Sanjeevani
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नीl

संजीव-नीl कौन दस्तक देता है दर पर संजीव।मैं तो अपनी शर्तों पर जीता हूं.पराये दर्द के अश्कों को पीता हूं।रातें तो सितारों संग बीत जाती हैं,दिन के उजालों से बचता रहता हूं।अब चले ना चले कोई...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  मुझे कोई गम नहीं रहा संजीव।     आरजू आखरी सांस तलक नेकी की शर्त ही थी हर लम्हा पूरा जीने की।     आबरू खुद बचा ली इस तूफ़ां ने  मेरी जिंदगी के टूटे हुए सकिने की।     दिल को तस्कीन सी मिली है...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl मतदाता एक दिन का राजाl     एक मतदान के पावन दिन लगाकर कपड़ों में चमकदार रिन एक पार्टी के उम्मीदवार लगते थे मानो है सूबेदार, बिना लंबा भाषण गाये मुस्कुरा कर मेरे पास आए, बोले- कृपया अपने मताधिकार का लोकतंत्र के...
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संजीव-नी।। 

संजीव-नी।।  मुझ पर फेके गए पत्थर अपार मिलेl     मुझ पर फेके गए पत्थर अपार मिले, फक्तियाँ,ताने सैकड़ों बन गले का हार मिले।     शौक रखता हूं भीड़ में चलने का मित्रो, कही ठोकरे,तो कही जीत के पुष्प हार मिले।     जीवन बिता यूँ...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। सामने आओ तो,पलकें झुका देना तुम।    एहसास दिल में न दबा देना तुम, होठों से तिरछा मुस्कुरा देना तुमl    ये दिल की लगी है, घबरा न जाना, सिर्फ आंखों में ही मुस्कुरा देना तुम।    नया नया रूप है तुम्हारे यौवन...
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संजीवनी।

संजीवनी। क्रूरता की परिणति युद्ध।     युद्ध के बाद बड़ा पश्चाताप ही परिणति होती है, अक्सर होता है ऐसा देश या इंसान दुख और पश्चाताप में डूब जाता है हमेशा के लिए। युद्ध, हिंसा,  किसी समस्या का हल नहीं। फिर क्यों लोग...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  जाते ही माँ के सारे दिल भी बट गए।     पर्दे रिश्तों के भी सारे परे हट गए जाते ही माँ के दिल भी सारे बट गए।     मुद्दतों बाद मिलनें से संभला नही जुनूँ देखा मुझे तो दौड़ गले से लिपट...
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