ऊंट की संख्या कम होने के कगार पर राजस्थान का जहाज कहां जाने वाला "ऊंट" लगातार कम हो रही संख्या 

मध्य प्रदेश सरकार भी ऊंट पालको के लिए करें योजनाओं का क्रियान्वयन

ऊंट की संख्या कम होने के कगार पर राजस्थान का जहाज कहां जाने वाला

मध्यप्रदेश मंदसौर।(हीरालाल रेबारी पत्रकार )। मध्य प्रदेश में भी ऊंट के प्रति  अभियान चलाए सरकार अधिकतम उंट मध्य प्रदेश के मंदसौर नीमच जिले में रबारी समाज द्वारा पाला जाता है जिसके तहत राजस्थान में उंट पलकों को ₹10000 सालाना दिया जाता है जिससे कि ऊंट की संख्या मे वृद्धि होती है तथा ऊंट का योगदान पर्यावरण में महत्वपूर्ण है एवं ऊंट का दूध अनेक बीमारियों में लाभकारी हैमध्य प्रदेश सरकार भी ऊंट पा लकों के लिए करें योजनाओं का क्रियान्वयन ऊंट भारत की सांस्कृतिक धरोहर हैधीरे-धीरे इसकी प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर हैइसलिए सरकार ऊंट पालकों को आर्थिक संबल प्रदान करें, मध्य प्रदेश के अंदर और राजस्थान के अंदर भी ऊंट की संख्या काफी ज्यादा थी पर लेकिन धीरे-धीरे काफी कम संख्या रह चुकी है
 
मध्य प्रदेश के अंदर ऊंट की लेकिन वन विभाग की परेशानियों के कारण धीरे-धीरे ऊंट का पशुपालन छोड़ना पड़ रहा है आज भी हमारे लिए रेबारी समाज मुख्य पशुपालन ऊंट और भेड़ ही था , पुरानी परंपरा के अनुसार ऊंट बैलगाड़ी के साथ ही समान को ले जाया करता था ,ऊंटनी के दूध को सऊदी अरब, यूएई,ऑस्ट्रेलिया सहित दर्जन भर देशों में दवाइयों सहित, मिल्क शेक के रूप में काम में ले रहे हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व, विटामिन्स होते हैं। मंदबुद्धि बच्चों के दिमागी विकास, मधुमेह, कैंसर, विभिन्न संक्रमण, भारी धातु विषाक्तता, कोलाइटिस और शराब से प्रेरित विषाक्तता के रोगों में दवा के रूप में काम ले रहे हैं। गुजरात के कच्छ में पाया जाना वाला खाराई ऊंट समुद्री पानी में भी 5-7 किलोमीटर बिना किसी सहारे के चल सकता है।
 
पर लेकिन धीरे-धीरे साधनों की तकनीकी होते हुए ऊंट की काफी संख्या कम हो गई है आने वाले समय में काफी ऊंट की संख्या कम हो जाएगी, हमने पशुपालकों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वन विभाग वाले परेशान करते हैं बार-बार इसलिए हमको यह ऊंट पशुपालन छोड़ना पड़ रहा है सरकार की अनदेखी की जा रही है   उनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन ही है 2008 के आंकड़े के अनुसार देखें तो हमारा पशुपालन व्यवसाय 80% था यदि 2024 की बात करें तो पशुपालन व्यवसाय प्रतिशत 42% ही रह गया धीरे-धीरे पशुपालन व्यवसाय 42% ही रह गया है।  डॉक्टर वर्गीज कुरियन के के नेतृत्व में ऊंट के दूध की जांच करवाई थी जांच पड़ताल में यह बताया गया था कि ऊंट का दूध पीने से शरीर में कई प्रकार की बीमारी को नष्ट कर दिया जाता है
 
आज के  प्रतिशत आंकड़े में देखें तो सरकार ने हमारा मुख्य पशुपालन व्यवसाय घटते प्रतिशत में बढ़ा दिया है क्योंकि उनको परेशान किया जाता है इसलिए पशुपालन व्यवसाय छोड़कर अपने दूसरे व्यवसाय में लग गए हैं
सन 2015 में हाई कोर्ट में ऊंट के प्रति आदेश पारित किया था की ऊंट के ऊपर प्रति वर्ष अनुसार  दूध की जांच करवा कर   दवाइयां के रूप में उपलब्ध किया जाएग राजस्थान की पहचान और रेगिस्तान का जहाज कहा जाने वाला , ऊंट की संख्या में लगातार गिरावट नजर आ रही है आंकड़े धीरे-धीरे लुप्त होने के संकेत दे रहे हैं अगर ऐसा ही चला रहा तो आने वाले दिनों में सिर्फ किताबों और चित्रों मैं ही ऊंट नजर आएगा लेकिन गलत नीतियों और सरकार की अनदेखी के चलते न केवल ऊंट बल्कि भेड़ों की संख्या भी घट रही है,ऊंट का जिक्र आते ही रेगिस्तान का ख्याल एकाएक मन में आ जाता है।
 
एक समय रेगिस्तान में यातायात का मुख्य साधन रहा ऊंट अब संकट में है। इनकी संख्या न केवल भारत में, बल्कि दुनिया में घट रही है। शायद यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2024 को ऊंट वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है, ताकि लोगों का ध्यान ऊंट के संरक्षण की तरफ भी जाए।उत्तरी अफ्रीका और मध्य एशिया के ऊंटों को असली ऊंट माना जाता है। इनमें ड्रोमेडरी (एक कूबड़ वाला ऊंट) और बैक्ट्रियन (दो कूबड़ वाला ऊंट) हैं। भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा में मुख्य रूप से ऊंट पाए जाते हैं, लेकिन राजस्थान में सर्वाधिक 2.14 लाख ऊंट हैं, जबकि देश भर में इनकी संख्या 2.50 लाख से कम हो गई है।वर्ष 2012-19 के बीच हुए एक सर्वे में पता चला था कि भारत में ऊंटों की संख्या तेजी से कमी आई है।
 
देश में यह डेढ़ लाख घटकर 2.52 लाख ही रह गए थे। वर्ष 2019-23 के बीच यह संख्या और घटी है। नागालैंड और मेघालय जैसे राज्यों में तो अधिकारिक रूप से ऊंट समाप्त हो चुके हैं। राजस्थान में ऊंट की गोमठ, नांचना, जैसलमेरी, मेवाड़ी, अलवरी, सिंधी, कच्छी और बीकानेरी प्रजाति पाई जाती हैं। राजस्थान के लोकदेवता पाबूजी को ऊंटों का देवता कहते हैं। गुजरात में तो समुद्र में तैरने वाले ऊंट भी मिलते हैं। यह कच्छ की खराई किस्म के ऊंट हैं, जो हर रोज समुद्र में विचरण करते हैं और समुद्री वनस्पति मैंग्रूव को खाते हैं। हालांकि, पिछले कुछ सालों में उद्योगों के विस्तार के कारण मैंग्रूव खत्म हो रहे हैं और खराई ऊंटों के लिए खाने की समस्या आ रही है। अब पूरे गुजरात में 4500 हजार से आसपास खराई ऊंट ही बचे हैं।

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