sanjivni
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीवनी।

संजीवनी। बंधन का इरादा है वफा का गांव चाहिए।     बला की धूप है सर पर घनेरी छांव चाहिए, थके मुसाफिर को सुकून का गांव चाहिए।     दुआएं निकली है दिल से तो पूरी होंगी, बंधन का इरादा है वफा का गांव चाहिए।...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी| देख कर भी नही देख पाया ।

संजीव-नी| देख कर भी नही देख पाया । देख कर भी नही देख पाया ।फिर उस बात का जिक्लौटकर भुला नहीं पायाउस पल की याद है उसेजिया नहीं जिसे कभी,भोगा भी नहीं,जीने की जरूर कोशिश कीगहरे नहीं पैठ पाया,फिर भूल...
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