भगवान ने रुक्मणी के प्रेम के अधिकार को हर परिस्थिति में बचाया: जगतगुरू राघवाचार्य 

भगवान कृष्ण और रुक्मणी के मंगल विवाह के प्रसंग को सुनकर भक्त भाव विभोर हो गए 

 भगवान ने रुक्मणी के प्रेम के अधिकार को हर परिस्थिति में बचाया: जगतगुरू राघवाचार्य 

अयोध्या। राम कथा पार्क में मूर्धन्य पंडित उमापति त्रिपाठी महाराज के आशीर्वाद से तीन कलश तिवारी मंदिर धर्मार्थ सेवा ट्रस्ट अयोध्या के सौजन्य से श्रीमद्भागवत कथा के अष्टम दिवस की बेला में जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी डॉ राघवाचार्य जी महाराज ने रुक्मिणी विवाह के पवित्र कथा का श्रवण कराया जिसको सुन पंडाल में बैठे श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। महाराज जी ने बताया कि रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण से गहन प्रेम था। हालांकि , उनके भाई रुक्मी की इच्छा थी कि रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से हो। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानते हुए उन्हें पत्र लिखा और अपनी सहायता के लिए बुलाया, क्योंकि वह अपने भाई की इच्छा के विरुद्ध शिशुपाल से विवाह नहीं करना चाहती थीं।
 
रुक्मिणी ने अपने पत्र में श्रीकृष्ण से प्रार्थना की थी कि वे उन्हें शिशुपाल के चंगुल से बचाकर अपने साथ ले जाएं। रुक्मिणी ने यह पत्र एक विश्वस्त ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण तक पहुँचाया , जिसमें उन्होंने अपने प्रेम और भक्ति का इज़हार किया था। स्वामी जी ने बड़े भावपूर्ण तरीके से उस दृश्य का वर्णन किया जब रुक्मिणी देवी ने भगवती पार्वती के मंदिर में पूजा करने के बाद श्रीकृष्ण का इंतजार किया। जैसे ही रुक्मिणी मंदिर से बाहर आईं, श्रीकृष्ण ने अपने रथ पर आकर उन्हें वहां से उठा लिया और विदर्भ से द्वारका ले गए। रुक्मी ने उनका पीछा किया, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पराजित किया, हालांकि रुक्मिणी के आग्रह पर उसे जीवनदान दिया।
 
स्वामी जी ने कहा कि यह विवाह श्रीकृष्ण के भक्तवत्सल और करुणामय स्वभाव को दर्शाता है। भगवान ने अपने भक्त की पुकार सुनी और रुक्मिणी को उनके प्रेम के अधिकार के लिए हर परिस्थिति से बचाया। यह कथा सिखाती है कि जब भक्त सच्चे हृदय से भगवान को पुकारते हैं, तो भगवान स्वयं उनकी रक्षा के लिए आते हैं।कथा का समापन रुक्मिणी विवाह के इस पवित्र प्रसंग से हुआ, जिसमें स्वामी जी ने भक्तों को प्रेम, समर्पण और भक्ति के महत्व को समझाया।
 
श्रद्धालु भक्तों ने भजन-कीर्तन के साथ इस कथा का आनंद लिया और स्वामी जी के प्रवचनों से प्रेरणा प्राप्त की।कथा शुभारंभ के पहले पंडित शिवेश्वरपति त्रिपाठी, पंडित श्रीशपति त्रिपाठी और महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी व्यास पीठ और व्यास पीठ पर विराजमान जगतगुरू स्वामी डॉ राघवाचार्य महाराज का पूजन अर्चन किया। कथा के विश्राम मेला पुनः आरती उतारी के और प्रसाद वितरण किया गया। आज की कथा में संघ के क्षेत्रीय प्रचारक अनिल जी सहित सैकड़ो की संख्या में कथा प्रेमी उपस्थित रहे। सभी अतिथियों का स्वागत रूद्रेश त्रिपाठी ने किया।
 

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