दिशाहीन रूढिवादिता और अंधविश्वास की डगर।

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दिशाहीन रूढिवादिता और अंधविश्वास की डगर।

भारतीय समाज एक बहुभाषी, बहु सांस्कृतिक, बहुजातीय, बहु धार्मिक समाज है। एक नजर में इसकी प्रगाढ़ता और इसके विराट स्वरूप को समझना अत्यंत कठिन है। भारतीय समाज की गहरी और विशाल संरचना को, उसके विभिन्न आयामों को समझना हमारे लिए अत्यंत आवश्यक भी है और अनिवार्य भी। हमारा समाज एक विशिष्ट और उत्कृष्ट समाज है, जो अनेक संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों और जीवनशैली में गुथा हुआ है। रोजमर्रा की जीवन शैली में भारतीय समाज की विशिष्ट पहचान दृष्टिगोचर होती है। यह समाज जहां अपनी पुरातन अंधविश्वासी रूढ़िवादिता की बेड़ियों में जकड़ा है, वहीं दूसरी तरफ आधुनिक विकास के साथ अग्रसर होने की चाह में आगे बढ़ रहा है। भारतीय समाज रूढ़िवादिता और आधुनिकता के विकास के बीच अंतर्द्वंद में फंसा हुआ है।

एक और भारतीय समाज पश्चिम से प्रेरित होकर भौतिकता की चकाचौंध के पीछे भाग रहा है वहीं दूसरी तरफ अपनी पुरातन आध्यात्मिक परंपराओं का भी बखूबी निर्वाहन करने का प्रयास भी कर रहा है। किंतु समाज में यह अंतर्द्वंद बना हुआ है कि वह योग को अधिक महत्व दे अथवा भोग को, इससे इतर भारतीय समाज आश्चर्यजनक रूप से दोनों को अपनाते हुए आगे की ओर अग्रसर है। भारतीय महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की नई परिभाषाएं लिख रहीं है वही देश में शिशु लिंगानुपात हर जनगणना में घटता जा रहा है। सामाजिक कुरीतियों में कमी तो आई है पर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों और यौन अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हमारे समाज में बेटियां नाम कमा कर माता-पिता का नाम रोशन तो तेजी से कर रही हैं पर भ्रूण हत्या की दरों में अनावश्यक तेजी भी चिंता का कारण बनी हुई है। यही अंतर्विरोध ही समाज को चिंतनीय भी बना रहा है।

सबसे ताजा खबरों में हरनाज संधु ने मिस यूनिवर्स का खिताब जीता है, और देश का नाम ऊंचा कर गौरव हासिल किया है। भारतीय लड़कियों ने फैशन में एक नया मुकाम बनाया है आज आधुनिक पेंट, जींस पहन कर लड़कियां आगे बढ़ने को आतुर है। दूसरी तरफ खानपान में जहां भारतीय पारंपरिक व्यंजन डोसा, सांभर, इडली, पंजाबी ,मसालेदार भोजन ग्लोबल स्तर पर छा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ हम पारंपरिक भोजन ही कर रहे हैं हमने पिज़्ज़ा, पास्ता, मैक्सिकन, इटालियन, चाइनीस और कॉन्टिनेंटल फूड को भी आमजन का खाद्य पदार्थ बनाया हुआ हैं। भारतीय समाज रूढ़िवादी संस्कारों को पूरी तरह निभाने का प्रयास कर रहा है दूसरी तरफ लिव इन रिलेशनशिप में युवक युवतियां महानगरों में बड़े आराम से जीवन जी रहे हैं।

रूढ़िवादिता तथा पश्चिम के खुले पन और उन्मुक्त होता का एक फ्यूजन तैयार हो रहा है। हमारा समाज आधुनिक अनश्वर को अपनाता है वहीं नवीन वैज्ञानिक पद्धति को भी अपना रहा है और नवयुग की ओर आकर्षित हो रहा है। दूसरी तरफ अपने पारंपरिक दार्शनिक धार्मिक मूल्यों जैसे ज्ञान, भक्ति, कर्म मार्ग, अवतारवाद, पुनर्जन्म, आस्था तथा मोक्ष की अवधारणा और अहिंसा के सिद्धांतों पर अभी भी आस्थावान है। धर्म तथा अध्यात्म का आकर्षण कम होने के स्थान पर ज्यादा हुआ है। धार्मिक स्थलों के बढ़ते निर्माण धर्म गुरु के सत्संग, प्रवचन, पूजन, भजन ,कीर्तन, अजान ,अरदास, उपवास, रोजा, तीर्थ स्थलों, दरगाह पर भारी भीड़ यह सब सिद्ध करते हैं कि भारतीय समाज आधुनिक होने के साथ-साथ अंधविश्वास और रूढ़िवादिता पर भी विश्वास रखता है। इन्हीं सब कारको के कारण रूढ़िवादिता तथा पाश्चात्य दर्शन का अंतर्विरोध स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

एक और पर्यावरण संरक्षण को बनाए रखते हुए हम भारतीय समावेशी विकास की बात करते हैं। वहीं दूसरी तरफ विकास के नाम पर खनन, पेडो की बेतरतीब कटाई जारी रख पर्यावरण की धज्जियां उड़ाते हैं। जल, जंगल, जमीन से लेकर हवा तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है, इससे रूढ़िवादिता और पश्चिमीकरण मैं द्वंद स्पष्ट उजागर होता है। स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज ने अपने संविधान के निर्माण और व्यवस्था के गठन तक में रूढ़िवाद और आधुनिकता दोनों का समन्वय बनाकर दोनों ही वाद को पर्याप्त स्थान दिया है।

परंपरागत मूल्यों को जहां मौलिक कर्तव्य राज्य नीति के निर्देशक तत्व और प्रस्तावना में स्थान दिया है। इसके अलावा मौलिक आजादी के समानता के सिद्धांत को फ्रांस से, संसदीय प्रणाली ब्रिटेन से और मानवीय मूल अधिकार को अमेरिका से ग्रहण करने में जरा भी संकोच नहीं किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी स्तर पर भी भारतीय समाज रूढ़िवादिता और आधुनिकता की ओर एक साथ बढ़ने का प्रयास कर रहा है। एलोपैथी पद्धति से इलाज ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है वही आयुर्वेद योग, परंपरागत आयुर्वेद, ध्यान, नेचुरोपैथी आदि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में भी लोगों की रुची बड़ी तेजी से बढ़ी है। रविंद्र नाथ टैगोर जी ने कहा है 'आधुनिकता पोशाक में नहीं विचारों में होनी चाहिए' भारतीय समाज बाह्य वस्तुओं के साथ-साथ वैचारिक और संस्कृति स्तर पर भी रूढ़िवादिता और आधुनिकता दोनों की ओर एक साथ बढ़ने का प्रयास कर रहा है।

ऐतिहासिक तौर पर भी भारतीय कला और संस्कृति का विकास स्वयं में रूढ़िवादिता और आधुनिकता के समन्वयक का उत्कृष्ट उदाहरण अमीर खुसरो भारतीय वीणा और इरानी तंबूरे को मिलाकर सितार बना रहे थे। स्थापत्य की नागर शैली व मूर्ति कला की गंधार शैली अलग-अलग भारतीय व बाह्य कलाओं के समन्वय का उत्कृष्ट परिणाम है। मुस्लिम स्थापत्य पर भारतीय प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। हिंदी और फारसी के सहयोग से उर्दू का जन्म भारतीय समाज की ही देन है। इसीलिए यह बात स्पष्ट है कि रूढ़िवादिता और पाश्चात्य दर्शन के अनुसरण के लिए भारतीय जनमानस को दोनों दर्शन के सर्वोत्कृष्ट तत्वों को चुनकर उसे अंगीकार करना चाहिए। जिससे भारतीय समाज में विकास की गति भारतीय संस्कृति तथा आधुनिकता के साथ साथ तीव्र गति से हो पाए और मानव कल्याण संभव हो पाए।

संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक, लेखक

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