अंधविश्वास, धार्मिक जुनून के मनोवैज्ञानिक समाधान की दरकार। 

अंधविश्वास, धार्मिक जुनून के मनोवैज्ञानिक समाधान की दरकार। 

अशिक्षा और अज्ञानता अंधविश्वास तथा धार्मिक कट्टरता के पीछे गहरा मनोवैज्ञानिक मानवीय पहलू छुपा हुआ है। इसका समाधान सर्वप्रथम हमें खोजना होगा,यह सामाजिक तौर पर भी बड़ी समस्या है। यदि कम पढ़ा लिखा आदमी धार्मिक अंधविश्वास को मानता है तो यह बात समझ में आती है किंतु इस वैज्ञानिक युग में अत्यंत शिक्षित एवं पढ़े-लिखे लोग भी अंधविश्वास तथा धार्मिक कट्टरता के पीछे भागने लगे तो यह समाज और देश के लिए दुर्भाग्य की बात हैl यह तो तय है की शिक्षा, ज्ञान अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर के विवेकपूर्ण विचारों को सोचने की शक्ति प्रदान करता है और इसके पश्चात ही मनुष्य वैज्ञानिक आधार पर तर्क रखकर अपनी बात को मानना शुरू करता है।
 
पूर्व में हम मानते थे कि पृथ्वी चपटी है किंतु वैज्ञानिक प्रयोगों तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार यह सिद्ध हो गया कि पृथ्वी गोल है अब लोगों ने लॉजिक और वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर यह मान लिया है की पृथ्वी गोल ही हैl शहीद भगत सिंह ने आजादी के लिए एक संगठन नौजवान भारत सभा का गठन किया और उसके घोषणा पत्र में कहा था कि धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरता हमारी प्रगति के बहुत बड़े बाधक है, वह हमारे रास्ते की बाधा साबित हुए हैं उनसे हमें हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहिए जोकि आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती उसे समाप्त हो जाना चाहिए इसी प्रकार अन्य बहुत सारी कमजोरियां भी हैं जिन पर हमें विजय प्राप्त करना होगा ,इस कार्य के लिए सभी समुदाय के क्रांतिकारी उत्साह रखने वाले नई सोच के नौजवानों की आवश्यकता हैl
 
उन्होंने बिल्कुल सही कहा था क्योंकि युवा शक्ति ही देश में नए विचारों की क्रांति ला सकती और अंधविश्वास को समूल नष्ट करने में इनकी ऊर्जा इस कार्य के लिए लगाई जा सकती है,पर दूसरी तरफ शिक्षा का प्रचार प्रसार होना भी नितांत आवश्यक हैl शिक्षा ही ऐसा मूल मंत्र है जिससे अंधविश्वास एवं आडंबर की पोल खोली जा सकती शिक्षा से हमारा तात्पर्य विज्ञान से भी है विज्ञान ने अनेक अंधविश्वास को जन सूचियों में अविश्वास के रूप में में स्थापित किया है और शिक्षा तथा विज्ञान तकनीकी ऐसे मार्ग हैं जिन से चलकर हम न सिर्फ चांद पर पहुंचे हैं बल्कि सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से पूरी दुनिया एक परिवार की तरह एक दूसरे के एकदम करीब आ चुकी है ऐसे में अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता एवं संप्रदायवाद की जगह कहाँ बच जाती है भला ? शिक्षा का स्तर ईतना ऊंचा हो जाना चाहिए की इन अंधविश्वासी बातों और मिथकों का अस्तित्व ही मूल रूप से विस्मृत किया जाना चाहिएl
 
बिल्ली के रास्ता काटने से काम रुक जाता है,किसी की छींक देने से अशुभ संकेत स्थापित होने लगते हैं यदि कौवा बोलता है तो मेहमान आने का संकेत माना जाना इन सब बातों की कोई तार्किक अथवा वैज्ञानिक पृष्ठभूमि नहीं है और जनमानस द्वारा अपने दिमाग का प्रयोग कर ऐसी अतार्किक और वैज्ञानिक बातों में विश्वास करना भी अंधविश्वास को सामाजिक स्तर पर मान्यता प्रदान करता है। यह भी अशिक्षा का एक बहुत बड़ा परिणाम है। शिक्षा विज्ञान तथा तकनीकी ज्ञान समाज में तर्कसंगत बातों का विश्वास करने पर भरोसा दिलाता है और धीरे धीरे अंधविश्वास तथा धार्मिक कट्टरता से मनुष्य को परे ले जाता है। मूलतः अंधविश्वास को दूर करने के लिए हमें शिक्षा जैसे अस्त्र का इस्तेमाल तीव्र गति से किया जाना चाहिए। अंधविश्वास, तंत्र मंत्र के अधीन होकर पशुओं की बलि देना भी एक प्रकार से अंधविश्वास को बढ़ावा देना ही है, तंत्र मंत्र के विश्वास में आकर मानव न केवल पशुओं की बलि देते बल्कि बच्चों की बलि देने से भी नहीं परहेज करता है।
 
समाज में व्याप्त अंधविश्वास तथा कट्टरपंथ का लाभ समाज के कुछ चालबाज तथा धोखेबाज लोग उठाते हैं और यही लोग इन अंधविश्वासी लोगों को भूत, प्रेत ,राहु केतु,काल सर्प दोष इत्यादि का भय दिखाकर पूजा पाठ तंत्र मंत्र के नाम से हजारों रुपए लूट लेते हैं। यह सिर्फ गांव में ही नहीं हो रहा है यह शहरों में भी बुरी तरह व्याप्त है तंत्र मंत्र तथा भूत प्रेत से छुटकारा भारत के कस्बों तथा गांव में एक व्यवसाय के रूप में विकसित हो गया है जो देश के लिए एक बड़ी विसंगति और विडंबना है।
 
ऐसे तंत्र मंत्र और भविष्य के दर्शन कराने वाले तांत्रिकों का विज्ञापन न सिर्फ बड़े-बड़े अखबारों में बल्कि स्थापित टीवी चैनलों में भी खुल कर दिया जाता है जिससे न सिर्फ अनपढ़, अंधविश्वासी बल्कि शिक्षित लोग भी झांसे में आकर बड़ी धनराशि से हाथ धो बैठते हैं। विकसित यूरोपीय देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, फ्रांस, इजरायल तथा अन्य देशों में भी अंधविश्वास व्याप्त है किंतु भारत में अशिक्षा के कारण इसकी जड़ें थोड़ी गहरी व्याप्त हैं। शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से अंधविश्वास को जनमानस तथा देर से दूर किया जा सकता है किंतु मूल रूप से प्राथमिक शिक्षा को एक सशक्त माध्यम रखकर अंधविश्वास एवं धार्मिक कट्टरता के विरोध में बातें रखी जाए तो देश एक अंधविश्वास मुक्त राष्ट्र बन सकता है।
 
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक, विश्व रिकार्ड धारक लेखक

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