लोकसभा में 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक पेश, विपक्ष ने बिल का किया विरोध, बताया असंवैधानिक, जेपीसी को भेजा गया ।
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'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। विपक्ष के विरोध के बाद सरकार ने बिल को जेपीसी में भेजने का ऐलान किया है। 32 पार्टियों ने बिल के पक्ष में अपना रुख दिखाया था, जबकि कांग्रेस समेत 15 दलों ने इसके विरोध का ऐलान किया था। कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने मंगलवार को लोकसभा में एक साथ चुनाव कराने से संबंधित विधेयक का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है तथा देश को ‘तानाशाही’ की तरफ ले जाने वाला कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को पुर:स्थापित करने के लिए संसद के निचले सदन में रखा। विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान के बुनियादी पहलू हैं जिसमें संशोधन इस सदन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक बुनियादी ढांचे पर हमला है और इस सदन के विधायी अधिकार क्षेत्र से परे है।
उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है और ऐसे में केंद्रीकरण का यह प्रयास पूरी तरह संविधान विरोधी है। उन्होंने आग्रह किया कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए। विधेयक का विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने कहा कि दो दिन पहले सत्तापक्ष ने संविधान पर चर्चा के दौरान बड़ी-बड़ी कसमें खाईं और अब दो ही दिन के अंदर संविधान के मूल ढांचे और संघीय ढांचे को खत्म करने के लिए यह विधेयक लाए हैं। उन्होंने दावा किया, ‘‘यह संविधान की मूल भावना को खत्म करने का प्रयास है और तानाशाही की तरफ ले जाने वाला कदम है।’’
समाजवादी पार्टी सदस्य ने कटाक्ष करते हुए कहा कि जो लोग दो राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ नहीं करा पाते हैं, वे पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात कर रहे हैं। यादव ने कहा कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह प्रस्तावित विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और यह ‘अल्टा वायरस’ है। उन्होंने दावा किया कि इस विधेयक को स्वीकार नहीं किया जा सकता। बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभाएं केंद्र और संसद के अधीनस्थ नहीं होती हैं, यह बात समझने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से संसद को कानून बनाने का अधिकार है, उसी तरह विधानसभाओं को भी कानून बनाने का अधिकार है। तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कहा कि यह राज्य विधानसभाओं की स्वायत्ता छीनने का प्रयास है। उन्होंने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि कोई भी दल हमेशा सत्ता में नहीं रहेगा, एक दिन सत्ता बदल जाएगी।बनर्जी ने कहा, ‘‘यह चुनावी सुधार नहीं है, एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने के लिए लाया गया है।’
द्रमुक नेता टीआर बालू ने सवाल किया कि जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी? इस पर बिरला ने कहा, ‘‘मैं अनुमति नहीं देता, सदन अनुमति देता है।’’ बालू ने कहा, ‘‘मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजा जाए और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया जाए।’’ आईयूएमएल के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र, संविधान और संघवाद पर हमले का प्रयास है।
शिवसेना (उबाठा) के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों के अस्तित्व को कमतर करने की कोशिश है।उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग के कामकाज की भी जांच-परख होनी चाहिए और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जो हुआ, उसे देखते हुए यह जरूरी हो गया है। लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि ये दोनों विधेयक संविधान और नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर आक्रमण हैं। उनका कहना था कि निर्वाचन आयोग की सीमाएं अनुच्छेद 324 में निर्धारित हैं और अब उसे बेतहाशा ताकत दी जा रही है। गोगोई ने कहा कि इस विधेयक से निर्वाचन आयोग को असंवैधानिक ताकत मिलेगी।
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। विपक्ष ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया। इसके मद्देनजर सरकार ने बिल को जॉइंट पार्लियामेंटरी कमिटी यानी संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का फैसला किया है। केंद्रीय कैबिनेट ने 12 दिसंबर को इस बिल को मंजूरी थी। घमासान की वजह से वक्फ संशोधन बिल की तरह 'एक देश एक चुनाव' बिल भी जेपीसी के पास जा रहा है। आइए एक नजर डालते हैं कि संसद में किन पार्टियों ने इस बिल के समर्थन और किन्होंने विरोध का ऐलान किया।
भाजपा और उसके सहयोगी दल इस विधेयक के समर्थन में हैं। बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस जैसे कुछ गैर-एनडीए दलों का भी इस बिल को समर्थन है। दूसरी तरफ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसे कई विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। कुल 32 राजनीतिक दल इस बिल का समर्थन कर रहे हैं, जबकि 15 दल इसका विरोध कर रहे हैं। बिल को पेश करने को लेकर विपक्ष ने मत विभाजन की मांग की, जिसके बाद वोटिंग हुई। बिल को सदन पटल पर रखे जाने के पक्ष में 269 वोट पड़े जबकि विरोध में 198 वोट पड़े। अब सदन में बिल को जेपीसी में भेजने की औपचारिकता पूरी की जाएगी।
इसके पहले कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि सबसे पहले, एक राष्ट्र, एक चुनाव एक सतही रूप से आकर्षक अवधारणा है, खासकर ड्राइंग रूम और बातूनी वर्गों के लिए। यह हमारी व्यवस्था, एकरूपता, अनुशासन और घड़ी की कल की टाइमिंग की भावना को आकर्षित करती है। लेकिन आप ऐसी अवधारणाओं को लोगों की इच्छा, लोकतांत्रिक जनादेश आदि जैसे अंतर्निहित बुनियादी सिद्धांतों पर कृत्रिम रूप से नहीं थोप सकते।
विधेयक के मूल में यह प्रावधान है कि यदि किसी राज्य या संसदीय विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष से पहले समाप्त हो जाता है, तो मध्यावधि चुनाव के बाद नव निर्वाचित इकाई अगले पांच वर्षों तक बनी नहीं रहेगी, बल्कि पिछली विधानसभा के शेष कार्यकाल की समाप्ति पर उसे समाप्त माना जाएगा।
यह कृत्रिम समन्वय क्षेत्रीय दलों की स्वायत्तता और अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा और उल्लंघन है और सीधे संघवाद को कमजोर करता है, जिसे 1990 के दशक में बोम्मई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था।
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि संसद या राज्य स्तर पर अपेक्षित दो-तिहाई बहुमत है। यह संचयी रूप से आवश्यक है क्योंकि यह राज्यों के अधिकारों और विधानसभाओं को प्रभावित करता है। इस पहल को विभिन्न राजनीतिक हलकों से भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा, जिसमें कई तथाकथित भाजपा सहयोगी और नागरिक समाज के कई वर्ग भी शामिल हैं।
दरअसल पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट में एक नया प्रावधान, अनुच्छेद 82 ए (1) शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक में “नियत तिथि” अधिसूचित करेंगे। इसमें अनुच्छेद 82 ए (2) शामिल करने का भी प्रस्ताव किया गया है, जिसमें कहा गया है कि “नियत तिथि” के बाद निर्वाचित राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति के साथ संरेखित करने के लिए कम किया जाएगा।
इसका मतलब यह होगा कि अगर विधेयक बिना संशोधन के पारित हो जाते हैं, तो “नियत तिथि” 2029 में निर्वाचित होने वाली लोकसभा की पहली बैठक के दौरान ही अधिसूचित की जाएगी, क्योंकि इस साल निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक पहले ही बीत चुकी है। अगली लोकसभा का पूरा कार्यकाल 2034 तक होगा।
कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर में इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई थी। स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर कराने की बात कही गई थी। समिति ने सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची बनाने की भी सिफारिश की थी।
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