विश्व-युद्ध की पृष्ठभूमि में इजरायल, हमास लेबनान ईरान युद्ध। बेलगाम इजरायल।

विश्व-युद्ध की पृष्ठभूमि में इजरायल, हमास लेबनान ईरान युद्ध। बेलगाम इजरायल।

अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी के अनुसार वैश्विक युद्ध की भूमिका वैसे तो इसराइल और फिलिस्तीन युद्ध ने पहले से ही रख दी थी हिजबुल्ला लड़ाको ने इजराइल फिलिस्तीन हमास युद्ध के बीच कूद कर युद्ध में आग में घी का काम किया है। इसके अलावा लेबनान ने इस युद्ध में अपने को शामिल अपनी आहुति दे दी। इसराइल ने जिस तरह लेबनान में छिपे हिजबुल्ला के आतंकवादियों को चुन चुन कर निशाना बनाया और उसमें कमांडर नसरूल्लाह की हत्या ने पूरे ईरान और शिया समुदाय को हिलाकर आक्रोशित कर दिया है। ईरान ने इसे अपना प्रतिष्ठा का प्रश्न बनकर लगभग 300 टारगेटेड मिसाइल इसराइल पर दाग कर विश्व युद्ध की भूमिका तैयार कर दी है।

यह अलग बात है कि इजरायल अब अमेरिका के नियंत्रण से बाहर हो गया अमेरिका और यूरोपीय देश अपनी प्रतिबद्धता के कारण इसराइल को समर्थन दे रहे हैं। अब इसराइल बेलगाम होकर ईरान लेबनान और हमास के आतंकवादियों पर खुलकर हमला कर उन्हें नेस्तनाबूत करने पर उतारू है । इसराइल के इस युद्ध में अरबो रुपए खर्च  हो चुके हैं उधर ईरान ने भी लगभग 30 करोड़ की मिसाइल से अपना हमला कर इरादे साफ कर दिए हैं कि अब ईरान भी रुकने वाला नहीं है।

इन सब युद्ध की गतिविधियों से विश्वयुद्ध की संभावनाएं बढ़ गई है और विश्व युद्ध वर्तमान की मानवीय सभ्यता के लिए एक गतिहीन अवरोध बन गया है। उधर अरबपति अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरस ने दावोस में अपने वार्षिक प्रतिवेदन में कहा है कि दुनिया को इस युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए और इसमें पूरे संसाधन झोंक देने चाहिए। वैसे भी रूस यूक्रेन युद्ध को दो साल से  ज्यादा हो चुके हैं और युद्ध रोकने के जितने भी प्रयास है असफल हो चुके हैं वैश्विक सभ्यता को संरक्षित, पल्लवित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ और संभवत एकमात्र तरीका रूस-यूक्रेन और इजरायल हमास, फिलिस्तीन, लेबनान और ईरान युद्ध को हर संभव तरीके से रोकना होगा होगा।

यह हमला तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत कर सकता है और हमारी सभ्यता इसे झेल नहीं पाएगी और तहस-नहस हो जाएगी। दावा किया गया है कि पुतिन ने शी जिनपिंग को पहले से ही बता दिया था और दोनों नेताओं की मुलाकात भी हुई थी दोनों ने एक लंबा बयान जारी कर घोषणा की थी कि उन दोनों के बीच संबंधों की और सहयोग की कोई सीमा नहीं है। पुतिन ने सी जिनपिंग को यूक्रेन के विरुद्ध विशेष सैन्य अभियान की जानकारी भी दे दी थी। तब शी जिनपिंग ने पुतिन से ओलंपिक खेलों के होते तक सैन्य अभियान रोकने की बात कही थी। इसी बीच रूस के एक राजदूत ने इस्तीफा देकर पुतिन की इस कार्रवाई का खुलकर विरोध किया था और युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिवार ने भी रूस में अपना विरोध दर्ज किया है।

पुतिन को अपनी गलतियों का अब धीरे-धीरे एहसास हो रहा है जब यूक्रेन में रहने वाले रूसी भाषा के नागरिकों ने यूक्रेन पर हमले की घोर निंदा की है जबकि पुतिन को उनके समर्थन आशा थी जबकि ऐसा कुछ हुआ नहीं। पुतिन को अब यह एहसास हो गया है कि उन्होंने यूक्रेन पर आक्रमण करके एक बड़ी गलती की है। अब वह संघर्ष विराम के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने में लगे हैं जो वर्तमान संदर्भों में संभव नहीं है। क्योंकि विश्व समुदाय का रूस पर भरोसा खत्म हो चुका है। अब या तो पुतिन अपनी हार छुपाने के लिए चाइना की मदद विश्व युद्ध करेंगे या फिर अपनी हार स्वीकार कर अपने पद से इस्तीफा देकर पलायन कर जाएंगे।

रूस यूक्रेन युद्ध मैं आज तक कुल मिलाकर 30 लाख करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं और युद्ध खत्म होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। अमेरिका सहित नैटो देश के सदस्य और अन्य यूरोपीय सदस्य लगातार यूक्रेन की आर्थिक तथा सामरिक मदद करते आ रहे हैं और इस स्थिति में रूस ही कमजोर नजर आ रहा है क्योंकि रूस के तमाम कमांडर और सैनिकों का मनोबल अब लगातार गिरते जा रहा है, इसके पश्चात रूस के नागरिक भी इस युद्ध के अंदरूनी खिलाफ है जबकि यूक्रेन के नागरिक उसी हौसले और उत्साह के साथ अपने नेता जेलेंस्की के साथ खड़े हुए हैं। अब स्थिति यह है कि यूक्रेन के पास ना तो पैसे की कमी है ना ही हथियारों की,वह लगातार रूसी सैनिकों तथा कमांडरों का जमकर विरोध कर रहा है।

ये अलग बात है कि मारियोपोल मैं इमारतों के मलबे के निकालने के पश्चात अलग-अलग जगह से चार पांच सौ दबे हुए शव को निकाला गया है। जिससे वहां जनता के बीच हाहाकार मच गया है। इस युद्ध की विभीषिका से यूक्रेन के लगभग एक करोड़ नागरिक यूक्रेन छोड़कर पोलैंड एवं अन्य देशों में शरण लेकर शरणार्थियों की तरह जीवन यापन कर रहे हैं। यूरोपीय देश इन शरणार्थियों को अच्छी सुविधाएं देने के लिए कृत संकल्प हैं और उन्हें किसी भी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। वैश्विक राजनीति में चीन और रूस सर्वथा अलग-थलग पड़ गए हैं।

ताजा स्थिति के अनुसार अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जापान और भारत में टोक्यो सम्मेलन में चीन के बढ़ते औपनिवेशिक वाद के खतरे को भांपते हुए प्रशांत महासागर एवं तीन पेसिफिक क्षेत्र में सैन्य अभ्यास के लिए गठजोड़ कर लिया है। इसी तरह चीन के व्यापारिक फायदों को नुकसान पहुंचाने हेतु अमेरिका ने 13 देशों का एक आर्थिक समूह तैयार कर चीन को वैश्विक राजनीति और आर्थिक योजनाओं से अलग अलग कर दिया है। चीन अब क्वाड सम्मेलन को अपना विरोधी बताकर लद्दाख में अपनी सैन्य तैयारियां भारत के विरुद्ध बढ़ाने में लग गया है। 13 देशों के आर्थिक समुदाय ने भी चीन को एक खुला संदेश देकर चुनौती दे दी है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका तथा चीन के विरुद्ध आर्थिक क्षेत्र तथा सामरिक क्षेत्र में खुली प्रतिस्पर्धा मैदान में आ गई है। अमेरिका वैसे भी पूर्व से ही रूस का विरोधी रहा है अब अमेरिका चीन तथा रूसी गठबंधन को आने वाले समय के लिए एक बड़ा खतरा मानते पूरे विश्व को इन दोनों के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास कर रहा है। वैश्विक शांति और सभ्यता को नष्ट होने से बचाने के लिए इन दोनों देशों पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक भी है।

संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक,लेखक

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