केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट।
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स्वतंत्र प्रभात।
राज्य पुलिस द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों के अधिकारियों की गिरफ्तारी के बढ़ते मामलों पर महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के अधिकारियों को बदले की भावना से की जाने वाली कार्रवाई से बचाने के उद्देश्य से संतुलन बनाने पर जोर दिया है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने राज्य पुलिस को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने से केंद्रीय जांच एजेंसियों के अफसरों को नहीं रोकने का भी सुझाव दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच में केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
राज्य सरकारों की तरफ से भी सीबीआई और ईडी के अफसरों पर मुकदमे ठोके जाने के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि केंद्र के अधिकारियों पर बदले की भावना से की जाने वाली कार्रवाई से बचाने के लिए एक दूसरे के खिलाफ संतुलन बनाने की जरूरत है। कोर्ट ने यह तो माना कि राज्य पुलिस को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने से नहीं रोका जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि केंद्र और राज्य की एजेंसियों के बीच टकराव से संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने तमिलनाडु पुलिस द्वारा कथित भ्रष्टाचार के लिए ईडी अधिकारी की गिरफ्तारी से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी का जांच में कोई अधिकार नहीं है, लेकिन उसे निष्पक्ष जांच का अधिकार है।बेंच ने कहा कि मुख्य सवाल यह है कि अगर अधिकारी केंद्र सरकार से है, तो क्या उसे राज्य पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाना चाहिए। अगर केंद्र सरकार ने उस अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही करने की अनुमति दी होती, तो स्थिति बिल्कुल अलग होती।
तमिलनाडु पुलिस का कहना था कि ईडी अधिकारी को 20 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा गया था और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामले की जांच लगभग पूरी हो चुकी है। राज्य पुलिस आरोपपत्र दाखिल करने के लिए तैयार थी, लेकिन ईडी के सुप्रीम कोर्ट जाने के कारण इंतजार करना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच के मामले में आरोपी की कोई भूमिका नहीं हो सकती, लेकिन उसे निष्पक्ष जांच का अधिकार है। संघीय ढांचे में प्रत्येक घटक को अपने अधिकार क्षेत्र के डोमेन को बनाए रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।अगर कोई राज्य पुलिस बदले की भावना से केंद्र सरकार के अधिकारियों को गिरफ्तार करती है तो यह एक संवैधानिक संकट पैदा करेगा। लिहाजा यह कहना कि राज्य के पास गिरफ्तारी का विशेष अधिकार होगा, यह संघीय ढांचे के लिए खतरनाक होगा।लेकिन राज्य पुलिस को अपने अधिकार क्षेत्र में किसी अपराध की जांच करने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पुलिस शक्ति के इन दो प्रतिस्पर्धी पहलुओं के बीच संतुलन बनाने के लिए दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार-विमर्श करेंगे। यह स्टेट बनाम यूनियन का एक क्लासिक उदाहरण है। हम बड़े संघीय ढांचे की योजना पर विचार करेंगे और ऐसे मामलों की जांच के लिए सिस्टम को निर्धारित करेंगे। पेश मामले में गिरफ्तार ईडी अधिकारी को दी गई अंतरिम जमानत की अविध को अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने संघीय गतिशीलता की पेचीदगियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जांच करने के लिए राज्य की स्वायत्तता महत्वपूर्ण है, लेकिन अनियंत्रित शक्तियां संभावित रूप से संवैधानिक गतिरोध का कारण बन सकती हैं, खासकर अगर केंद्र सरकार के अधिकारियों को स्थानीय अधिकारियों द्वारा बिना किसी ठोस आधार के निशाना बनाया जाता है। न्यायमूर्ति कांत ने कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की, “काल्पनिक परिदृश्य जहां राज्य एजेंसियां मनमाने ढंग से केंद्र सरकार के अधिकारियों को हिरासत में ले सकती हैं, हमारे संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा करती हैं और संवैधानिक संकट को जन्म दे सकती हैं।”
इन चिंताओं को स्वीकार करने के बावजूद, पीठ ने निष्पक्ष जांच के लिए अभियुक्तों के अधिकारों को भी मान्यता दी, और जोर देकर कहा कि अपने अधिकार क्षेत्र में राज्य पुलिस के अधिकार को नकारना भी उतना ही अवांछनीय है। पीठ ने कहा, “हमारा उद्देश्य एक ऐसा विवेकपूर्ण दृष्टिकोण तैयार करना है जो केंद्रीय और राज्य दोनों जांच एजेंसियों की स्वायत्तता का सम्मान करे।” सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई जनवरी के लिए निर्धारित की है, जहाँ उसे इन जटिल मुद्दों को पूरी तरह से संबोधित करने की उम्मीद है।
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