महाराजा छत्रसाल ने उनकी पालकी को कन्धा लगाया था तो महारज शिवाजी ने उन्हें मालामाल कर दिया था। लेकिन मेरे पास न महाकवि भूषण जैसी काव्य प्रतिभा है और न ही मुझे उनकी तरह ठकुरसुहाती लिखाना आती है। लेकिन हम दोनों हैं एक ही बिरादरी  के हैं ,इसलिए हमारी दुविधा भी एक जैसी ही है।  महाकवि  भूषण को छत्रपति शिवजी और महाराज छत्रसाल ने दुविधा में डाल दिया था। दोनों महान शूरवीर थे। ये बात 400 साल पुरानी है लेकिन मुझे कलिकाल में  विश्व गुरु मोदी जी और गोरखपंथी योगी आदित्यनाथ ने दुविधा में डाल दिया है।  मै समझ नहीं पा रहा हूं  कि मै मोदी जी को सराहूं या योगी जी को ?

कलिकाल  की राजनीति में मुझे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और उत्तर परदरदेश के उत्तरदायी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा सूरमा और कोई नजर ही नहीं आता।  राहुल,अखिलेश,ममता बनर्जी, नीतीश कुमार,अरविंद केजरीवाल,हेमंत सोरेन जैसे नेता तो इस जुगल जोड़ी के सामने कहीं लगते ही नहीं है।  इन दोनों के पास ध्रुवीकरण का जो अमोघ अस्त्र है वो किसी दूसरे के पास नहीं है।  मोदी जी 2014  और 2019  के आम चुनाव में अपने इस अमोघ अस्त्र का जलवा  दिखा चुके है।  2024  में उनका जलवा थोड़ा कम नजर आया। लेकिन योगी जी का जलवा कायम है भले ही 2024  में अखिलेश और राहुल की जोड़ी ने उनकी हवा टाइट कर दी थी संविधान कि प्रतियां दिखाकर।

 देश को 81  साल पहले जिस तरह से महात्मा गांधी ने' करो या मरो ' का नारा देकर देश को आजादी दिलाई थी उसी तर्ज पर महात्मा योगी ने 2024  में देश की जनता को ' बटोगे तो कटोगे ' का नारा दिया है।  वे हर विधानसभा के चुनाव में अपने इसी धारदार नारे के साथ नमूदार हो रहे हैं और देश को कांग्रेस मुक्त करने के अभियान को साकार करने में जुटे हैं। लेक्म महात्मा योगी भूल गए कि वे महात्मा गांधी नहीं हैं।  उनकी वाणी  में वो ओज    नहीं है जो गांधी की वाणी में था। महत्मा योगी जी की बात तो उनका अपना उत्तर प्रदेश नहीं सुन रहा जबकि महात्मा गांधी के नारे को पूरे देश ने अपना लिया था।

अव्वल तो महात्मा योगी को महात्मा गाँधी की नकल करते हुए भारतीयों को ' बटोगे तो कटोगे ' का नारा देना ही नहीं था और यदि दे भी दिया था तो जम्मू-काश्मीर में भाजपा के हारने के बाद उसे महाराष्ट्र में दोहराना  नहीं था। योगी जी को मुगालता हो गया है कि हरियाण विधानसभा चुनाव भाजपा ने उनके इसी नारे की बिना पर जीता,जबकि जीत  मशीन और मशीनरी   की थी। बहरहाल अभी महाराष्ट्र और झारखण्ड  में अगले महीने विधानसभा के चुनाव होना है।  इन दोनों राज्यों में माननीय महात्मा मोदी के होर्डिंग्स के बजाय महात्मा योगी के  ' बटोगे तो कटोगे ' वाले हर्डिंग्स लग गए हैं। लगता है कि अब भाजपा को अपने महात्मा मोदी के ऊपर भरोसा नहीं रहां ।  भरोसा तो महाराष्ट्र के चित-पवन पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर भी नहीं है।

 मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर तो भाजपा भरोसा कर ही नहीं सकती।  महाराष्ट्र में अब डर के मारे देवेंद्र फडणवीस भी ' देवा भाऊ ' बन गए हैं।  उनके चित-पवन ब्राम्हण होने की बात भी अब कोई नहीं कर रहा है, क्योंकि भाजपा को आशंका है कि देवेंद्र भाऊ  का ब्राम्हण होना कहीं उसे नुक्सान न करा दे। कभी-कभी मुझे लगता है कि भाजपा के मित्रों ने खासकर मोदी और शाह साहब की जोड़ी ने  हमारे पुरखे कवि प्रदीप का फिल्म जागृति के लिए 1954  में  लिखा गीत न सुना है और न पढ़ा है अन्यथा वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीतने के लिए महात्मा योगी का ' बटोगे तो कटोगे वाला मन्त्र इस्तेमाल नहीं करते।

लगता है भाजपा महाराष्ट्र को जानता ही नहीं है। इसलिए मै भाजपा के मित्रों के लिए कविवर प्रदीप के गीत का वो खंड दुहरा रहा हूँ जो उन्होंने महाराष्ट्र के लिए लिखा था।  वे लिख गए हैं कि- देखो मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था हर पर्वत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था घेर शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की बलिदान की इस धरती के प्रतीक छत्रपति शिवजी की प्रतिमा का मान-मर्दन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे  की सरकार के समय ही हुआ है।

दरियादिल प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी इस गलती के लिए जनता से क्षमा याचना भी कर चुके हैं ,लेकिन ये पता नहीं है कि जनता ने मोदी जो को क्षमा किया या नहीं ? जनादेश तो 23  नवंबर को ही आएगा। महारष्ट्र में हालात आज भी ठीक नहीं है। यहां पर्वत-पर्वत  पर आग लगी है। मुगल तो हैं नहीं लेकिन अल्पसंख़्यकों की ताकत को बाजरिये लारेंस विश्नोई  की बंदूकों के बल पर तौला जा रहा है।  बाबा सिद्दीकी की हत्या की जा चुकी है और फिल्म अभिनेता सलमान खान को जान से मारने की धमकी दी जा चुकी है। ऐसे में महात्मा योगी का नार ' आग में घी ' डालने का काम कर रहा है। महाराष्ट्र में मोदी जी का चेहरा चल नहीं रहा।  उनका चेहरा अपनी चमक खो चुका है।

वैसे भी वे इस समय महाराष्ट्र को भूलकर रूस और यूक्रेन के बीच समझौता कराने में व्यस्त हैं। महात्मा शाह परदे के पीछे से मेहनत जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत हरियाणा की तरह कामयाब होगी या नहीं कहना कठिन है। आप यकीन मानिए कि मै मोदी और शाह की जोड़ी के महारत  का मुरीद  हो। वे जिस शिद्द्त  के साथ चुनाव लड़ते हैं और अपने प्रतिद्वंदी दलों का खंडन करते हैं उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं है ।  कांग्रेस तो दलों को तोड़ना जानती ही नहीं है। यानि भाजपा की ये  जुगल जोड़ी बांटने और काटने में सिद्धहस्त हो चुकी है। महाराष्ट्र और झारखण्ड की ही बात करें तो भाजपा राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना को बाँट भी चुकी है और आपने ही बच्चे देवेंद्र फडणवीस के पर काट भी चुकी है ।  झारखण्ड में झामुमो को बांटकर चम्पई बाबू को कमलगट्टे खिलाने का श्रेय भी इसी जोड़ी को है।

आप तो पढ़े-लिखे हैं  अतीत खंगाल लीजिये तो आपको पता चल जाएगा कि भाजपा बाँटने का काम आज से नहीं बल्कि वर्षों से कर रही है। भाजपा जिस किसी दल पर अपना हाथ रखती है उसका दोफाड़ होना अवश्यम्भावी है। मध्यप्रदेश में ,उत्तर प्रदेश में, राजस्थान में और न जाने कहाँ-कहां भाजपा ने कांग्रेस को बांटने की कोशिश की और जब कामयाबी नहीं मिली तो कांग्रेस को काट दिय।  कभी ज्योतिरादित्य सिंध्या को काट ले गयी तो कभी जितेन प्रसाद को। कभी हेमंत विस्वा को तो कभी किसी और को।  बहरहाल लौटकर महात्मा योगी के नारे पर आते है।  अब महारष्ट्र की जनता को ये तय करना है कि क्या वो सचमुच बँट रही है? या सचमुच कटने वाली है ? उसे महात्मा योगी के नारे पर ध्यान देना चाहिए या उसे ' इग्नोर ' करना चाहिए?

एक शुभचिंतक के नाते मै भाजपा हायकमान को मुफ्त का मश्विरा देना चाहता हूं   कि वो महाराष्ट्र और झारखण्ड में स्थानीय मुद्दों पर,स्थानीय नेताओं के चेहरों पर विधानसभा का चुनाव लाडे और जीते ।  इन दोनों  राज्यों में ही नहीं बल्कि किसी तीसरे राज्य को भी महात्मा योगी के ' बांटोगे तो काटोगे ' के नारे से डराने की जरूरत नहीं है ।  भाजपा को महात्मा योगी की बारूद का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश में ही करना चाहिए जहां कि 2024  के लोकभा चुनाव में भाजपा की जमीन पोली हो चुकी है । संद रहे कि ये देश न बनत रहा है और न कोई यहां कट रहा है।  हम सब एक हैं। एक डाल के पंछी  जय श्री राम।

राकेश अचल 

 
 

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