कविता

संजीव-नी। 

कविता

दुनिया आजमाती रही मुझे संजीव। 
 
अपने अंदाज ही बड़े निराले हैं
प्यार के जख्म दिल में पाले हैं। 
 
मौज करते हैं मांग मांग कर
जो मजबूत हाथ पैर वाले हैं। 
 
जिंदगी में जो रंगीन दिखते हैं
दिल के कुछ गोरे कुछ काले हैं। 
 
मौत तो आसान हो गई है अब
पर जिंदगानी के पड़े लाले हैं।
 
बादलों का अता पता भी नहीं
सुखी नदिया और शुष्क नाले हैं। 
 
रिश्तो की कमी नहीं रही कभी
पर सब मुझे आजमाने वाले हैं। 
 
देखो चेहरा उनका खिल गया है
प्यार के रंग हमने इतने डाले हैं। 
 
दुनिया आजमाती रही मुझे संजीव
जाने कितने इम्तिहान लेने वाले हैं। 
 
संजीव ठाकुर

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