अब एक और नयी दिल्ली बसने का समय

अब एक और नयी दिल्ली बसने का समय

ये दिल्ली किसकी दिल्ली है? ये मुगलों की दिल्ली है ? ये अंग्रेजों की दिल्ली है ? ये आजाद भारत की राजधानी दिल्ली है ? पता नहीं ये किसकी दिल्ली है ? ये दिल्ली किसी की भी दिल्ली हो लेकिन आज की दिल्ली रहने लायक दिल्ली नहीं है।  यहाँ सांस लेना मुहाल है।  दिल्ली जिस  यमुना के तीरे बसी है वो दिल्ली फसूकर  डाल रही है।इस यमुना के तीरे कोई कदम्ब की डाल नहीं है जिसके ऊपर बैठकर दो पैसे की बंशी बजाकर कोई धीर-धीरे कन्हैया बन सके  यानि अब हमें एक और नयी यमुना तथा एक और  नई दिल्ली  बनाना होगी ।  इस दिल्ली से, इस  यमुना से देश की जनता  काम नहीं चलने वाला।

हमारी सरकार ने पिछले दस साल में अंग्रेजों के जमाने का, मुग़लों के जमाने का और तो और कांग्रेस के ज़माने का बहुत कुछ बदला है। शहरों के, स्टेशनों के, सड़कों के, स्टेडियमों के नाम बदले हैं ,इसलिए हम चाहते हैं कि अब सरकार इस जानलेवा दिल्ली को भी  बदल ही दे तो बेहतर।  सरकार समर्थ सरकार है। सरकार ने नई संसद बना दी तो नई दिल्ली को कोई नया नाम देकर किसी दूसरी जगह बसाया   जाना चाहिए।  आज की दिल्ली ,कल की दिल्ली से ज्यादा भयावह है। ये बहादुरशाह की दिल्ली भी नहीं है और पंडित जवाहर लाल नेहरू की भी दिल्ली नहीं है। आज की दिल्ली  पंडित नरेंद्र दामोदर दास मोदी की दिल्ली है। बजबजाती दिल्ली,गंधाती दिल्ली।

बचपन में हमने सुना था कि  दिल्ली की बात निराली होती है लेकिन आज देख रहे हैं कि  दिल्ली की बात निराली नहीं काली है।  दिल्ली वो  अब दिल्ली नहीं बल्कि जलती हुई पराली है। इस दिल्ली में लोग जान हथेली पर रखकर जी रहे हैं क्योंकि दिल्ली को हवा सांस लेने लायक नही।  दिल्ली का प्रदूषण सरकार नहीं ,बेहोश जनता बढ़ा रही है। जनता पर दोष इसलिए मढ़ रहा हूँ ,क्योंकि जनता बेचारी होती है ।  सरकार पर दिल्ली की बदहाली का दोष मढ़ने का साहस मुझमें नहीं है। ये दिल्ली अरविंद केजरीवाल और अमित शाह के बीच बंटी हुई दिल्ली है। ये दोनों ही इस दिल्ली के भाग्यविधाता हैं। बाकी तो केवल बातें हैं और बातों का क्या ?

हम दिल्ली को बेकार बताएँगे तो सरकार हमें भी दूसरों की तरह ' अर्बन नक्सली ' कहने में देर नहीं लगाएगी,इसलिए हम खामोश हैं लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के वायु प्रदूषण विशेषज्ञ विवेक चट्टोपाध्‍याय बताते हैं कि 2006 के बाद से दिल्‍ली-एनसीआर में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. जबकि इस साल अक्‍टूबर से लेकर इस महीने का सेंट्रल पॉल्‍यूशन कंट्रोल बोर्ड का एयर क्वालिटी  इंडेक्‍स देखें तो दिल्‍ली-एनसीआर की हवा लगातार बहुत खराब या खराब स्थिति में बनी हुई है।  अब सरकार विवेक जी को अर्बन नक्सली कहने लगे तो हमारी बला से।

हम जानते हैं,आप जानते हैं, सरकार जानती है ,सब जानते हैं कि  दिल्‍ली में कुल आबादी का 55 प्रतिशत हिस्‍सा सड़क के 300 से 400 मीटर के दायरे में रहता है. ऐसे में वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण के सीधे प्रभाव में वही आते है।  जिसका प्रभाव यह होता है कि वे इस प्रदूषण को सीधे सांस के माध्‍यम से खींचते हैं।  इस वजह से सांस से जुडी समस्‍याएं सबसे ज्‍यादा सामने आती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन मानता है कि भारत में 100 फीसदी आबादी जिन इलाकों में रहती है वहां पीएम 2.5 का स्‍तर डब्‍ल्‍यूएचओ की गाइडलाइंस को पूरा नहीं करता। .यहां प्रदूषण स्‍तर इतना ज्‍यादा होता है कि महज कुछ दिनों में ही गंभीर बीमारियां पैदा हो सकती।

दिल्ली दरअसल अब कबूतर -खाना है।  यहां सम्पन्न इलाकों को छोड़ दिया जाये तो ज्यादातर मकान कबूतर के दड़बों जैसे ही है।  वे झुग्गियां हों या करोड़  ,दस करोड़ के फ़्लैट  और बंगले ,सबकी हवा प्रदूषित है ।  दुनिया की तमाम मशीने  , दिल्ली की हवा को स्वच्छ नहीं कर पा रहीं। हवा को शुद्ध ,हवा ही करती है। पेड़-पौधे करते है।  फैक्ट्रियों से उठता धुंआ नहीं। सरकारों   के बूते की ये बात है भी और नहीं भी। सरकार न यमुना को मरने से बचा पा रही है और न दिल्ली को। दिल्ली की सीमा से लगे हरियाणा,उत्तरप्रदेश और राजस्थान में डबल इंजिन की सरकारें हैं लेकिन वे न दिल्ली की सुनतीं हैं और न दिल्ली उनके कान उमेठ पाती है।

हमारी पीढी उस दिल्ली  को मरता हुआ देख रही है जो पहले इतनी जानलेवा नहीं थी। इस दिल्ली में इंसान ही नहीं बल्कि बेजान इमारतें ,स्मारक,समाधियां ,मंदिर, मस्जिद सबके सब प्रदूषण के शिकार हैं। दिल्ली की दोनों सरकारें या तो कानों में कपास के फाहे लगाए बैठीं हैं या उन्होंने आज के जमाने के ' ईयर वड' लगा रखे है।  किसीको कुछ सुनाई नहीं देता,कुछ दिखाई नहीं देता। दिल्ली धृतराष्ट्र और गांधारी की दिल्ली बनकर रह गयी है। आज से पचास साल पहले जब मै दिल्ली जाता था तब की दिल्ली आज की दिल्ली से भिन्न थी।

 एक जमाने  में मैंने पचकुइया मसान के बाहर भी ताजा हवा का अहसास किया था,लेकिन आज वहां भी ताजा हवा नहीं है। दिल्ली में कहीं भी ताजा हवा नहीं है ।  दिल्ली की हवा खराब है,बहुत ज्यादा खराब।  इसे नामुमकिन को मुमकिन करने वाले हमरे देश के प्रधानमंत्री भी दुरुस्त नहीं कर पा रहे हैं।  दिल्ली कोई  ईवीएम भी तो नहीं है जो सरकार का कहना माने l। दिल्ली तो दिल्ली है ।  दिल्ली वालों ने आधी कमान  आम आदमी पार्टी को सौंप रखी है और आधी मोदी जी को। मुझे लगता है कि दिल्ली को शायद इसी वजह से ज्यादा भुगतना पड़ रहा है।

दिल्ली ही क्या पूरा देश प्रदूषण की गिरफ्त में है । दिल्ली की तरह हमारी सियासत प्रदूषित है । हमारे मजहब प्रदूषित हो रहे हैं या जानबूझकर किये  जा  रहे हैं। सबको अपनी-अपनी फ़िक्र है। देश और दिल्ली की नहीं।  दिल्ली में सरकार को अब रेलों में टंगी उन तख्तियों की तरह एहतियातन ऐसे होर्डिंग लगवा देना चाहिए कि -दिल्ली वाले अपनी जान-ममाल की रक्षा खुद करें क्योंकि ये जान, ये माल दिल्ली वालों का है। दिल्ली को अब शायद भगवान भी नहीं बचा सकता ,हालाँकि दिल्ली के लोग भगवान भरोसे ही अब तक ज़िंदा हैं।
 वर्षों पहले मैंने पड़ौस में चीन की राजधानी बीजिंग और चीन के मुंबई कहे जाने वाले शंघाई में प्रदूषण की दुर्दशा  को देखा था और मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया था कि  कम से कम हमारी दिल्ली तो बीजिंग जैसी प्रदूषित नहीं है।

बीजिंग में प्रदूषण की चादर  को सूर्य भगवान भी नहीं भेद पाते ।  वहां दिन में इतनी धूप नहीं खिल पाती कि  आप अपने घर की छत या बालकनी में मसाले  या अपने चड्डी-बनियान सुखा लें। अब दिल्ली ने बीजिंग को भी पीछे छोड़ दिया है। अब हमारे पास दो ही विकल्प हैं। पहला ये कि   हम 1  करोड़ 70  लाख से ज्यादा  आबादी वाली दिल्ली को ऐसे मास्क उपलब्ध कराएं जो उनके फेंफड़ों में जाने वाली हवा में घुला प्रदूषण सोख ले और दूसरा ये कि  हम दिल्ली को खाली करा लें और कहीं दूर नयी जगह ,देश की नई  राजधानी बनाएं। दिल्ली को खाली करना कठिन टास्क है।

दिल्ली की जनता को हैलमेट की तरह मास्क लगाना अनिवार्य किया जा सकता है। हमें उम्मीद है कि  यदि भाजपा अपनी कार्य योजना के तहत यदि अगले 35  साल तक देश की सत्ता सम्हालती है तो या तो वो नए संसद भवन की तरह कहीं कोई नयी दिल्ली बना लेगी   या फिर मौजूदा दिल्ली को बचने के लिए कोई मिस्डकॉल आंदोलन शुरू करेगी । फ़िलहाल तो हमारी बड़ी सरकार अपनी पार्टी कि नए भवन बनाने में मशगूल है  दिल्ली की हांफती,खांसती, जनता और फसूकर  डालती यमुना के प्रति मेरी कोटि-कोटि संवेदनाएं हैं, सहानुभूति है ,क्योंकि इस प्र्दशन कि खिलाफ हमारे देश की सबसे बड़ी अदालत भी हथियार डाल चुकी है । भगवान दिल्ली की और दिल्ली वालों की रक्षा करे। वैसे  भी पूरा  देश दिल्ली की तरह बीमार होता जा रहा है।
राकेश अचल  

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