संजीव-नी|

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आज मेरे दिल का क्या हाल है। 
 
आज न जाने मेरे दिल क्या हाल है,
सुर है न ताल है हाल मेरा बेहाल है। 
 
आंखों से क्या जरा ओझल हुए तुम,
जिन्दगी की हर चाल ही बेचाल है। 
 
सोते जागते दिखते सपने तुम्हारे
इश्क की जिद्द जी का जंजाल है। 
 
हर कसौटी में मुझे क्यों परखते हो,
आशिक़ी में इस बात का बवाल है। 
 
कैलेंडर बन गये है इश्क के हर पल, 
तेरा रूबरू न होना इश्क का सवाल है । 
 
महफ़िल में हर तरफ तारीफ तेरी,
शर्म से क्यूँ हसीन चेहरा लाल है। 
 
गुम हो चुका मै तुझमें ही संजीव,
लम्हा लम्हा सुर्ख  रंगे-गुलाल है| 
 
संजीव ठाकुर

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