Literature and Sanatan Culture
संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

साहित्य और सनातन संस्कृति की वर्तमान में सार्वभौमिक स्वीकार्यता।

साहित्य और सनातन संस्कृति की वर्तमान में सार्वभौमिक स्वीकार्यता। मुंशी प्रेमचंद जी ने साहित्य को "जीवन की आलोचना" भी कहा है। साहित्य एक स्वायत्त आत्मा है, और उसकी सृष्टि करने वाला भी ठीक से नहीं घोषणा कर सकता है कि उसके द्वारा रचे गये साहित्य की अनुगूंज कब और...
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