संजीव नी।

संजीव नी।

कविता
 
तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं ।
 
तेरे सामने मेंरा वजूद बेहतर
भी नहीं , 
तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं ।
 
यारों ने आईना दिखाया मुझे बार बार
जानता हूँ वो फकत आईना तेरा भी नहीं।
 
हालात मेरे जैसे है बदलेंगे कभी न कभी,
तेरी सोहबत ने बताया तू बेवफा भी नहीं।
 
दिखा दो कठोर ज़माने को इक बार,
मेरी हो मेरी,कही मुझसे जुदा भी नहीं।
 
जाहिर है तुम्हारे भी नाजो नखरे है,
खामोश हो समझूँ मुझसे खफा भी नहीं।
 
लिख गया कोई सूफी इश्किया किस्से,
शर्तिया किस्सा सिर्फ तेरा और मेरा भी नहीं।
 
संजीव ठाकुर

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