खेल को खेल ही रहने दो ,कोई नाम न दो
ग्वालियर में चौदह साल बाद होने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय मैच को लेकर हिन्दू-मुसलमान करने की कोशिश ग्वालियर को बदनाम करने के लिए काफी है। ग्वालियर वैसे भी नव-सामंती दौर से गुजर रहा है ऐसे में मुठ्ठी भर हिन्दुओं के विरोध के चलते बांग्लादेश और भारत के बीच 6 अक्टूबर को खेले जाने वाले टी-20 मैच में बढ़ा डालने की कोशिश हल्कापन है। ग्वालियर में भारत और बांग्लादेश के बीच टी-20 क्रिकेट मैच से पहले ही जिला मजिस्ट्रेट ने निषेधाज्ञा लागू कर दी है। तनाव के बीच कोई भी मैच आनंददायक कैसे हो सकता है ये बात हिन्दू महासभा को सोचना चाहिए।
जग जाहिर है कि ये मैच ग्वालियर के लिए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने बेटे महाआर्यमन सिंधिया की राजनीतिक दूकान सजाने के लिए लेकर आये है। ग्वालियर में क्रिकेट पर सिंधिया का दशकों पुराना कब्जा है। पहले ये मैच नगर निगम के कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम में होते थे,लेकिन अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर में क्रिकेट के लिए अपने पिता के नाम पर एक नया स्टेडियम तामीर करा लिया है। कोई और होता रो शायद ग्वालियर में क्रिकेट कि लिए नया स्टेडियम न बन पाता। ग्वालियर को 14 साल के अंतराल के बाद किसी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच की मेजबानी कर रहा है।
ग्वालियर में सिंधियाशाही एक अलग मुद्दा है लेकिन क्रिकट मैच एक अलग मुद्दा है। मै क्रिकेटप्रेमी होने के नाते नहीं बल्कि ग्वालियर वासी होने के नाते हिन्दू महासभा के नेताओं से गुजारिश करना चाहूंगा कि वे ' मैच को मैच ही रहने दें ,कोई नाम न दें '। यहां खेलने आने वाले बांग्लादेश के खिलाडी हमारे दुश्मन नहीं है। हमने तो भारत के कटटर और घोषित दुश्मन पाकिस्तान के साथ भी अतीत में क्रिकेट खेली है। क्रिकेट खेल है ,इसे राजनीति का मुद्दा बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। हिन्दू महासभा हिन्दुओं की ठेकदार सभा नहीं है। उसकी न कोई सियासी ताकत है और न मैदानी ताकत।
वो केवल तनाव पैदा करने और प्रशासन को छकाने का काम कर सकती है और इसमें भी उसे कामयाबी मिलने वाली नहीं है ,क्योंकि पुलिस के पास इस मैच को करने के लिए पहले से हजार,डेढ़ हजार पुलिस कर्मी हैं। मैच के दिन हिंदू महासभा द्वारा किए गए 'ग्वालियर बंद' और अन्य संगठनों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन इस मैच को बाधित नहीं कर सकते,हाँ वे पहले से बदनाम ग्वालियर को और बदनाम कर सकते हैं। ये काम तो सिंधिया खुद चौराहों पर अपने राजवंश के प्रतीक चिन्हों की जालियां स्मार्ट सिटी के कोष से कराकर पहले ही करा चुके हैं।
दक्षिणपंथी संगठन ने बुधवार को बांग्लादेश में हिंदुओं पर किए गए "अत्याचार" को लेकर रविवार के मैच को रद्द करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन कर चुके है। इतना काफी है। इन संगठनों को सोचना चाहिए की हिन्दुओं की ठेकदार आरती की सरकार बांग्ला देश की निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री को आपने यहां मेहमानों की तरह रखे हुए है। ऐसे में बांग्लादेश के खिलाडियों का विरोध कोई मायने नहीं रखता। बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ जो बर्बरता हुई है उसके लिए खिलाडी नहीं ,बल्कि वहां के नेता जिम्मेदार है। भारत में भी अल्पसंख्यकों के साथ यदि कोई उत्पीड़न होता है तो खिलाडी नहीं नेता और सरकारें ही जिम्मेदार होती हैं।
ग्वालियर वैसे भी विकास के मामले में प्रदेश के दूसरे इलाकों से बहुत पीछे है क्योंकि यहां के जन प्रतिनिधियों की कोई सुनता नहीं है और यहां जो होता है वो महाराज की मर्जी से होता है। हिन्दू महासभा यदि सचमुच ग्वालियर का हित चाहती है तो उसे ग्वालियर में सिटी बसें शुरू करने के लिए बंद का आव्हान करना चाहिये । स्मार्टसिटी का पैसा सिंधिया शाही की पुर्स्थापना पर खर्च करने के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए। मैच के आयोजन के खिलाफ प्रदर्शन से ग्वालियर का हित होने वाला नहीं है। मैच देखने आने वाले अतिथि जब ग्वालियर की धुल उड़ाती सड़कों से गुजरेंगे तो उन्हें ग्वालियर के स्वयंभू महाराज के विकास कार्यों की हकीकत का पता खुद लग जाएगा।
ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान ने पुलिस अधीक्षक की सिफारिश पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा जारी की है। ये मजबूरी में उठाया गया कदम प्रतीत होता है। अपने दफ्तर में महात्मा गाँधी की हत्या के मामले में सजायाफ्ता गौड़से की प्रतिमा लगाने वाली हिन्दू महासभा पता नहीं क्यों बवाल कर रही है । हमारे यहां कहते हैं कि -मुठ्ठक चना,बाजे घना '। यही हाल हिन्दू महासभा का है। सभा के पास इतने कार्यकर्ता भी नहीं है जो गिरफ्तारियां देकर पुलिस की दो लारियाँ भर सकें। हिन्दू महासभा यदि ग्वालियर के लिए लड़ना चाहती है तो ग्वालियर के उस सांसद के साथ खड़ी हो जो सिंधिया के प्रभुत्व से नगर निगम के कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम को मुक्त कराने के लिए प्रयत्नशील हैं। सिंधिया और उनकी क्रिकेट एसोशिएशन दशकों से रूप सिंह स्टेडियम की मालिक बनी हुई है।
बेहतर हो कि हिन्दू महासभा बांग्लादेशी क्रिकेटरों का सम्मान करे,स्वागत करे और उन्हें ये महसूस कराये कि ग्वालियर भले ही नव सामंतवाद की चपेट में है किन्तु यहां समरसता है और बांग्लादेश से लाख गुना ज्यादा बेहतर है। मुझे उम्मीद है कि हिन्दू महासभा के नेता वक्त की नजाकत को समझेंगे । उन्हें क्रिकेट मैच का बहिष्कार करने के मुद्दे पर कोई जन समर्थन मिलने वाला नहीं है। वे नौजवान भी इस मुद्दे पर हिन्दू महसभा के बंद का साथ देने वाले नहीं हैं जिन्हें मैच के टिकट नहीं मिले । या जो 6 अक्टूबर को मैच देखने की कोशिश में पुलिस की लाठियां खाएंगे। क्रिकेट प्रेमियों को ये पता नहीं है कि ये मैच ग्वालियर के नौवजवानों के लिए बल्कि एक युवराज की प्राण प्रतिष्ठा के लिए आयोजित किया गया है।
हिन्दू महासभा को याद रखना चाहिए कि खेल में राजनीती के दुष्परिणाम देश के पहलवान हाल ही में भुगत चुके हैं ग्वालियर एसपी ने कहा कि मैच के विरोध में विभिन्न संगठन जुलूस निकालने, प्रदर्शन करने और पुतला दहन करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक संदेश, चित्र, वीडियो, ऑडियो और अन्य माध्यमों से धार्मिक भावनाओं को भड़काया जा रहा है और सांप्रदायिक माहौल बनाया जा रहा है, जो सामाजिक सद्भाव के लिए हानिकारक है। मुझे लगता है कि ग्वालियर का प्रशासन और पुलिस भी इसीलिए वो सब करने के लिए कमर कसकर बैठा है जिससे ग्वालियर की बदनामी न हो। इसलिए मै फिर कहता हूँ की -खेल को खेल ही रहने दो इसे कोई नाम न दो। खासकर राजनीति का हिन्दू-मुसलमान का।
राकेश अचल
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