क्या योगी से भी कम सिंधिया की हैसियत ?
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ये खबर है भी और नहीं भी कि ग्वालियर के स्वयंभू महाराज ,केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के लिए अप्रयोज्य हो गए हैं ? यदि नहीं हैं तो उनका महाराष्ट्र और झारखण्ड के अलावा दूसरे चुनावों में इस्तेमाल नहीं किया जा रहा ,जबकि सिंधिया मप्र के गिने-चुने चमत्कारी नेता है जो भीड़ को खींचने में समर्थ है। आजकल मध्यप्रदेश में ये सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या भाजपा नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को ' घर कि मुर्गी ' समझ लिया है ? जन्मजात कांग्रेसी रहे केंद्रीय ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्ष 2020 में अपने दल-बल के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। सिंधिया 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे किन्तु उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में सिंधिया के अथक प्रयासों से मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गयी थी। कांग्रेस की सरकार में सिंधिया को अपेक्षित महत्व नहीं मिला।
तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ अनबन के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। सिंधिया परिवार को कांग्रेस से अलग होने में 46 साल लग गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजया राजे सिंधिया ने कांग्रेस से छोड़-छुट्टी की थी ।
बात आज की हो रही है। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में शामिल करने के बाद सबसे पहले राज्य सभा भेजा, फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया और बाद में 2023 के आम चुनाव में गुना लोकसभा चुनाव में टिकिट दिया। वे जीते तो उन्हें दोबारा केंद्रीय मंत्री बना दिया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संघ की शाखाओं में जाये बिना ही अपने आपको पूरी तरह से भाजपाई बनने का उपक्रम किया ,लेकिन आज 4 साल बाद भी भाजपा का मूल कार्यकार्ता सिंधिया को अपना नेता मानने की स्थिति में नहीं है। सिंधिया ने 2023 के मप्र विधान सभा चुनाव में भी बेहिसाब मेहनत की और इसके फलस्वरूप मप्र में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी।
बात आज की हो रही है। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में शामिल करने के बाद सबसे पहले राज्य सभा भेजा, फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया और बाद में 2023 के आम चुनाव में गुना लोकसभा चुनाव में टिकिट दिया। वे जीते तो उन्हें दोबारा केंद्रीय मंत्री बना दिया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संघ की शाखाओं में जाये बिना ही अपने आपको पूरी तरह से भाजपाई बनने का उपक्रम किया ,लेकिन आज 4 साल बाद भी भाजपा का मूल कार्यकार्ता सिंधिया को अपना नेता मानने की स्थिति में नहीं है। सिंधिया ने 2023 के मप्र विधान सभा चुनाव में भी बेहिसाब मेहनत की और इसके फलस्वरूप मप्र में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी।
भाजपा के प्रादेशिक नेताओं और कार्यकर्ताओं की असहमति के बावजूद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सिंधिया पर खूब कृपा बरसा । अमित शाह ने तो सिंधिया के शाही जयविलास महल में जाकर शाही भोज का आनंद उठाया और खुद प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने सिंधिया स्कूल के समारोह में उपस्थित होकर सिंधिया को अपना दामाद बताकर उनके नंबर बढ़ाये।पार्टी हाई कमान के संरक्षण के बावजूद पहली बार सिंधिया कि उपेक्षा किसी के गले नहीं उत्तर रही है । सिंधिया महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनावों के साथ ही हो रहे अन्य उप चुनावों में भी कहीं प्रचार के लिए नहीं बुलाये गए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले भाजपा ऐसा ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार उनकी सगी बुआ राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती बसुंधरा राजे के साथ भी कर चुकी है । उन्हें 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। लोकसभा चुनावों के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया और तो और पार्टी संगठन में भी उन्हें कोई तरजीह नहीं दी गयी। जबकि उनका नाम अनेक अवसरों पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी चला। भाजपा सिंधिया से ज्यादा तवज्जो मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दे रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दे रही है।
आज स्थिति ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कि दशा उस मुर्गी जैसी हो गयी है जिसकी हैसियत अरहर की दाल जैसी होती है। सिंधिया कोमहारष्ट्र और झारखण्ड या उत्तर प्रदेश तो छोड़िये अपने गृह प्रदेश मध्य्प्रदेश में हो रहे विधानसभा के 2 उपचुनावों में भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। मप्र की विजयपुर सीट तो सिंधिया के अपने इलाके में है और इस सीट से उनके पुराने समार्थक पूर्व मंत्री रामनिवास रावत विधानसभा का चुनाव लड़ रहे है। रावत 2020 में सिंधिया के साथ भाजपा में नहीं आये थे। वे पिछले महीनों ही भाजपा में शामिल हुए हैं।
आपको याद होगा कि सिंधिया को लेकर गुना के पूर्व संसद केपी यादव और ग्वालियर के वर्तमान संसद भारत सिंह भी असहज हैं। सिंधिया लगातार ग्वालियर के संसद भारत सिंह के क्षेत्र में मदाखलत कर रहे है। भारत सिंह प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंन्द्र सिंह तोमर के समर्थक और छात्र हैं। सिंधिया की उपेक्षा जानबूझकर की जा रही है या संयोगवश पार्टी हाईकमान को उनकी याद नहीं रही ये कहना कठिन है । सिंधिया का चेहरा चाकलेटी है, वे ओजस्वी वक्ता हैं और योगी आदित्यनाथ से ज्यादा आग उगल सकते हैं और सबसे बड़ी बात ये कि वे महाराष्ट्र में जाकर मराठी में भाषण भी दे सकते थे,किन्तु उनकी ये तमाम प्रतिभा धरी की धरी रह गयी।
मुमकिन है कि मेरी सूचनाएँ आंशिक रूप से सही न भी हों किन्तु मुझे जो दिख रहा है ,वो ही मै लिख रहा हूँ । सिंधिया परिवार कि पिछली दो पीढ़ियों से मेरी निकटता रही है ,इसलिए मुझे तीसरी पीढ़ी के ज्योतिरादित्य सिंधिया कि उपेक्षा हजम नहीं हो रही। मै ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थक भले न होऊं लेकिन विरोधी भी तो नहीं हू। अलबत्ता उनकी सामंती मानसिकता को लेकर मै हमेशा मुखर रहा हूँ। बहरहाल ज्योतिरादित्य का सूर्य फिर चमके तो बेहतर है । आखिर सिंधिया राजघराने के ग्वालियर अंचल से तीन सौ साल पुराने रिश्ते जो है।
राकेश अचल
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