चुनावी वादे कितना असर डालते हैं मतदाताओं पर
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भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे सशक्त लोकतंत्र माना जाता है। और इस लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं देश के मतदाता। हम चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से अपना जनप्रतिनिधि चुनते हैं और वो जनप्रतिनिधि हमें श्रेष्ठ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री देते हैं। 150 करोड़ की आबादी में चुनाव संपन्न कराना कोई छोटी बात नहीं है। इन चुनावों में तमाम राजनैतिक दल भाग लेते हैं और जनता से कुछ वादे करते हैं कि यदि हमारी सरकार बनती है तो हम आपको ये सुविधाएं देंगे और जनता को जो श्रेष्ठ लगता है, उसी को जनता चुनती है। चुनावी वादे विकास शिक्षा, स्वस्थ्य और रोजगार को लेकर होने चाहिए लेकिन पिछले कुछ समय से जो वादे जनता से किए जा रहे हैं। उनमें ज्यादातर ऐसे हैं जो सीधे सीधे जनता के व्यक्तिगत लाभ से जुड़े होते हैं और जनता भी उसको पसंद कर रही है। और ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में बहुत सी जनसंख्या ऐसी है जो रोजगार के लिए जूझ रही है। और जो सब्सिडी और फ्री का चलन भारत में चल गया है यह तमाम योजनाओं पर असर डाल रहा है। शायद इसे रोकना ही जनता के हित में होगा।
पहले चुनाव में जो वादे होते थे और आज जो वादे हो रहे हैं उनमें समय के साथ साथ बहुत अंतर आ चुका है। सरकार के बताए अनुसार देश की 80 करोड़ आबादी को जनता फ्री राशन मुहैया करा रही है। यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं था। सरकार को जब लगा कि देश की जनता में ग़रीबी रेखा के नीचे बहुत से लोग जीवन यापन कर रहे हैं और वह अपने लिए दो वक्त के भोजन की भी व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं तब इस योजना को शुरू किया गया था। लेकिन अब इसमें राजनीति प्रवेश कर चुकी है। हर राजनैतिक दल को डर है कि यदि इस चलती हुई योजना को बंद किया तो चुनावों में जनता नाराज़ हो सकती है और इसीलिए इसकी अवधि बढ़ती जा रही है। कोई फ्री में बिजली देने का वादा कर रहा है, कोई फ्री लैपटॉप के वितरण का वादा कर रहा है तो कोई खटाखट नोट पहुंचाने का वादा कर रहा है। लेकिन यह कितना ख़तरनाक है इसके विषय में हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यदि हम बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसी तरह बांटते रहेंगे तो हम कहां से रोजगार देंगे और कहां से अच्छा स्वास्थ्य और कहां से अच्छी शिक्षा देने में समर्थ होंगे।
इन वादों को पूरा करने में हम यह भूल जाते हैं कि चुनाव के समय हमने जो अन्य वादे किए थे वह हम पूरे नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि हमारे पास उतना बजट नहीं है। समाजवादी पार्टी की सरकार ने उत्तर प्रदेश में फ्री में साइकिलों का वितरण किया था। बच्चियों को आगे की पढ़ाई के लिए पहले 20000 फिर उसको बढ़ाकर 30000 की राशि के चैक वितरित किए थे, फ्री लैपटॉप, फ्री स्मार्टफोन वितरित किए थे। लेकिन अगले चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा। इसका मुख्य कारण था कि आप मध्य वर्ग के टैक्स के उस पैसे को फ्री में बांट रहे हैं जो कि उसने देश के विकास की योजनाओं के लिए दिए हैं। हमको वह योजना चुननी होगी जो देश के हर व्यक्ति तक पहुंच सके। हम आयुष्मान योजना के तहत गरीबों को फ्री में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन वहीं मध्यम वर्ग का व्यक्ति स्वस्थ्य सेवाओं को लेकर बहुत चिंतित है क्योंकि कि स्वस्थ्य सेवा इतनी महंगी हो चुकी है कि मध्यम वर्ग ठीक से अपना इलाज नहीं करा पा रहा है। और यदि इलाज करा भी रहा है तो उसके घर मकान तक बिक जाते हैं।
देश में बिजली बहुत महंगी है, महंगी बिजली को सस्ता करने के उपाय न ढूंढ कर केजरीवाल ने दिल्ली में एक फ्री की नई जंग छेड़ दी और काफी यूनिट बिजली फ्री देने का ऐलान कर दिया। और दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बन गई। वास्तव में यह फ्री का कल्चर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से शुरू किया था और अब सारी पार्टियां उसी राह पर चल पड़ीं हैं। क्यों कि इन वादों से और उनको पूरा करने पर वोटर उन्हें वोट दे रहा है। अब सवाल यह उठता है कि यह फ्री का कल्चर कब तक चलेगा।जिस योजना को सरकार एक बार लागू कर देती है फिर चाहे उससे कितना भी नुक्सान हो रहा हो उसे बंद करने की वह हिमाकत नहीं कर सकती क्योंकि वह जानती है कि यदि इस योजना को बंद कर दिया गया तो उसका वोट कट जाएगा।
कभी चुनावी वादों को जुमला कहा गया था लेकिन आज जो चुनावी वादे हो रहे हैं वो वास्तव में जनता में असर डाल रहे हैं। केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन मुहैया करा रही है। लेकिन इसमें बहुत सा वर्ग ऐसा भी शामिल है जिसके पास सारे साधन उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी वह इस योजना का लाभ ले रहा है यह हमारे सिस्टम की कमी है। क्यों कि हमने ऐसे लोगों को खोजने में लापरवाही बरती है जो वास्तव में इस योजना के पात्र हैं और जिनको इस योजना का लाभ मिलना चाहिए। इसलिए राजनैतिक दलों को ऐसे फ्री के वादे छोड़ने होंगे क्योंकि यह देश के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। एक मध्यम वर्गीय परिवार जिसको किसी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है और उसी घर के युवा पढ़ लिख कर बेरोजगार घूम रहे हैं। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। आज वोटर राजनैतिक दलों के वादों पर निगाह रखता है। खासकर वो जो इस तरह की फ्री योजनाओं का लाभ पा रहा है।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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