अपने वोटरों को नहीं सम्हाल पा रही है बसपा
बहुजन समाज पार्टी का वोट शेयर उत्तर प्रदेश में हाल के चुनावों में काफी घटा है। 2017 के विधानसभा चुनाव बसपा का वोट शेयर 22.2% था और उसको 19 सीटें मिली थीं। 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर गिरकर 12.88% रह गया और उसे मात्र एक सीट ही विधानसभा चुनाव में मिली। 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का वोट शेयर 9.39% रहा, जो कि पिछले चुनावों की तुलना में काफी कम है। इस बार बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई । 2014 और 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19% के आसपास था, लेकिन 2024 में यह 10.38% तक गिर गया, जिससे पार्टी की स्थिति और भी कमजोर हो गई है बसपा की प्रमुख मायावती का वोट बैंक, विशेषकर जाटव और अन्य दलित समुदायों के बीच, धीरे-धीरे खिसक रहा है। 2024 के चुनावों में यह साफ दिखाई दिया कि बसपा का जनाधार कमजोर हो चुका है, और पार्टी को अपनी रणनीति पर गंभीरता से विचार करना पड़ रहा है क्योंकि उसे आगामी चुनावों में अपनी स्थिति को सुधारना है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2017 से 2022 के बीच बसपा का वोट शेयर लगभग 10% कम हो गया है। इस गिरावट ने बसपा की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया है, जिससे पार्टी को अपने पुराने जनाधार को फिर से प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है।
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण और क्रीमीलेयर पर सपा, कांग्रेस, इंडिया गठबंधन और भाजपा पर भी निशाना साधा है। बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पिछले दिनों यह स्पष्ट कह दिया था कि वह अब सबसे ज्यादा अपना ध्यान अपने कोर वोट यानि कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर ही देंगी। कुछ ही दिनों में कई सारे ट्वीट करते हुए बसपा सुप्रीमो ने कहा है कि सपा और कांग्रेस एससी-एसटी आरक्षण के समर्थन में तो अपने स्वार्थ व मजबूरी में बोलते हैं। लेकिन दोनों ही पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह इनकी आरक्षण विरोधी सोच है। मायावती ने यह आरोप लगाया कि सपा और कांग्रेस दोनों का ही चरित्र एससी-एसटी विरोधी रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जनता की भावना को देखते हुए केंद्र सरकार ने कोई भी क़दम नहीं उठाया है।
मायावती ने यह भी कहा है कि "भाजपा का एससी-एसटी आरक्षण विरोधी रवैया पूरी ताक़त के साथ बरक़रार है और इस मामले में इंडिया गठबंधन की चुप्पी भी उतनी ही घातक है। "मायावती और उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी का उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। खासकर दलितों के बीच उनकी पकड़ मजबूत रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों में बसपा के जनाधार में गिरावट आई है। यह गिरावट कई कारणों से हो रही है, और मायावती अपनी पार्टी को उसी पुरानी ताकत के साथ खड़ा करने में संघर्ष करतीं नजर आ रही हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि पिछले कुछ चुनावों ने दूसरी पार्टियों ने बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाई है और यही कारण है कि बसपा आज एससी-एसटी आरक्षण मामले में इंडिया गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी दोनों को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है।
दूसरी पार्टियों का उभरने के कारण विशेष कर उत्तर प्रदेश में बसपा शिखर से शून्य पर पहुंच गई है। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि एक तो पिछले लोकसभा चुनाव को बहुजन समाज पार्टी ने गंभीरता से नहीं लड़ा और दूसरा कारण यह है कि देश में अब गठबंधन की राजनीति चल रही है जो कि काफी असरकारक है। भारतीय जनता पार्टी जैसी बड़ी पार्टी उत्तर प्रदेश में छोटे छोटे दलों से गठबंधन किये हुए है।उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने अपने जनाधार को बढ़ाया है। बीजेपी ने दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति बनाई, जिससे का परंपरागत वोट बैंक कमजोर हुआ है। नेतृत्व की कमी और पार्टी के भीतर असंतोष भी एक बहुत बड़ा कारण है पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता बसपा से जा चुके हैं ।
मायावती की पार्टी में कई वरिष्ठ नेता छोड़ चुके हैं या निष्क्रिय हो चुके हैं। यह नेतृत्व की कमी और पार्टी के भीतर असंतोष का संकेत है, जिससे पार्टी का संगठन कमजोर हुआ है। युवा वोटरों के बीच आकर्षण की कमी भी बसपा में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। बसपा को युवाओं के बीच वह समर्थन नहीं मिल रहा जो कभी उसे मिलता था। इसके पीछे पार्टी की पुरानी शैली की राजनीति और युवाओं से जुड़े मुद्दों पर उचित ध्यान न देना हो सकता है। मायावती की व्यक्तिगत छवि को भी विपक्षी दलों ने रोक दिया है। लेकिन आज भी पुराने लोग मायावती के शासन की तारीफ करते हैं। मायावती की छवि एक सख्त और अनुशासनप्रिय नेता की है, लेकिन यह छवि अब उनके विरोधियों द्वारा "संवेदनहीन" और "अभिजात्य" के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। इसका भी असर उनके जनाधार पर पड़ा है।
जातिगत समीकरण में बदलाव एक बहुत बड़ी वजह मानी जा रही है उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरणों में बदलाव हो रहा है। जहां एक समय में दलित वोट बैंक पूरी तरह बसपा के साथ था, वहीं अब इस वर्ग में भी अन्य दलों के प्रति झुकाव देखने को मिल रहा है। संघर्ष और आंदोलन की कमी भी पार्टी में साफ दिखाई दे रही है। बसपा ने पहले आंदोलन और संघर्ष के माध्यम से दलितों के मुद्दों को प्रमुखता दी थी। पर अब पार्टी इस तरह के आंदोलनों में उतनी सक्रिय नहीं दिखती। इससे भी पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है। मायावती के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी पुरानी रणनीतियों को नए सिरे से परखें और समय के साथ कदमताल मिलाते हुए अपने संगठन और जनाधार को फिर से मजबूत करें। खासकर युवाओं और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के साथ नए सिरे से संवाद स्थापित करना महत्वपूर्ण होगा।
इस स्थिति को बदलने के लिए मायावती को नए नेतृत्व और नई रणनीतियों के साथ आगे आना होगा। पार्टी को खुद को एक बार फिर से मजबूत और प्रासंगिक बनाने के लिए संगठनात्मक ढांचे में सुधार और नए सिरे से जनाधार को खींचने के प्रयास करने होंगे। मुलायम सिंह यादव ने समय रहते अखिलेश यादव को आगे कर दिया था। और आज अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में 37 लोकसभा सीट जीतकर मुलायम सिंह यादव को भी पीछे छोड़ दिया है। इसी तरह मायावती को भी आकाश आनंद को आगे लाना होगा। क्यों कि आकाश आनंद में वो तेवर, संघर्ष की झलक दिखाई देती है जो बसपा को पुनर्जीवित कर सकती है। आकाश आनंद युवा पीढ़ी को बसपा के साथ ला सकते हैं।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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