अब शिवाजी महाराज बनाम सावरकर

अब शिवाजी महाराज बनाम सावरकर

देश और दुनिया में प्रतिमाएं तेजी से टूट रहीं हैं।  कुछ को जनता ने तोड़ा है ,तो कुछ को भ्रष्टाचार ने। हमने इसी युग में बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं को टूटते देखा है।  लेनिन की प्रतिमाएं तोड़ी गयी।  महात्मा गाँधी और डॉ भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमाएं तो बनी ही टूटने के लिए है।  सद्दाम की प्रतिमाएं तोड़ी गयी।  हाल ही में बांग्लादेश में बंग बंधू शेख मुजीबर्रहमान की प्रतिमाओं को तोड़ा गया ,लेकिन महाराष्ट्र में छत्रपति शिवजी महाराज की प्रतिमा को भ्रष्टाचार ने तोड़ दिया। उज्जैन के महाकाल लोक में शिव की प्रतिमाएं इसी भ्र्ष्टाचार की वजह से टूट चुकी हैं ,लेकिन  प्रतिमा टूटने पर देश के लाडले प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने माफ़ी पहली बार मांगी है।

प्रधानमंत्री जी दरियादिल हैं। संकीर्णता उन्हें छूकर भी नहीं निकली। इसीलिए उनका माफ़ी मांगना किसी को चौंकाता नहीं है। माफ़ी मांगना अच्छी बात है।  हम अच्छी बात हो या अच्छे दिन उनके फेर में जल्दी आ जाते हैं। लेकिन मेरा तजुर्बा कहता है कि यदि महाराष्ट्र  में विधानसभा के चुनाव सिर पर न होते तो माननीय प्रधानमंत्री भूलकर भी माफ़ी नहीं मांगते।  माफ़ी मांगना और माफ़ी देना उनकी फितरत का अंग है ही  नहीं। माफ़ी मांगना उनके लिए अकल्पनीय है। आप हिसाब लगाइये कि  पिछले दस साल में ही नहीं बल्कि वे जब से राजनीति में है तब से उन्होंने कितनी बार माफ़ी मांगी ? वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उनके ऊपर उनके ही नेताओं ने राजधर्म न निभाने का आरोप लगाया था,तब भी उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी। दूर मत जाइये उन्होंने हाल ही में मणिपुर के जलने पर माफ़ी नहीं मांगी। उन्होंने दिल्ली की सड़कों पर बेईज्जत कोई गयी महिला खिलाड़ियों के अपमान के लिए माफ़ी नहीं मांगी।  किसान आंदोलन में 700  निरीह किसानों की मौत के लिए माफ़ी मांगी नहीं मांगी।

जैसा कि  मैंने पहले ही कहा कि  प्रधानमंत्री जी द्वारा छत्रपति शिवजी महाराज की प्रतिमा के खंडन के लिए माफ़ी मांगना प्रधामंत्री जी की  एक राजनीतिक विवशता थी ,अन्यथा वे कभी माफ़ी नहीं मांगते ।  प्रधानमंत्री जी ने एक तरफ प्रतिमा निर्माण में हुए भ्र्ष्टाचार  के लिए माफी मांगी वहीं दूसरी तरफ वीर सावरकर का नाम लेकर अपने सनातन सियासी बैरियों पर भी निशाना साध लिया। अरे भाई  ! अभी सावरकर साहब पिक्चर में कहाँ से आ गए ? उनकी प्रतिमा तो कहीं टूटी नहीं है। लेकिन आप समझ सकते हैं कि  प्रधानमंत्री ने कितने भारी मन से महाराष्ट्र की जनता से माफ़ी मांगी है। उनके मन में शिवाजी से ज्यादा सावरकर की उपेक्षा का दर्द है। महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी और सावरकर की अपनी अहमियत है ,लेकिन भाजपा के लिए इस समय  शिवाजी महाराज गले की हड्डी बने हुए है।  

जानकार जानते और मानते हैं कि  यदि माननीय मोदी जी प्रतिमा खंडन के मामले में महाराष्ट्र से माफ़ी न मांगते तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का फट्टा साफ़ होने वाला था। महाराष्ट्र   में भाजपा उसी तरह सत्ता में है जिस तरह दिल्ली में  है।  यानि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार है, किन्तु यहां उसे शिवसेना के एक गुट और एनसीपी के एक गुट की बैशाखी लगाना  पड़ी है ,अन्यथा महाराष्ट्र की जनता तो कब की भाजपा से किनारा कर चुकी है ,जबकि महाराष्ट्र में ही भाजपा के मात्र संगठन  आरएसएस का मुख्यालय है। भाजपा महाराष्ट्र में कांग्रेस,एनसीपी और शिवसेना के ठाकरे गुट के सामने टिक नहीं पा रही है। महाराज शिवाजी की प्रतिमा के खंडित होने के विवाद ने भाजपा की जड़ें और हिला दीं हैं।

शिवाजी के बहाने सावरकर की याद कर माननीय मोदी जी महाराष्ट्र के चित पावन ब्राम्हणों को खुश करना चाहते हैं ,लेकिन ये काम इतना आसान नहीं है ।  महाराष्ट्र में भाजपा के चित पावन ब्राम्हण नेता देवेंद्र फडणवीस की फड़ उखड़ चुकी है। वे महाराष्ट्र   के मुख्यमंत्री रहने के बाद झक मरकर उप मुख्यमंत्री बने बैठे हैं। भाजपा में चूहे को शेर और शेर को चूहा बनाने की आदि परम्परा है।  आपको याद होगा कि  इससे पहले मध्यप्रदेश में भाजपा ने अपनी ही सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल गौर को शिवराज सिंह चौहान की सरकार में केबिनेट मंत्री बना दिया था और वे ख़ुशी-ख़ुशी मंत्री बन भी गए थे। भाजपा को उम्मीद है कि  महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की प्रतिमा के प्रकरण में प्रधानमंत्री जी द्वारा माफ़ी मांग लेने से फडणवीस जी की फड़ एक बार फिर से जम जाएगी।

आप लिखकर रख लीजिये  कि  देश में आने वाले दिनों  में माफियां मांगने और गालियां देने का एक और दौर शुरू होने वाला है।  हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों में ये प्रतिस्पर्द्धा चरम पर होगी ,क्योंकि इन दोनों ही राज्यों में [ हालाँकि जम्मू-कश्मीर राज्य नहीं है ] भाजपा की साँसे उखड़ रहीं हैं। ये दोनों राज्य भाजपा की भावी राजनीती का ही नहीं बल्कि भाजपा की बैशाखी सरकार का भविष्य भी तय करेंगे। मुमकिन है कि  प्रधानमंत्री जी जम्मू-कश्मीर में जाकर सेना के जवानों की तमाम गैर-जरूरी शहादतों के लिए वहां की जनता से माफी मांग लें। धारा ३७० हटाने कि लिए माफ़ी मांग ले।  उसे बहाल करने का वादा भी कर दें।   मुमकिन है कि  वे हरियाणा में महिला पहलवानों के साथ दिल्ली में हुई ज्यादतियों के लिए भी माफी मांग लें। क्योंकि अब उनका और भाजपा का बेड़ा पार तभी होगा जब वे लगातार माफियां मांगते रहें।

देश की जनता उतनी तंगदिल नहीं है जितने कि  राजनीतिक दल होते हैं ,इसलिए मुमकिन है कि  प्रधानमंत्री जी को माफी मांगते हुए देखकर जनता का दिल पिघल जाए। यदि जनता न पिघली  तो भाजपा के लिए मुश्किल होगी। जनता को पिघलना ही पडेगा अन्यथा प्रधानमंत्री जी मुंबई में पांच साल बाद फिनटेक के समारोह में आने का अपना कौल कैसे पूरा करेंगे ? प्रधानमंत्री अपने भाषणों के जरिये बार-बात ये संकेत  देने की कोशिश करते हैं कि  वे साल 75  के होने के बाद भी प्रधानमंत्री पद छोड़ने वाले नहीं हैं ,भले ही भाजपा और संघ ही नहीं बल्कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष चाहे जितनी कोशिश कर ले।कोई हो या न हो किन्तु मै माननीय प्रधानमंत्री जी के इस आत्मविश्वास के सामने नतमस्तक हूँ। इतना आत्मविश्वास मैंने भारत के किसी भी नेता में नहीं देखा।

आने वाले दिनों  में माननीय प्रधानमंत्री जी की जो प्रतिमा देश के 85  करोड़ भूखों के साथ और लोगों के मन में बनी है वो नहीं टूटना चाहिए। क्योंकि 2024  के आम चुनाव में इस प्रतिमा का आधार तो हिल चुका है ।  माननीय तमाम चीख-पुकार के बाद न भाजपा को 370  पार करा पाए और न अपने गठबंधन को 400  पार करा पाए। उनका अश्वमेघ का घोड़ा 240  पर आकर अटक गया। जबकि उनका घोड़ा रानी  लक्ष्मी बाई के घोड़े की तरह नया नहीं था। उसे राजनीति का नाला पार कर ही लेना चाहिए था ,लेकिन नए  ही नहीं बल्कि  बूढ़े घोड़े कभी-कभी मात खा जाते हैं और अपने सवार को मुश्किल में डाल देते हैं।

राकेश अचल  

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